एक ओर हम 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' का भरपूर समर्थक बन रहे हैं, वहीं दूज़े तरफ बेटियों का चीरहरण कर रहे हैं, स्वयंघोषित बाबाओं के लुटिया डूबा ही, इधर माननीय भी चपेट में हैं ! क्या ऐसा तीनों लिंगो में देखने को मिलता है ? वैसे चौथेराम तो उभयलिंगी है । सृष्टि के मुख्य कारक 'नारी' पर सृष्टिकाल से ही अत्याचार ! कहते हैं न,वह जन्मजात ही '....' है ! पुरुषों के ऐसे अहं पर सवाल उठा रही हैं, कई 'रिकॉर्ड्स बुक' में जगह पायी सुश्री अर्चना कुमारी । .... और स्वयं उठाई सवाल पर जवाब भी वही दे रही हैं । आज के अंक में प्रस्तुत है, इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड्स होल्डर सुश्री अर्चना कुमारी की लघु आकार लिए आक्रामक रचना । तो आइये, इसे पढ़े तो जरा......
आये दिन अखाड़ों में कुश्ती और पहलवानी की खबरें तो देखते ही हैं,लेकिन औरतों की गाथा भी अखाड़ों के घासमलेट से लेकर कभी कुरूपता के कारण तिरस्कार और रंगभेद, तो वैवाहिक-विवाद, अठारह से कम उम्र में शादी और दहेज़-प्रताड़ना से जुड़े मुद्दे तो सप्ताह के सातों दिन, दिनों में प्रहर-दर-प्रहर अखबारों की सुर्खियां बनती रही हैं । शादी के बाद किसी की पत्नी । किंतु पत्नी जागीर नहीं, जिसे आप सोने को मजबूर नहीं कर सकते हैं, न साथ रहने को जबरदस्ती ही कर सकते है और न ही कहीं चलने को बाध्य ही कर सकते हैं ! उसके साथ क्रूरता से बरताव नहीं कर सकते । न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर और न्यायमूर्त्ति दीपक गुप्ता की खंडपीठ ने पति-पत्नी के मध्य वैवाहिक विवाद और दहेज प्रताड़ना के एक मुकद्दमें के स्थानांतरण की अर्जी पर सुनवाई के दौरान की । महिला वकील के आरोप कि पति, पति है, कैसे आपको प्रताड़ित करता है ! क्यों किसी की बेटी जब पत्नी बन जाती है, उसे वस्तु की तरह उपयोग क्यों की जाती ? क्या बेटियां पत्नी जैसी अनमोल भूमिका निभाते हुए भी पति के हाथों पुरस्कार के रूप में बेघर होना पाती है ! हरियाणा, जमशेदपुर (झारखंड) के न्यायालय में ऐसे कई मामले आज भी निष्पक्ष न्यायादेश पाने की उम्मीद लगाएं बैठी हैं । यह एक गहन शोध का विषय है । वह ना घर में बेटी या बहू के रूप में सुरक्षित है और ना ही अपने कार्य क्षेत्र में ही, जहाँ वे शिक्षिका, महिला कर्मचारी, महिला पदाधिकारी, महिला चिकित्सक, महिला पायलट इत्यादि के रूप में प्रताड़ित हैं । पुरुषों को सुरक्षा, शिक्षा, स्वस्थता और स्वायत्तता विरासत में मिला होता है । इन ताकतों का पूरा फायदा पुरुषों को मिलता ही है, क्योंकि देश-विदेशों में उन्हें ही ज्यादा अवसर प्राप्त है । हाँ, महिलाओं के साथ हमेशा कोई न कोई कंडीशन जुड़ी होती हैं । हमारे योगदान और अवदानों को भूल जाना और हमें कोर्ट तथा जमीन पर घसीटना क्या किसी पुरुष के लिए यही पौरुषता है ? नारी को कुचलने में उन्हें उनींदी मस्ती आती है । ऐसे में पुरुषों को समझ बढ़नी चाहिए और सम्मान भी, क्योंकि कौन नहीं जानता, उनके पैदा होने पर हम नारियों से ही पुरुष-पात्र का नाभिनाल जुड़ा होता है । नारी के जिम्मे बेकसता, बेबसता सहित 'ससुर' का दिया एक शब्द है- 'ससुराल'.... अन्यथा, पति के साथ सिर्फ है... पतिहाल.... फटेहाल... ! लो, कह दूं मैं.... यही कि ... 'ससुराल गेंदा फूल' !
