"समय का प्रबंधन जीवन में बहुत महत्व रखता है और समय को सीमाओं में हम स्वयं ही बांधते हैं । जब हमारा काम ही हमारे लिए सब कुछ हो तो समय की सीमा कोई मायने नहीं रखती। मेरे लिए फ्रीलांसिंग काम करने का अर्थ था कि अपनी शर्तों और अपनी इच्छा के अनुसार काम कर सकूँ । अपने घर-परिवार को पूरा समय दे सकूँ। यहाँ मैं अपने इस लक्ष्य में पूरी तरह से सफल रही ।" यह हम नहीं, जिनकी अक्षरशः शब्द और वाक्य हैं, उनसे ही इस माह के 'इनबॉक्स इंटरव्यू' में 'मैसेंजर ऑफ आर्ट' परिचित कराने जा रहा/रही है ।
उनसे पहले मैं खुद के बारे में (MoA के बहाने) अपने को बुदबुदाने से रोक नहीं पा रहा हूँ.... "विज्ञान का छात्र हूँ, साहित्य से कब दोस्ती हो गयी मालूम न चला, लेकिन नास्तिक विचारधारा होते हुए पहली धार्मिक किताब 'बाइबिल' 10 साल की उम्र में पढ़ा, 11 साल की उम्र में मैं बाइबिल अध्ययन में डिग्रीधारी हो गया और 12 सर्टिफिकेट प्राप्त किया । वर्ष 2016 में साइंस और धार्मिक विचारों के द्वंद में ऐसा फंसा कि फिर 'वेद' और 'कुरआन' भी पढ़ डाला, वैसे 'रामायण' और 'महाभारत' की कथा से दूरदर्शन के प्रसंगश: चक्षुदर्शन करा ली थी । आज की तारीख तक अगर गिनती को आत्मसात की जाय, तो लुगदी साहित्य से लेकर इंटरनेटीय संस्करण लेते हुए 5,375 किताबें पढ़ डाला है । जब भी साइंस की बात आती है, हिंदी माध्यम के छात्रों को विज्ञान की समझ को हिंदी में पढ़ने व जानने की लालसा लिए होती है, क्योंकि अंग्रेजी अभी भी हिन्दीभाषी छात्रों को न बुझती है और न ही उनका ज्ञान बुझाती है । तभी तो एक माध्यम या कड़ी, जो अंग्रेजी को आसान भाषा में पढ़ सुनायें । वैसे तो यह काम ईमानदारी से एक शिक्षक ही कर सकते हैं, लेकिन स्वाध्याय से भी कोई एक अच्छे अनुवादक की भूमिका निभा ही सकते हैं, लेकिन जब विज्ञान को छोड़ हम अगर अन्य भाषा पर आते हैं, तो साहित्य के हित को लेकर उनकी सारी विधाओं को जानने के प्रसंगश: तब एक स्वतन्त्र अनुवादक की भूमिका और भी महत्त्वपूर्ण हो जाती है....."
बकौल, श्रीमती रचना भोला 'यामिनी', "मैंने महान संतो, आध्यात्मिक विभूतियों, महान नारियों, नेताओं, कलाकारों व विविध क्षेत्रों से आए प्रेरक व्यक्तित्वों की जीवनी-लेखन के साथ अपने कार्य को आगे बढ़ाया है । संकल्प को मेरे जुनून और परिश्रम का साथ मिला तो शीघ्र ही पुस्तकें प्रकाशित होने लगी । मूल लेखन के साथ ही मैं अंग्रेजी़ से हिंदी अनुवाद में भी रुचि रखती हूँ । धीरे-धीरे अनुवाद कार्य भी मेरे लेखन की एक अभिन्न अंग होती चली गयी ।मौलिक लेखन में जीवनी साहित्य, धर्म, पत्रकारिता, समाज, अध्यात्म, साहित्य, नारीवादी संघर्ष, बाल साहित्य, पेरेंटिंग इत्यादि विविध विषयों पर 50 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। अनुवाद के क्षेत्र में राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय ख्याति के लेखकों की 150 से अधिक कृतियों का अंग्रेज़ी से हिंदी में अनुवाद कर चुकी हूँ ।"
'मैसेंजर ऑफ आर्ट ' के प्रस्तुत अंक में व जारी माह के 'इनबॉक्स इंटरव्यू' में 14 गझिन प्रश्नों के बिल्कुल आसान जवाब दे रही हैं, सम्मानित अनुवादक श्रीमती रचना भोला 'यामिनी' , जिनमें सवाल तो पूर्व के ही हैं, परंतु जवाब बिल्कुल अलग व निराली है ! आइये, पढ़िए....
