UPSC परीक्षार्थियों की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है । हाँ, 3 जून 2018 को सिविल सर्विसेज़ का 'प्रीलिमिनरी टेस्ट' (पी.टी.) है और मैं भी इस परीक्षा के परीक्षार्थियों में एक हूँ, इसलिए मेरी भी उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है कि देखता हूँ, पी.टी. में मैं सामान्य ज्ञान की उल्टी कर पाता हूँ या नहीं ! लेकिन आप सुविज्ञ पाठकों के प्रिय 'मैसेंजर ऑफ आर्ट' ने परीक्षार्थ-स्वपीड़ा के बावजूद व इस हव्वा से मुक्त होकर और इस परीक्षार्थी-महापर्व के प्रसंगश: समय निकालकर आज मैसेंजर ऑफ आर्ट लेकर आई हैं, कवयित्री सुश्री आकृति विज्ञा 'अर्पण' की एक कविता,आइये पढ़ते हैं और कुछ क्षण के लिए अपनी-अपनी पीड़ा को भूल इनमें रमते हैं.....
गांव की पगडण्डी
धानी खेत कच्ची पगडंडी
कउड़ा में बीत गयो ठंढी,
अम्मा रोज बुहारत ओसार
कोहरा ओढ़े वो भिनसार,
ता में प्रधान जी की चौपाल
मूछें ऐंठत हैं श्री लल्लू लाल,
चाय का अपना महकमा
राशन का लंबा मुकदमा,
बिरजू बहू की ऊंची आवाज
उस पर भी सासू मां का राज,
बैलन के गले में बाजत घंटी
गुल्ली डंडा खेलत पिंकी बंटी,
लिट्टी और बैंगन का चोखा
खाने वाले खा गये धोखा,
मास्टर साहेब और विद्यालय
जय जय भोले वही शिवालय,
श्रीवास्तव जी के घर जगराता
उपराईं जब मुन्नी बाई पर माता,
मऊनी बिनत राजू की अम्मा
गिरा था ऊपर उनके खम्भा,
बैना बाटत ठकुराईन चाची
खाजा खातिर झूठी सांची,
मम्मी का तीज पर संवरना
पापा का वो देख ठहरना,
घारी में अपना घर घरौना
डिहे पर वो महकता दौना,
पुअरा जला कर आग तापना
मस्टराइन जी को देख भागना,
इतवार के दिन वो खेत घुमाई
कंबाइन से जब जब हुई दंवाई,
डल्लफ पर बाईस टोला का सैर
साजन का आशिक से वो बैर,
अंगीरा की सरपट अंगरेजी
इंटरवल की तब वैसी तेजी,
दशहरे का वो मीठा पान
तीती में हार गये रसखान,
त्योहारों में दिन भर व्यंजन
गुज्जा लेकर भागा रंजन ,
कहांर आज भी मड़ई छावत है
भूजा भूजावल याद बड़ा आवत है,
का का कहबू अर्पण बबुनी
गउआं न अब बिसरत अपनी ।
नमस्कार दोस्तों !
'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।
सुश्री आकृति विज्ञा 'अर्पण' |
गांव की पगडण्डी
धानी खेत कच्ची पगडंडी
कउड़ा में बीत गयो ठंढी,
अम्मा रोज बुहारत ओसार
कोहरा ओढ़े वो भिनसार,
ता में प्रधान जी की चौपाल
मूछें ऐंठत हैं श्री लल्लू लाल,
चाय का अपना महकमा
राशन का लंबा मुकदमा,
बिरजू बहू की ऊंची आवाज
उस पर भी सासू मां का राज,
बैलन के गले में बाजत घंटी
गुल्ली डंडा खेलत पिंकी बंटी,
लिट्टी और बैंगन का चोखा
खाने वाले खा गये धोखा,
मास्टर साहेब और विद्यालय
जय जय भोले वही शिवालय,
श्रीवास्तव जी के घर जगराता
उपराईं जब मुन्नी बाई पर माता,
मऊनी बिनत राजू की अम्मा
गिरा था ऊपर उनके खम्भा,
बैना बाटत ठकुराईन चाची
खाजा खातिर झूठी सांची,
मम्मी का तीज पर संवरना
पापा का वो देख ठहरना,
घारी में अपना घर घरौना
डिहे पर वो महकता दौना,
पुअरा जला कर आग तापना
मस्टराइन जी को देख भागना,
इतवार के दिन वो खेत घुमाई
कंबाइन से जब जब हुई दंवाई,
डल्लफ पर बाईस टोला का सैर
साजन का आशिक से वो बैर,
अंगीरा की सरपट अंगरेजी
इंटरवल की तब वैसी तेजी,
दशहरे का वो मीठा पान
तीती में हार गये रसखान,
त्योहारों में दिन भर व्यंजन
गुज्जा लेकर भागा रंजन ,
कहांर आज भी मड़ई छावत है
भूजा भूजावल याद बड़ा आवत है,
का का कहबू अर्पण बबुनी
गउआं न अब बिसरत अपनी ।
नमस्कार दोस्तों !
'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।
वाह री अर्पण बबुनी
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर अर्पण जी
ReplyDeleteबहुत ही आला,ma'am
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