फिलहाल के लेखकों में, वैसे राइटर ज्यादा हैं, जिन्होंने UPSC एग्जाम की तैयारी, IAS न बनने का मलाल और फ्रस्ट्रेशन, जुगाड़ और प्यार पर ज़िंदगानी लिखने से सुचर्चित हुए हैं, इनमें एक राइटर को 'युवा साहित्य अकादमी पुरस्कार' भी मिल चुका है, परंतु जितने राइटर्स ने UPSC पर खुद को लेकर अफ़साने लिखने का प्रयास किए हैं, उनमें से कुछ ही आईएएस बन तो गए, पर चर्चा से वे दूर हो गए हैं, लेकिन कुछ ने इस सपनों से निकल और असफल होकर भी जानदार राइटर बन गए ! आज मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते कटिहारवासी लेखक-पत्रकार श्रीमान शशिकांत मिश्र रचित उपन्यास 'नॉन रेजिडेंट बिहारी' की MoA द्वारा किए जा रहे समीक्षा-यात्रा का एक पड़ाव, पढ़िए......
मैंने बिहार के प्रायश: जिलों का भ्रमण किया है और अगर कोई संभ्रम के कारण छूट भी गया है, तो UPSC सम्बद्ध परीक्षाओं की तैयारी करते-करते उनके बारे में इतनी जानकारी तो इकठ्ठा कर ही लिया है कि उन जिलों और शहर के भूगोल, इतिहास, अर्थव्यवस्था की जानकारी रख सकूँ !
उपन्यास 'नॉन रेजिडेंट बिहारी' यानी कि 'NRB - कहीं पास, कहीं फेल' पढ़ा । बिहार के कटिहार के जिला अस्पताल से 'कहानी' आँखें खोलती हैं, जहां एक परिवार इस कशमकश में है कि जन्म देने वाली माँ को बचाया जाय या बच्चे को ! न तो सीनियर डॉक्टर इस बात का फैसला ले पाते हैं, न ही जूनियर डॉक्टर ! लेकिन अस्पताल में 11,000 रुपये वेतन पाने वाले कंपाउंडर ने एक ऐसा मंत्र कहा, जिससे माँ और जन्म लेने वाले पुत्र दोनों बच जाते हैं । मंत्र यह था --'आज UPSC के फॉर्म भरने का आखिरी दिन है, बेटे ! चूक गए तो फिर एक साल इंतेजार करना पड़ेगा !'
यह सुखद घटना ने लेखक को उपन्यास का प्लॉट दिया, थीम दिया ! लेकिन हम पहले यह स्पष्ट हो जाते हैं कि इस नाम से कटिहार में अस्पताल नहीं है । हाँ, 'सदर अस्पताल' नाम से है । ... तो वहीं 21 साल बाद IAS की तैयारी करने वाला वह बच्चा 'राहुल', जो शायद लेखक हो-- को IAS का महात्म्य लिए स्थानीय ज्ञान कम दिखता है, जो कि UPSC इंटरव्यू में छंटने का कारण बन जाय, क्योंकि कटिहार का भ्रमण मैंने किया है ।
कहानी आगे बढ़ने लगती है और राहुल 'लालबत्ती' (गोकि अब बंद है) वाले गाड़ी में घूमने के स्वप्नों में खो तो जाते हैं, परंतु प्रेमिका शालू को भूल न पाते हैं, लेकिन इन सपनों को पूरा करने के लिए कथा का हीरो निकल पड़ता है, दिल्ली की सैर को, जहां की कोचिंग 'फी' उनके परिवार वाले ने कर्ज लेकर जुटाए थे ।
कहानी में मोड़ भी है, ट्विस्ट लिये..... कथा-पात्र ने ईश्वर,अल्लाह के भक्तों पर कमेंट करते-करते कब नादानियों से भरे एक मोड़ पर आ पहुँचता है, उन्हें मालूम ही नहीं चलता ! परन्तु सीनियर श्याम भैया का गाइडेंस और लड़कियों के बारे में हर वक़्त नॉन-वेज जोक्स बनाने व सुनाने में माहिर दोस्त संजय के सहयोग से वे ऐसे अंतर्जाल से बाहर निकलने में कामयाब हो तो जाता है, इसके बावजूद नायक प्यार, एग्जाम और लालबत्ती में इसतरह उलझता है कि न तो श्याम भैया की बातें उसे रास आती है, न ही संजय की और न ही UPSC (mains) के आखिरी पेपर ! आखिरी चांस में अपनी प्रेमिका को पाने के लिए निकल पड़ता है कटिहार की ओर, जहां प्रेमिका के भाई यानी 'गैंडा' भाई यमराज की तरह राह रोके खड़ा है !
लेखक ने बिहार के मनोदशा का खूबी से चित्रण किया है, खासकर 'कटिहार' की तो बखूबी ! परन्तु उन्होंने भाषा को अमली तो अमली, असली-जामा भी पहनाने में चूक गए हैं, क्योंकि उपन्यास में कटिहार की भाषा 'अंगिका' बोल-चाल में भी नहीं दिखी !
लेखक ने 'NRB' की अंतिम के कुछ पृष्ठों को लिखने में इतनी जल्दबाजी दिखाई है कि सस्पेंस बनी कहानी को दिल्ली और कटिहार के बीच मुगलसराय में अमली-जामा पहना दी जाती है । परंतु मुझे तो नायक दिल से इस कदर मजबूर दिखा कि IAS और प्यार में उसने 'प्यार' को चुन पाठकों को यह बता दिया कि दिल के सामने बड़े-बड़े आईएएस अफसर बेवकूफ हैं ! अगर ऐसा होता कि वे अपने कर्त्तव्य को साधते हुए, जैसे- IAS 2015 की प्रथम दो टॉपर जातिगत और धर्मगत मानसिकता से ऊपर उठ 'विवाह' रचाये ! ... तो बात उदाहरणीय होते ! जो हो, उपन्यास की नायिका की अदा से कोई इम्प्रेस हो या न हो, लेकिन अगर आपके पास दिल है, तो निश्चितश: होंगे ! .... तो "मैं नाचूंगी बिन पायल, घुँघरू टूट गए तो क्या ?"