'इनबॉक्स इंटरव्यू' पढ़ने से पहले श्रीमती रचना भोला 'यामिनी’ को जानते हैं, उन्हीं की जुबानी यानी 'बकलमखुद'......
".....जन्म 9 फरवरी 1973 फरीदाबाद, हरियाणा में हुई । मेरी माँ श्रीमती उषा सूद 'शिवांगी’ स्कूल में प्राध्यापिका थी और पिताजी श्री शिव कुमार सूद स्नातकोत्तर डिप्लोमा कोर्स से जुड़े शैक्षिक कॉलेज में प्रशासनिक प्रमुख के पद पर रहे। हम तीन भाई-बहन हैं। मेरे परिवार में मुझसे छोटा एक भाई और एक बहन है। मेरा भाई इन दिनों एक विख्यात मेडिकल फर्म में उच्च पद पर आसीन हैं तथा अपने काम के सिलसिले में प्रायः विदेशी दौरों पर रहते हैं । मेरी छोटी बहन समाजसेविका हैं ।
मेरी प्रारंभिक शिक्षा फरीदाबाद में ही हुई। मैंने फरीदाबाद के सरकारी कॉलेज से वाणिज्य में स्नातक होने के बाद नई दिल्ली से पत्रकारिता में डिप्लोमा प्राप्त की, फिर हिंदी में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की । कुछ समय तक 'भारत स्काउट्स एंड गाइड' में कार्यरत रही, परंतु सुबह से शाम तक नौकरी और अवकाशशून्य के कारण मेरे अंदर की साहित्यरूपी संसार विलख पड़ी और यायावरी मन कलप उठी । मैंने नौकरी से त्यागपत्र देकर स्वतंत्र रूप से लेखन व अनुवाद के क्षेत्र में कदम रखी ।
बाल्यावस्था से ही घर में पढ़ने और सीखने-सिखाने का अद्भुत परिवेश था। मेरी माँ के निजी पुस्तकालय में इतनी पुस्तकें थी कि गुड़ियों से खेलने की आयु में ही मैं पुस्तकालय की स्थायी सदस्या बन गई । उन्होंने ही मेरी इस प्रवृत्ति को प्रोत्साहित की । जब वे स्कूल जाती, तो उस दौरान हम भाई-बहनों का कुछ समय नाना-नानी के पास व्यतीत होते ! नाना जी की स्वच्छन्द विचारधारा, फिर प्राणों को भारतीय संस्कृति की मिट्टी से सींचने वाली नानी माँ-- इन दो जनों की उपस्थिति ने मेरे जीवन को बहुत प्रभावित किया। जब आज पूरे अधिकार से पौराणिक प्रसंगों, भारतीय ग्रंथों व महाकाव्यों पर चर्चा करती हूँ, तो मन अनायास ही उनके प्रति आभार से भर उठता है। इस तरह पूर्वी और पाश्चात्य सभ्यता के अनमोल रत्नों से मेरी मंजूषा समृद्ध होती चली गई।
....विवाह 20 नवंबर 1995 में श्रीमान संजय भोला 'धीर’ से । वे स्वयं उम्दा कलाकार व लेखक हैं। मुझे यह कहने में कोई गुरेज़ नहीं कि मेरे जीवन में लेखन को सबसे महत्वपूर्ण पद पर लाने वालों में उनका नाम सर्वोपरि है। ससुराल में सभी सदस्यों ने मेरी लेखनकला को सराहा और मेरे पति ने मुझे आगे बढ़ाने के लिए हर संभव योगदान दिया। । वे सदा ही एक अच्छे आलोचक की भूमिका भी निभाते आए हैं। मेरी प्रत्येक पुस्तक और अनुवाद का अंतिम ड्राफ्ट वे अवश्य पढ़ते हैं और अपनी राय भी देते हैं। कुछ अनुवाद व लेखन-प्रोजेक्ट्स पर हमने मिलकर काम भी किया है।
विवाह के बाद मुझे उनके साथ भारत के अलग-अलग प्रांतों व हिस्सों का भ्रमण करने का सुअवसर प्राप्त हुई है, वे भी घूमने-फिरने का बहुत शौक रखते हैं। भारत की महान सभ्यता और संस्कृति को अपनी आँखों से देखने का यह अवसर मेरे जीवन के अनुभवों को समृद्ध करने का साधन बना। मैंने उस संसार को भी देखा और जाना जो कित़ाबों से परे, यथार्थ की धरातल पर साँस लेता है। आज जब मेरे लेखन में भारतीय माटी की गंध मिलती है, तो अनायास ही मन उनके प्रति श्रद्धा से भर जाता है, जो मुझे उस संसार से परिचित कराने के कारक बने। सच में, लोगों से मिले बिना, उनके बीच जाए बिना, उनके जीवन को निकट से देखे बिना, किसी के बारे में नहीं लिख सकते हैं ! आज भी समय मिलते ही हम कहीं न कहीं घूमने निकल जाते हैं और जब वापिस आते हैं तो अनुभवों की पोटली पहले से कहीं अधिक भरपूर भरी होती है, मानो प्रकृति हमें अपनी संजीवनी का उपहार दे गई हो। हमारा एक बेटा है। जिसका नाम कुशल है। उसने इसी वर्ष स्नातक की डिग्री ली है। कला के प्रति उनका रुझान मेरे लिए और मेरे परिवार के लिए किसी वरदान से कम नहीं है।"
अब श्रीमती रचना भोला 'यामिनी' से 'इनबॉक्स इंटरव्यू' में होइए रू-ब-रू.........
