मुजरिम वो भी होते हैं, जो जुर्म नहीं भी करते हैं, लेकिन कुछ ऐसे मुजरिम होते हैं, जो प्यार के मारे अनकहीं जुर्म कर जाते हैं, जो किसी कुंवारी को (पेट'से) गर्भावस्था में लाकर कहीं अन्यत्र छिप जाते हैं और इधर लड़की कुंवारी माँ बनने की जगहंसाई को अंगीकार करने की हिम्मत न दर्शाकर संतान को कचरे में व अनाथालय में छोड़ चली आती हैं । अनाथों के कोई ईश्वर नहीं होते ! लालन- पालन और उच्च शिक्षा प्राप्ति के बाद भी उनके खानदान का परिचय नहीं होने से उनकी/उनके शादी नहीं हो पाती है । क्या अब हम मानव नहीं रहे ? क्या हमारी संवेदनशीलता मर चुकी है ? हम इतने असंवेदित कैसे हो गए हैं ? तब बेकार है, हमारी शिक्षा, आत्मीयता और प्रवीणता । लानत है, हमारी सहृदयता । हाँ, कुछ ऐसी ही लघुकथा मैसेंजर ऑफ ऑर्ट में आइये हम पढ़ते है श्रीमान सौरभ शर्मा की लघुकथा 'यह कैसी सजा ?' .... इसे पढ़िए तो ज़रा......
यह कैसी सजा...!
यह कैसी सजा...!
समाज के दोगलेपन को दिखाती मार्मिक कहानी
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