माता, पिता और गुरु न केवल प्रत्येक दिन पूजनीय है, अपितु सेकंड के अनंत हिस्सों में विभक्त-अंश लिए भी आदरणीय हैं । किसी संस्था या प्रतिमानों को स्थापित करने के लिए एक दिवस की आवश्यकता पड़ती है, ऐसे में मिति- 13.05.2018 को मातृ-दिवस है । संसार की सभी माताओं और देवियों को हमारे तरफ से हार्दिक शुभकामनायें । मातृ-दिवस (Mothers Day) पर एक कविता, जो अत्यधिक बार पद्मश्री हेतु नामित डॉ.सदानंद पॉल की है-- को पढ़ते हुए हम युवा दिलों पर राज करने को तत्पर उपन्यास 'इंडियापा' पर आएंगे...., द्रष्टव्य है कविता--
"माँ तब,
पत्नी बनी किसी की जब ।
प्रेमी ने किए प्रेमिका से प्रेम तबतक,
वासना में लिप्त पति नहीं बना जबतक ।
सहज नहीं हुई पत्नी, हुई जबरन प्रथम सहवास,
पति ने कर योनि क्षत-विक्षत, लिए आनंदाहसास।
पेडू दर्द से छटपटाती पत्नी, यह कैसी केमिस्ट्री है,
पति के लिए 'विवाह' सिर्फ 'रेप' की रजिस्ट्री है ।
रोज कर वीर्यपात, यूटेरस भरती चली गयी,
'भ्रूण' की पंखुरी ने कहा- पत्नी पेट'से हो गयी ।
रोज मिलने लगी, सेब-काजू-विटामिन,
पत्नी भी 'औरत' बन इनमें हो गई तल्लीन ।
एक दिन पति, देवर, सास, ननद ने कहा, गिरा दो,
भ्रूण में बेटी है, हाँ, बेटी है, बेटी है, गिरा दो ।
एक रात बेहोश कर गर्भपात करा दी गयी,
नमस्कार दोस्तों !
'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।
"माँ तब,
पत्नी बनी किसी की जब ।
प्रेमी ने किए प्रेमिका से प्रेम तबतक,
वासना में लिप्त पति नहीं बना जबतक ।
सहज नहीं हुई पत्नी, हुई जबरन प्रथम सहवास,
पति ने कर योनि क्षत-विक्षत, लिए आनंदाहसास।
पेडू दर्द से छटपटाती पत्नी, यह कैसी केमिस्ट्री है,
पति के लिए 'विवाह' सिर्फ 'रेप' की रजिस्ट्री है ।
रोज कर वीर्यपात, यूटेरस भरती चली गयी,
'भ्रूण' की पंखुरी ने कहा- पत्नी पेट'से हो गयी ।
रोज मिलने लगी, सेब-काजू-विटामिन,
पत्नी भी 'औरत' बन इनमें हो गई तल्लीन ।
एक दिन पति, देवर, सास, ननद ने कहा, गिरा दो,
भ्रूण में बेटी है, हाँ, बेटी है, बेटी है, गिरा दो ।
एक रात बेहोश कर गर्भपात करा दी गयी,
न कंडोम, ना कॉपर-टी, खुला खेल फर्रूखाबादी।
अहसास हुई, औरत ही औरत की ख़ाला है,
संभोग, सहवास, चिरयौवना ही गड़बड़झाला है।
फिर से वही खेल, सोची, क्या योनि ही औरत है,
ओठ, छाती, कमर, नितम्ब ही क्या औरत है ?
पति का अर्थ सिर्फ प्रजनन भर है, यही प्रेम है,
सृष्टि की रचना के लिए ऐसी व्यायाम, तो शेम है।
ससुराल जो गेंदाफूल थी, आज भेड़ियाशाला है,
सुना वे सब खुश है इसबार, गोविंदा आला है।
गर्भ से हुई पुत्रपात, छठी भोज, बोर्डिंग का सफर,
अहसास हुई, औरत ही औरत की ख़ाला है,
संभोग, सहवास, चिरयौवना ही गड़बड़झाला है।
फिर से वही खेल, सोची, क्या योनि ही औरत है,
ओठ, छाती, कमर, नितम्ब ही क्या औरत है ?
पति का अर्थ सिर्फ प्रजनन भर है, यही प्रेम है,
सृष्टि की रचना के लिए ऐसी व्यायाम, तो शेम है।
ससुराल जो गेंदाफूल थी, आज भेड़ियाशाला है,
सुना वे सब खुश है इसबार, गोविंदा आला है।
गर्भ से हुई पुत्रपात, छठी भोज, बोर्डिंग का सफर,
नहीं विश्राम, ताने मिले, दिन दर-दर, रात बेदर ।
मैं रह गयी पत्नी, मर्द पति का फिर वही खेल,
घिन्न आ गई, ज़िन्दगी से, पत्नी का पति ही जेल ।
पुत्र से भी घृणा हो गयी, बड़े होकर पति बनेंगे,
किसी लड़की से प्यार जता, 'रेप' की रजिस्ट्री करेंगे।
तब मैं भी सास बन, इस हादसे की गवाह रहूँगी,
यह कैसी सिलसिला, तब विरोध कर नहीं सकूंगी।
क्या ऐसे ही बनती है 'माँ', पतिव्रता, पुत्रव्रता,
एकल काव्यपाठ की भाँति, एकल रेपकथा ।
माँ मतलब कुंती, मरियम भी, द्रोपदी-गांधारी,
औरत देखती रही, शादी-सदी अंधा री !