प्र.(1.)आपके कार्यों को इंटरनेट के माध्यम से जाना । इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र के आईडिया-संबंधी 'ड्राफ्ट' को सुस्पष्ट कीजिये ?
उ:-
मैं लेखन व अनुवाद के क्षेत्र से जुड़ी हूँ। यही मेरे जीवन का ध्येय है और यही मेरी आजीविका का साधन भी है। मैं अक्सर कहती हूँ कि अपने पैशन से प्रोफेशन तक की यह यात्रा मेरे जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि रही है। इसके अतिरिक्त अपने आसपास के जीवन को और बेहतर बनाने के संकल्प के साथ जीवन जी रही हूँ। अपने लेखन के माध्यम से प्रेम और सकारात्मकता का संदेश प्रचारित करना चाहती हूँ।
प्र.(2.)आप किसतरह के पृष्ठभूमि से आये हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
उ:-
मैं दिल्ली एनसीआर के इलाके से हूँ। शहरी पृष्ठभूमि से ही हूँ, किंतु अवसर पाते ही प्रकृति की ममतामयी गोद में जा पहुँचती हूँ। मेरे माता-पिता शैक्षणिक क्षेत्र से थे, इसलिए घर में ही पढ़ने-पढ़ाने का सहज परिवेश मिला। माँ के निजी पुस्तकालय से पढ़ने का जो शौक मिला तो वह आज तक जारी है। पहले-पहल पत्र-पत्रिकाओं के लिए लिखती थी। लिखने और पढ़ने के शौक ने कोई और नौकरी नहीं करने दी और मैं स्वतंत्र लेखन करने लगी। जीवनी साहित्य में अनेक पुस्तकें लिखीं और अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद भी करने लगी। अनेक जाने-माने राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर के लेखकों की पुस्तकों के अनुवाद का अवसर न केवल मिली, अपितु उनसे बहुत कुछ सीखी है, जो अब भी सीख रही हूँ ।
माँ और पिता जी ने सदैव मेरे लेखन को सराहा और उसे आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया। मेरी पुस्तक-प्रेम इतनी विख्यात थी कि मेरे जन्मदिन और मेरे जीवन से जुड़े हर अवसर पर मुझे पुस्तकें ही भेंट में दी जाती रही । माँ ने विश्वस्तरीय साहित्य, कला और सिनेमा के प्रति जो प्रेम मुझमें डाली, वह आज भी ज्यों की त्यों है और मेरे लेखन को निखारने में सदैव सहायक रही है । लेखन के लिए उपयुक्त बीज तो बचपन से ही बोए जा चुके थे। जब थोड़ा बड़ी हुई तो कलम स्वयं ही सपने बुनने लगी। मेरे बक्से में सहेजी डायरियों में लिखे शब्दों को पहली बार समाचार-पत्र और पत्रिकाओं में स्थान मिला तो लिखने के लिए भीतर से और भी प्रोत्साहित हुई । मुझे महापुरुषों के जीवनचरित्र बहुत आकर्षित करते थे। मेरे जीवन में वे भी प्रेरणा के एक स्रोत हैं। जब अपने लेखनकर्म को आगे लाने का समय आया, तो मेरा इस विषय की ओर रुझान होना स्वाभाविक ही था। मैंने विभिन्न क्षेत्रों के महापुरुषों की जीवनियाँ लिखने का संकल्प लिया, ताकि नई पीढ़ी उन विस्मृत होते जा रहे प्रेरणास्पद व्यक्तित्वों से प्रेरणा ग्रहण कर सके।
प्र.(3.)आपका जो कार्यक्षेत्र है, इनसे आमलोग किसतरह से इंस्पायर अथवा लाभान्वित हो सकते हैं ?
