आज के लेखक/लेखिका के बारे में क्या कहूँ , एकाध पुस्तक क्या छप गई और सोशल साईट पर दो-चार पोस्ट क्या लिख दिए तथा 1000 लाइक क्या आ गए , वे अपने आपको 'कामता प्रसाद गुरु' और 'देवकीनन्दन खत्री' समझने लग जाते हैं ।
.....और "फेसबुक" पर लिखा किसी 'नवलेखक' (जिनके अभी कोई किताब प्रकाशित नहीं हुए हैं) के पोस्ट की भाषा में बस "व्याकरणिक error" को ढूंढने लग जाते हैं, समझो 'व्याकरण गुरु' हो गए, एकाध पुस्तकवालों द्वारा तो कमेंट के रूप में बस उनका व्याकरणिक गलतियों का नौसिखिया डॉक्टर की भाँति पोस्टमॉर्टम करने लग जाते हैं ।
क्योंकि उन्हें ये मालूम नहीं होता कि 'दो नए शब्द' बनाने में किसी नवलेखक को कितने मेहनत करने पड़ते होंगे (क्योंकि वे सोने का कलम और चाँदी की चम्मची प्रकाशक को लेकर दुनिया में जो आये हैं), क्योंकि उन्हें यह मालूम नहीं होता कि '2 साल' का बच्चा जब पहली बार कुछ नया बोलता है तो परिवार के पूरा 'माहौल' उनके उस ख़ुशी का गुलाम हो जाता है , चाहे बोली में हकलाहट हो, तुतलाहट हो या जो भी नया वाक्य उस बच्चे ने सीखा हो ।
यदि हम यूँ ही 'व्याकरणवादी नामवरी सोच' को पाले रखेंगे तो 'हिंदी' का कितना भला या विकास होगा ....!! मैं कब्र में गड़े मुर्दे को उखाड़ने में रूचि नहीं लेता !
क्योंकि तब कर्नाटक वाले 'कन्नड़' ही सीखेंगे , महाराष्ट्र वाले 'मराठी', भोजपुर वाले 'भोजपुरी' .....!! फिर 'अंग' से अंगिका !!!
परंतु ऐसे भला कोई कहेगा ही नहीं तब , कि हमें हिंदी सीखना है , पढ़ना है और इसे लेकर जॉब करना है । जहां लोग डिजिटल इंडिया के साथ अंगुलियों और अंगूठे से सैर करते हुए, कलम को भूल गए हैं, वहीं आज मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं यांत्रिक अभियंता उज्ज्वल कुमार की हस्तलिखित कविता,जो 'की-बोर्ड' नहीं कलम से लिखी गयी हैं, तो आइए देर न करते हुए पढ़ ही डालते हैं....
क्योंकि उन्हें ये मालूम नहीं होता कि 'दो नए शब्द' बनाने में किसी नवलेखक को कितने मेहनत करने पड़ते होंगे (क्योंकि वे सोने का कलम और चाँदी की चम्मची प्रकाशक को लेकर दुनिया में जो आये हैं), क्योंकि उन्हें यह मालूम नहीं होता कि '2 साल' का बच्चा जब पहली बार कुछ नया बोलता है तो परिवार के पूरा 'माहौल' उनके उस ख़ुशी का गुलाम हो जाता है , चाहे बोली में हकलाहट हो, तुतलाहट हो या जो भी नया वाक्य उस बच्चे ने सीखा हो ।
यदि हम यूँ ही 'व्याकरणवादी नामवरी सोच' को पाले रखेंगे तो 'हिंदी' का कितना भला या विकास होगा ....!! मैं कब्र में गड़े मुर्दे को उखाड़ने में रूचि नहीं लेता !
क्योंकि तब कर्नाटक वाले 'कन्नड़' ही सीखेंगे , महाराष्ट्र वाले 'मराठी', भोजपुर वाले 'भोजपुरी' .....!! फिर 'अंग' से अंगिका !!!
परंतु ऐसे भला कोई कहेगा ही नहीं तब , कि हमें हिंदी सीखना है , पढ़ना है और इसे लेकर जॉब करना है । जहां लोग डिजिटल इंडिया के साथ अंगुलियों और अंगूठे से सैर करते हुए, कलम को भूल गए हैं, वहीं आज मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं यांत्रिक अभियंता उज्ज्वल कुमार की हस्तलिखित कविता,जो 'की-बोर्ड' नहीं कलम से लिखी गयी हैं, तो आइए देर न करते हुए पढ़ ही डालते हैं....
'मैं और मेरा स्वरूप'
( नोट :-- कृपया तस्वीर पर क्लिक करें । )
नमस्कार दोस्तों !
'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।
Is lekh ka naam ho sakta
ReplyDelete"Aaj ke samaj ka badalta swaroop"
Nice one ujjwal kumar,
keep writing
शुक्रिया !
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