कोई पिता के नाम से जाने जाते हैं, कोई दादा-परदादा के जमींदाराना 'स्टेटस' से पहचाने जाते हैं, किंतु यह पहचान पार्थिव देह की उपस्थिति तक ही संभव है । यह चरित्रानुसार व्यक्तिगत पहचान है, जिसे हम 'व्यक्तित्व' के दायरे में रखते हैं । किसी के स्वच्छ व्यक्तित्व हमें बेहद प्रभावित करता है, ऐसे व्यक्ति की खूबियाँ हमारे साथ ताउम्र जुड़ जाती हैं, परंतु इतिहास सबको सँजो कर नहीं रख पाते हैं । हाँ, ऐसे व्यक्ति अगर समाज व राष्ट्र को मानव कल्याणार्थ कुछ देकर जाता है, तो उसके इस 'अवदान' को हम 'कृतित्व' कहते हैं । मृत्यु के बाद यही कृतित्व ही 'अमर' रहता है । साहित्यकार और वैज्ञानिक अपने कृतित्व के कारण ही अमर हैं । अपने आविष्कार 'बल्ब' के कारण थॉमस अल्वा एडिसन जगप्रसिद्ध हैं, जगदीश चन्द्र बसु तो 'क्रेस्कोग्राफ' के कारण । आज गोस्वामी तुलसीदास से बड़े 'रामचरित मानस' है और 'मैला आँचल' है तो फणीश्वरनाथ रेणु है । कुछ कृतियों के पात्र ही इस कदर अमर हो गए हैं कि लेखक 'गौण' हो गए हैं, जैसे- शरलॉक होम्स (लेखक- आर्थर कानन डॉयल) और कभी तो पात्र को जीनेवाले अभिनेता का मूल नाम समष्टि से बाहर हो जाता है, जैसे- गब्बर सिंह (अभिनेता- अमज़द खान) । ऐसे कृतिकारों के जन्मस्थली भी मायने रखते हैं, पोरबन्दर कहने मात्र से महात्मा गाँधी स्मरण हो आते हैं, 'लमही' तो उपन्यास सम्राट प्रेमचंद के पर्याय हो गए हैं और महू छावनी सुनते ही डॉ0 आंबेडकर स्मरणीय हो आते हैं । 'बाबा साहब' पर आज मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, लगातार और अत्यधिक बार पद्मश्री हेतु नामित डॉ. सदानंद पॉल की प्रस्तुत अत्यंत लघु आलेख, आइये पढ़े तो ज़रा ...
'संविधान सभा' के सर्वेसर्वा पद अध्यक्ष द्वय डॉ0 सच्चिदानंद सिंहा, डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद से थे, संविधान सभा द्वारा 'भारतीय संविधान' के निर्माण हेतु 'प्रारूप समिति' गठित किया गया, जिनका अध्यक्ष डॉ0 आंबेडकर को बनाया गया । जबकि सचिव डॉ0 बी0 एन0 राव से थे । कई महत्त्वपूर्ण देशों के संविधानों के अध्ययन के लिए डॉ0 राव ने यात्रा किया था । फिर तो प्रारूप समिति में कई सदस्य थे । संविधान का प्रारूप निर्माण में सामूहिक प्रयास हुए थे, तो संविधान निर्माता व भारतीय संविधान के पिता व जनक जैसे उपनाम कहलाने का वैज्ञानिक आधार क्या है? वहीं संवैधानिक आरक्षण का आधार आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक आदि रूप से शोषित व वंचित समाज के वर्ग को आधार बनाया गया था, जिनमें अनुसूचित जाति व जनजातियाँ समादृत थी, तो पिछड़ा वर्ग भी? आज जो ओबीसी है, वो डॉ0 राम मनोहर लोहिया, श्री वी0पी0 मंडल, श्री कर्पूरी ठाकुर, श्री वी0 पी0 सिंह, श्री शारद यादव इत्यादि के कारण है । ऐसा कहा जाता है, भारतीय संविधान के लिए बहस के दौरान डॉ0 आंबेडकर ने 'राज्यसभा' के अस्तित्व को 'बैकडोर' से अपराधी-मनोवृत्तियों के लोगों का आना बताते हुए इसके अवधारणा को नकारा था। सोचिए, अगर संविधान में राज्यसभा का अस्तित्व नहीं होता, तो डॉ0 आंबेडकर न 'विधि मंत्री' बन पाते, न भविष्य के प्रधानमंत्री! क्योंकि वे 'लोकसभा' चुनाव वे हार गए थे और मंत्री बना रहने के लिए 6 माह के अंदर सांसद बनना अनिवार्य है।
नमस्कार दोस्तों !
'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।
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