उ:-
मेरा लेखन दूसरों के लिए प्रेरणा व साकार बने, यह मेरी हार्दिक इच्छा रही है। मेरा मानना है कि यदि आपके लिखे शब्द किसी के जीवन में, किसी भी रूप में प्रेरणा का स्रोत बन सकते हैं तो उनकी इससे बड़ी सार्थकता क्या होगी। हाल ही में राजपाल एंड संस प्रकाशन से मेरी पुस्तक 'मन के मंजीरे’ प्रकाशित हुई है। ये लव नोट्स न केवल पाठकों द्वारा सराहे गए हैं, बल्कि मेरे पाठकों से मिली फीडबैक ने यह बताया कि पुस्तक अपने उद्देश्य में पूरी तरह सफल रही। मेरे लिए यह बहुत प्रसन्नता की बात है।
प्र.(4.)आपके कार्य में आये जिन रूकावटों,बाधाओं या परेशानियों से आप या संगठन रू-ब-रू हुए, उनमें से दो उद्धरण दें ?
उ:-
मुझे कभी अपने काम में किसी बाधा का सामना नहीं करनी पड़ी । काम करने के तरीकों में बदलाव जरूर आते रहे। मैंने समय के साथ अपने हुनर को निखारना जारी रखा। जो काम पहले हाथ से किया जाता था। अब पुस्तक का पहला अक्षर लिखने से लेकर अंतिम प्रारूप तक कंप्यूटर पर ही तैयार होता है। इस सिलसिले में तकनीकी बाधाएँ आती रहीं, परंतु लगन सच्ची थी, इसलिए कभी कोई रुकावट मेरे लेखन-प्रवाह को रोक नहीं सकी।
प्र.(5.)अपने कार्य क्षेत्र के लिए क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होना पड़ा अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के तो शिकार न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाये ?
उ:-
लेखन व अनुवाद के क्षेत्र से जुड़ने से पहले सरकारी नौकरी में थी। कुछ समय तक काम करने के बाद त्याग-पत्र दे दी और स्वतंत्र लेखन को ही जीवन का ध्येय बनाई । आरंभ में आर्थिक तौर पर दिक्कतें आती थीं, परंतु लंबे समय से इस क्षेत्र में, अपने कुछ सिद्धांतों और नियमों के साथ डटी हूँ इसलिए अब ऐसी कोई परेशानी नहीं आती। मेरा मानना है कि अगर हम अपने कार्य को पूरी ईमानदारी व निष्ठा से करते हैं तो समस्या कोई भी हो, हल उसके ठीक पीछे छिपा रहता है और स्वयं सामने आ जाता है।
प्र.(6.)आपने यही क्षेत्र क्यों चुना ? आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट थे या उनसबों ने राहें अलग पकड़ ली !
उ:-
जैसा कि मैंने पहले बताया। आरंभ से ही इसी क्षेत्र में रुचि थी और आगे चल कर यही व्यापक और व्याप्य होती चली गईं, फिर धीरे-धीरे मेरा जीवन इसी क्षेत्र के लिए पूर्णतया समर्पित हो गया। परिवार के सदस्यों के अलावा कलाकार व लेखक पति श्रीमान धीर संजय भोला का भरपूर सहयोग मिला। पुत्र 'कुशल' की रुचियाँ भी हमारी रुचियों से मेल खाती है, इसलिए घर में सहज ही रचनात्मक-परिवेश बना रहता है। अब लेखन और अनुवाद कार्य मेरे जीवन का काम भी है और विश्राम भी है। जब इन क़िताबों के बीच काम करके थक जाती हूँ तो इनके बीच जाकर ही पुनः तरोताज़ा भी हो जाती हूँ।
प्र.(7.)आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ? यह सभी सम्बन्ध से हैं या इतर हैं !