-- प्रधान प्रशासी-सह-प्रधान संपादक ।
मैंने बिहार के प्रायश: जिलों का भ्रमण किया है और अगर कोई संभ्रम के कारण छूट भी गया है, तो UPSC सम्बद्ध परीक्षाओं की तैयारी करते-करते उनके बारे में इतनी जानकारी तो इकठ्ठा कर ही लिया है कि उन जिलों और शहर के भूगोल, इतिहास, अर्थव्यवस्था की जानकारी रख सकूँ !
उपन्यास 'नॉन रेजिडेंट बिहारी' यानी कि 'NRB - कहीं पास, कहीं फेल' पढ़ा । बिहार के कटिहार के जिला अस्पताल से 'कहानी' आँखें खोलती हैं, जहां एक परिवार इस कशमकश में है कि जन्म देने वाली माँ को बचाया जाय या बच्चे को ! न तो सीनियर डॉक्टर इस बात का फैसला ले पाते हैं, न ही जूनियर डॉक्टर ! लेकिन अस्पताल में 11,000 रुपये वेतन पाने वाले कंपाउंडर ने एक ऐसा मंत्र कहा, जिससे माँ और जन्म लेने वाले पुत्र दोनों बच जाते हैं । मंत्र यह था --'आज UPSC के फॉर्म भरने का आखिरी दिन है, बेटे ! चूक गए तो फिर एक साल इंतेजार करना पड़ेगा !'
यह सुखद घटना ने लेखक को उपन्यास का प्लॉट दिया, थीम दिया ! लेकिन हम पहले यह स्पष्ट हो जाते हैं कि इस नाम से कटिहार में अस्पताल नहीं है । हाँ, 'सदर अस्पताल' नाम से है । ... तो वहीं 21 साल बाद IAS की तैयारी करने वाला वह बच्चा 'राहुल', जो शायद लेखक हो-- को IAS का महात्म्य लिए स्थानीय ज्ञान कम दिखता है, जो कि UPSC इंटरव्यू में छंटने का कारण बन जाय, क्योंकि कटिहार का भ्रमण मैंने किया है ।
कहानी आगे बढ़ने लगती है और राहुल 'लालबत्ती' (गोकि अब बंद है) वाले गाड़ी में घूमने के स्वप्नों में खो तो जाते हैं, परंतु प्रेमिका शालू को भूल न पाते हैं, लेकिन इन सपनों को पूरा करने के लिए कथा का हीरो निकल पड़ता है, दिल्ली की सैर को, जहां की कोचिंग 'फी' उनके परिवार वाले ने कर्ज लेकर जुटाए थे ।
कहानी में मोड़ भी है, ट्विस्ट लिये..... कथा-पात्र ने ईश्वर,अल्लाह के भक्तों पर कमेंट करते-करते कब नादानियों से भरे एक मोड़ पर आ पहुँचता है, उन्हें मालूम ही नहीं चलता ! परन्तु सीनियर श्याम भैया का गाइडेंस और लड़कियों के बारे में हर वक़्त नॉन-वेज जोक्स बनाने व सुनाने में माहिर दोस्त संजय के सहयोग से वे ऐसे अंतर्जाल से बाहर निकलने में कामयाब हो तो जाता है, इसके बावजूद नायक प्यार, एग्जाम और लालबत्ती में इसतरह उलझता है कि न तो श्याम भैया की बातें उसे रास आती है, न ही संजय की और न ही UPSC (mains) के आखिरी पेपर ! आखिरी चांस में अपनी प्रेमिका को पाने के लिए निकल पड़ता है कटिहार की ओर, जहां प्रेमिका के भाई यानी 'गैंडा' भाई यमराज की तरह राह रोके खड़ा है !
लेखक ने बिहार के मनोदशा का खूबी से चित्रण किया है, खासकर 'कटिहार' की तो बखूबी ! परन्तु उन्होंने भाषा को अमली तो अमली, असली-जामा भी पहनाने में चूक गए हैं, क्योंकि उपन्यास में कटिहार की भाषा 'अंगिका' बोल-चाल में भी नहीं दिखी !
लेखक ने 'NRB' की अंतिम के कुछ पृष्ठों को लिखने में इतनी जल्दबाजी दिखाई है कि सस्पेंस बनी कहानी को दिल्ली और कटिहार के बीच मुगलसराय में अमली-जामा पहना दी जाती है । परंतु मुझे तो नायक दिल से इस कदर मजबूर दिखा कि IAS और प्यार में उसने 'प्यार' को चुन पाठकों को यह बता दिया कि दिल के सामने बड़े-बड़े आईएएस अफसर बेवकूफ हैं ! अगर ऐसा होता कि वे अपने कर्त्तव्य को साधते हुए, जैसे- IAS 2015 की प्रथम दो टॉपर जातिगत और धर्मगत मानसिकता से ऊपर उठ 'विवाह' रचाये ! ... तो बात उदाहरणीय होते ! जो हो, उपन्यास की नायिका की अदा से कोई इम्प्रेस हो या न हो, लेकिन अगर आपके पास दिल है, तो निश्चितश: होंगे ! .... तो "मैं नाचूंगी बिन पायल, घुँघरू टूट गए तो क्या ?"
-- प्रधान प्रशासी-सह-प्रधान संपादक ।
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