फुटबॉलर से क्रिकेटर बने महेंद्र सिंह धौनी (MSD) ने 7 जुलाई को अपना 38वां जन्मदिन मनाए, वे 37 वर्ष की आयु पूर्ण किये । क़भी 'माही' ने जब बिहार के लिए अंडर-19 और रणजी खेले, तो प्रदर्शन इस कदर नहीं था कि उन्हें टीम इंडिया का कप्तान बना दिया जाता ! रणजी हेतु बिहार की टीम जितना रन बना सके थे, उनसे एक रन ज्यादा तो पंजाब की ओर से सिर्फ़ युवराज सिंह ने बनाये थे । टीम इंडिया में चयन के बाद भी प्रथम ODI में और वो भी बांग्लादेश के विरुद्ध बनाए शून्य रन और गिफ्ट में रन आउट भी ! क्रिकेट और किस्मत एक-दूसरे के पूरक हैं, तभी तो RD (राहुल द्रविड़) चल नहीं पाए और MSD को भार मिलते ही वो चल निकले ! इनसे पहले 183 नाबाद को कौन भूल सका है आजतक ? क्रिकेट और करिश्मा एक-दूसरे के पर्याय हैं -- की भांति प्रेम और विवाह में भी धौनी के लिए करिश्मा ही जागा । क्रिकेटीय बुढ़ापा को मात देते हुए हाल ही में IPL चैंपियन बना, तो लगा कि सभी तरह के विश्वकप विजेता अभी चुके नहीं हैं । हाँ, दमदार और शांतचित्त खिलाड़ी को उनके जन्मदिवस पर बिना तोहफा दिए और बिना डिस्टर्ब किए शांतचित्त शुभकामनाएं ! आज मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, धौनी की महानता की एक छोटी सी कहानी --
वह 2000 का समय था, जब आप 'बिहारीपन' को छोड़, झारखंड के निवासी हो गए थे। उस समय शहर-शहर में टूर्नामेंटों की झड़ी होते रहती थी । आप इसी दौरान हमारे शहर में भी खेलने आये । लंबी दाढ़ी और लंबे बालों के बीच हमारे शहर के स्टेडियम में छक्कों की बरसात आपके खेल को चमत्कारिक अंदाज़ दे रहे थे । खेल खत्म होने के बाद उस उम्र में 'मैं' क्रिकेट खेल को न समझने के बावजूद, आपके 'बल्लेबाजी' का दीवाना हो, मैदान में आपसे जा मिला । चूँकि यह आम टूर्नामेंट थी और आप 'ब्रांड' नहीं बने थे, परंतु महान इंसान की तरह आपने 'मुझे' गोद में लेकर एक शानदार झप्पी दिया, लेकिन अफसोस उम्र के उस दौर में मेरे पास मोबाइल न था, लेकिन उस झप्पी का 'अपनापन' मुझे आज भी 'बिहारीपन' की झलक दिखा जाती है।
-- प्रधान प्रशासी-सह-प्रधान संपादक ।
वह 2000 का समय था, जब आप 'बिहारीपन' को छोड़, झारखंड के निवासी हो गए थे। उस समय शहर-शहर में टूर्नामेंटों की झड़ी होते रहती थी । आप इसी दौरान हमारे शहर में भी खेलने आये । लंबी दाढ़ी और लंबे बालों के बीच हमारे शहर के स्टेडियम में छक्कों की बरसात आपके खेल को चमत्कारिक अंदाज़ दे रहे थे । खेल खत्म होने के बाद उस उम्र में 'मैं' क्रिकेट खेल को न समझने के बावजूद, आपके 'बल्लेबाजी' का दीवाना हो, मैदान में आपसे जा मिला । चूँकि यह आम टूर्नामेंट थी और आप 'ब्रांड' नहीं बने थे, परंतु महान इंसान की तरह आपने 'मुझे' गोद में लेकर एक शानदार झप्पी दिया, लेकिन अफसोस उम्र के उस दौर में मेरे पास मोबाइल न था, लेकिन उस झप्पी का 'अपनापन' मुझे आज भी 'बिहारीपन' की झलक दिखा जाती है।
-- प्रधान प्रशासी-सह-प्रधान संपादक ।
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