उ:-
यह क्षेत्र आम लोगों के लिए अब भी अबूझ पहेली बना है। यह मेरे लिए सौभाग्य है कि मुझे अपने काम के लिए सदैव सहृदय सहयोगी मिलते रहे हैं। उनमें से अधिकांश मेरी रक्तसंबंधी नहीं हैं।
प्र.(8.)आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ? इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं अथवा संस्कृति पर चोट पहुँचाने के कोई वजह ?
उ:-
मेरे कार्य से भारतीय संस्कृति प्रभावित हो अथवा न हो। मेरी ओर से सदा यही प्रयास रहता है कि सकारात्मक और सार्थक भारतीय मूल्यों का हनन न हो और इसकी विविधता में एकता का गुण बनी रहे ! जो इसकी सबसे बड़ी विशेषता रही है। सबको साथ ले कर चलने वाली अपनी भारतीय संस्कृति पर मुझे बहुत मान है।
प्र.(9.)भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में आप और आपके कार्य कितने कारगर साबित हो सकते हैं !
उ:-
भ्रष्टाचार मुक्त समाज और राष्ट्र के निर्माण में मेरी ओर से केवल इतना योगदान हो सकता है कि मैं अपनी ओर से भ्रष्ट आचरण न करूँ और न ही भ्रष्ट पद्धति को प्रोत्साहित करूँ !
प्र.(10.)इस कार्य के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे से इतर किसी प्रकार के सहयोग मिले या नहीं ? अगर हाँ, तो संक्षिप्त में बताइये ।
उ:-
जी नहीं ! मेरे क्षेत्र का इस प्रश्न से कोई संबंध नहीं है।
प्र.(11.)आपके कार्य क्षेत्र के कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी धोखा, केस या मुकद्दमे की परेशानियां झेलने पड़े हों ?
उ:-
जी नहीं ।
प्र.(12.)कोई किताब या पम्फलेट जो इस सम्बन्ध में प्रकाशित हों, तो बताएँगे ?
उ:-
जी नहीं ।
(संपादकीय हस्तक्षेप :-- अनुवादिका की स्वयं की कई किताबें आ चुकी हैं।)
प्र.(13.)इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, बताएँगे ?
उ:-
आत्मसंतोष और पाठकों को प्रेरणा व स्नेह का प्रतिदान दे पाना ही सबसे बड़ा पुरस्कार है। मेरे पाठक मुझे चाहते हैं, मेरे लेखन को सराहते हैं और अपने जीवन में उससे मिली प्रेरणा भी साझा करते हैं। मेरे लिए यही सबसे बड़ा पुरस्कार व सम्मान है।
प्र.(14.)आपके कार्य मूलतः कहाँ से संचालित हो रहे हैं तथा इसके विस्तार हेतु आप समाज और राष्ट्र को क्या सन्देश देना चाहेंगे ?
उ:-
मेरे कार्यालय घर में ही है। मैं अपना सारा काम यहीं से करती हूँ। स्वतंत्र रूप से कार्य करने का एक उद्देश्य यह भी है कि मैं अपने परिवार को समय दे सकूँ और मैं अपने मनोरथ में सफल रही। ईश्वर ने प्रत्येक मनुष्य को गुण व प्रतिभासंपन्न बनाया है। युवा पीढ़ी को चाहिए कि बाहरी दुनिया की चकाचौंध में खोने की बजाए वे अपने-अपने गुणों व प्रतिभा को निखारे व प्रत्येक बाधा को चुनौती मानकर उनका मुकाबला करे, तब सफलता निश्चित रूप से कदम चूमेगी !