अच्छी थी जब कुंवारी माँ बनी, हुए थे वीर बच्चे,
कर्ण, यीशु सच्चे थे, अबके बच्चे हैं लफंगे-लुच्चे ।
सभी माँ मिल, यह प्रण ले, नहीं करें कोई नवसृष्टि,
नहीं होंगे रेप वा करप्शन, नहीं रहेंगी तब कुदृष्टि ।"
मैं रह गयी पत्नी, मर्द पति का फिर वही खेल,
घिन्न आ गई, ज़िन्दगी से, पत्नी का पति ही जेल ।
पुत्र से भी घृणा हो गयी, बड़े होकर पति बनेंगे,
किसी लड़की से प्यार जता, 'रेप' की रजिस्ट्री करेंगे।
तब मैं भी सास बन, इस हादसे की गवाह रहूँगी,
यह कैसी सिलसिला, तब विरोध कर नहीं सकूंगी।
क्या ऐसे ही बनती है 'माँ', पतिव्रता, पुत्रव्रता,
एकल काव्यपाठ की भाँति, एकल रेपकथा ।
माँ मतलब कुंती, मरियम भी, द्रोपदी-गांधारी,
औरत देखती रही, शादी-सदी अंधा री !
अच्छी थी जब कुंवारी माँ बनी, हुए थे वीर बच्चे,
कर्ण, यीशु सच्चे थे, अबके बच्चे हैं लफंगे-लुच्चे ।
सभी माँ मिल, यह प्रण ले, नहीं करें कोई नवसृष्टि,
नहीं होंगे रेप वा करप्शन, नहीं रहेंगी तब कुदृष्टि ।"
आज मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं लेखक श्रीमान विनोद दूबे द्वारा प्रणीत उपन्यास इंडियापा पर लेखिका और अध्यापिका सुश्री चित्रा गुप्ता की समीक्षा....... । आइये, इसे भी पढ़ते हैं........
प्रस्तुत आलोच्य उपन्यास नवोदित लेखक विनोद दूबे द्वारा लिखित है । 'इंडियापा' नाम भी नितांत नूतन है और आकर्षक है भी । विनोद जी का यह प्रथम प्रयास कथानक और भाषा-शैली की दृष्टि से सराहनीय है । उपन्यास आत्मकथात्मक-शैली में लिखा गया है । फ़िनलैंड की बर्फीली हवाओं की सांय-सांय से बनारस की गलियों और यहाँ तक की संकरी गलियों का औपन्यासिक सफर निस्संदेह लाजवाब है । उपन्यास की आधारभूमि बनारस है ।
मध्यमवर्गीय परिवार की परम्पराओं का चित्रण पढ़कर लगेगा, जैसे- उनके ही विषय में व बारे में लिखा गया है । माँ और बहन का स्नेह और आदर.....! आज के युग में जातिगत रूढ़ियों की वेदी पर प्यार की खामोशी से की गई कुर्बानी पाठकवृन्द की आँखे नम करने में सक्षम है।
जहाज की नौकरी से अवगत कराया है । वहां के जीवन की अकेलापन की खामोशी की कहानी का वर्णन तारीफ़-ए-काबिल है । सबसे अच्छी बात है-- यहाँ जो दर्द है, उस दर्द में आवाज नहीं है, किन्तु पाठक को सुनाई देती है । अलगाव का दुःख आदमी को भी सालता है, यह बात लिखने की लेखक ने हिम्मत की है । मानवीय संवेदना और सहानुभूति की जरूरत सिर्फ महिलाओं को नहीं, पुरूष को भी जरूरत पड़ती है । साधुवाद !
कहानी में हास्य के छींटे भी है, जो गुदगुदाते हैं । फ़िल्मी गानों तथा भगवान शंकर का प्रसंग बरबस ही चेहरे पर मुस्कराहट ला देता है । इस प्रकार के अन्य प्रसंग भी घटनाओं के बीच-बीच में पढ़
ने को मिलेंगे ।
सुश्री चित्रा गुप्ता |
उपन्यास की भाषा कबीर की सधुक्कड़ी की याद दिलाती है । प्रसंगानुसार, हिंदी शब्दों के साथ-साथ विशेषत: उर्दू तथा आंचलिक शब्दों यथा-- सुधबूधन,चकर-पकर,गदहियागोल इत्यादि शब्दों का ख़ूबसूरती से प्रयोग किया गया है । माशाल्लाह; नए उपमान, मानकीपन तथा मानवीकरण प्रस्तुत उपन्यास में खू
बसूरती से तराशे गए हैं। जिस अंदाज में लैपटॉप प्रयोजनार्थ उपयोगित है, बढ़िया है । उसी अंदाज में पलकें बंद की, साइंस मैथ्स से मेरी अरेंज्ड मैरिज करवाई गई । बहुत सटीक । यह उपन्यास पाठक वृन्द को अदरक और इलायची की चाय जैसा अनिर्वचनीय आनन्द देगा । हाँ, मेरा ऐसा मानना है और 'इंडियापा' पढ़ने के बाद आप भी ऐसा ही सोचेंगे ।
नमस्कार दोस्तों !
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