नमस्कार दोस्तों !
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सुश्री अर्चना कुमारी |
आये दिन अखाड़ों में कुश्ती और पहलवानी की खबरें तो देखते ही हैं,लेकिन औरतों की गाथा भी अखाड़ों के घासमलेट से लेकर कभी कुरूपता के कारण तिरस्कार और रंगभेद, तो वैवाहिक-विवाद, अठारह से कम उम्र में शादी और दहेज़-प्रताड़ना से जुड़े मुद्दे तो सप्ताह के सातों दिन, दिनों में प्रहर-दर-प्रहर अखबारों की सुर्खियां बनती रही हैं । शादी के बाद किसी की पत्नी । किंतु पत्नी जागीर नहीं, जिसे आप सोने को मजबूर नहीं कर सकते हैं, न साथ रहने को जबरदस्ती ही कर सकते है और न ही कहीं चलने को बाध्य ही कर सकते हैं ! उसके साथ क्रूरता से बरताव नहीं कर सकते । न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर और न्यायमूर्त्ति दीपक गुप्ता की खंडपीठ ने पति-पत्नी के मध्य वैवाहिक विवाद और दहेज प्रताड़ना के एक मुकद्दमें के स्थानांतरण की अर्जी पर सुनवाई के दौरान की । महिला वकील के आरोप कि पति, पति है, कैसे आपको प्रताड़ित करता है ! क्यों किसी की बेटी जब पत्नी बन जाती है, उसे वस्तु की तरह उपयोग क्यों की जाती ? क्या बेटियां पत्नी जैसी अनमोल भूमिका निभाते हुए भी पति के हाथों पुरस्कार के रूप में बेघर होना पाती है ! हरियाणा, जमशेदपुर (झारखंड) के न्यायालय में ऐसे कई मामले आज भी निष्पक्ष न्यायादेश पाने की उम्मीद लगाएं बैठी हैं । यह एक गहन शोध का विषय है । वह ना घर में बेटी या बहू के रूप में सुरक्षित है और ना ही अपने कार्य क्षेत्र में ही, जहाँ वे शिक्षिका, महिला कर्मचारी, महिला पदाधिकारी, महिला चिकित्सक, महिला पायलट इत्यादि के रूप में प्रताड़ित हैं । पुरुषों को सुरक्षा, शिक्षा, स्वस्थता और स्वायत्तता विरासत में मिला होता है । इन ताकतों का पूरा फायदा पुरुषों को मिलता ही है, क्योंकि देश-विदेशों में उन्हें ही ज्यादा अवसर प्राप्त है । हाँ, महिलाओं के साथ हमेशा कोई न कोई कंडीशन जुड़ी होती हैं । हमारे योगदान और अवदानों को भूल जाना और हमें कोर्ट तथा जमीन पर घसीटना क्या किसी पुरुष के लिए यही पौरुषता है ? नारी को कुचलने में उन्हें उनींदी मस्ती आती है । ऐसे में पुरुषों को समझ बढ़नी चाहिए और सम्मान भी, क्योंकि कौन नहीं जानता, उनके पैदा होने पर हम नारियों से ही पुरुष-पात्र का नाभिनाल जुड़ा होता है । नारी के जिम्मे बेकसता, बेबसता सहित 'ससुर' का दिया एक शब्द है- 'ससुराल'.... अन्यथा, पति के साथ सिर्फ है... पतिहाल.... फटेहाल... ! लो, कह दूं मैं.... यही कि ... 'ससुराल गेंदा फूल' !
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