मैसेंजर ऑफ़ आर्ट को इस साक्षात्कार के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
उनसे पहले मैं खुद के बारे में (MoA के बहाने) अपने को बुदबुदाने से रोक नहीं पा रहा हूँ.... "विज्ञान का छात्र हूँ, साहित्य से कब दोस्ती हो गयी मालूम न चला, लेकिन नास्तिक विचारधारा होते हुए पहली धार्मिक किताब 'बाइबिल' 10 साल की उम्र में पढ़ा, 11 साल की उम्र में मैं बाइबिल अध्ययन में डिग्रीधारी हो गया और 12 सर्टिफिकेट प्राप्त किया । वर्ष 2016 में साइंस और धार्मिक विचारों के द्वंद में ऐसा फंसा कि फिर 'वेद' और 'कुरआन' भी पढ़ डाला, वैसे 'रामायण' और 'महाभारत' की कथा से दूरदर्शन के प्रसंगश: चक्षुदर्शन करा ली थी । आज की तारीख तक अगर गिनती को आत्मसात की जाय, तो लुगदी साहित्य से लेकर इंटरनेटीय संस्करण लेते हुए 5,375 किताबें पढ़ डाला है । जब भी साइंस की बात आती है, हिंदी माध्यम के छात्रों को विज्ञान की समझ को हिंदी में पढ़ने व जानने की लालसा लिए होती है, क्योंकि अंग्रेजी अभी भी हिन्दीभाषी छात्रों को न बुझती है और न ही उनका ज्ञान बुझाती है । तभी तो एक माध्यम या कड़ी, जो अंग्रेजी को आसान भाषा में पढ़ सुनायें । वैसे तो यह काम ईमानदारी से एक शिक्षक ही कर सकते हैं, लेकिन स्वाध्याय से भी कोई एक अच्छे अनुवादक की भूमिका निभा ही सकते हैं, लेकिन जब विज्ञान को छोड़ हम अगर अन्य भाषा पर आते हैं, तो साहित्य के हित को लेकर उनकी सारी विधाओं को जानने के प्रसंगश: तब एक स्वतन्त्र अनुवादक की भूमिका और भी महत्त्वपूर्ण हो जाती है....."
बकौल, श्रीमती रचना भोला 'यामिनी', "मैंने महान संतो, आध्यात्मिक विभूतियों, महान नारियों, नेताओं, कलाकारों व विविध क्षेत्रों से आए प्रेरक व्यक्तित्वों की जीवनी-लेखन के साथ अपने कार्य को आगे बढ़ाया है । संकल्प को मेरे जुनून और परिश्रम का साथ मिला तो शीघ्र ही पुस्तकें प्रकाशित होने लगी । मूल लेखन के साथ ही मैं अंग्रेजी़ से हिंदी अनुवाद में भी रुचि रखती हूँ । धीरे-धीरे अनुवाद कार्य भी मेरे लेखन की एक अभिन्न अंग होती चली गयी ।मौलिक लेखन में जीवनी साहित्य, धर्म, पत्रकारिता, समाज, अध्यात्म, साहित्य, नारीवादी संघर्ष, बाल साहित्य, पेरेंटिंग इत्यादि विविध विषयों पर 50 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। अनुवाद के क्षेत्र में राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय ख्याति के लेखकों की 150 से अधिक कृतियों का अंग्रेज़ी से हिंदी में अनुवाद कर चुकी हूँ ।"
श्रीमती रचना भोला 'यामिनी' |
'इनबॉक्स इंटरव्यू' पढ़ने से पहले श्रीमती रचना भोला 'यामिनी’ को जानते हैं, उन्हीं की जुबानी यानी 'बकलमखुद'......
".....जन्म 9 फरवरी 1973 फरीदाबाद, हरियाणा में हुई । मेरी माँ श्रीमती उषा सूद 'शिवांगी’ स्कूल में प्राध्यापिका थी और पिताजी श्री शिव कुमार सूद स्नातकोत्तर डिप्लोमा कोर्स से जुड़े शैक्षिक कॉलेज में प्रशासनिक प्रमुख के पद पर रहे। हम तीन भाई-बहन हैं। मेरे परिवार में मुझसे छोटा एक भाई और एक बहन है। मेरा भाई इन दिनों एक विख्यात मेडिकल फर्म में उच्च पद पर आसीन हैं तथा अपने काम के सिलसिले में प्रायः विदेशी दौरों पर रहते हैं । मेरी छोटी बहन समाजसेविका हैं ।
मेरी प्रारंभिक शिक्षा फरीदाबाद में ही हुई। मैंने फरीदाबाद के सरकारी कॉलेज से वाणिज्य में स्नातक होने के बाद नई दिल्ली से पत्रकारिता में डिप्लोमा प्राप्त की, फिर हिंदी में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की । कुछ समय तक 'भारत स्काउट्स एंड गाइड' में कार्यरत रही, परंतु सुबह से शाम तक नौकरी और अवकाशशून्य के कारण मेरे अंदर की साहित्यरूपी संसार विलख पड़ी और यायावरी मन कलप उठी । मैंने नौकरी से त्यागपत्र देकर स्वतंत्र रूप से लेखन व अनुवाद के क्षेत्र में कदम रखी ।
बाल्यावस्था से ही घर में पढ़ने और सीखने-सिखाने का अद्भुत परिवेश था। मेरी माँ के निजी पुस्तकालय में इतनी पुस्तकें थी कि गुड़ियों से खेलने की आयु में ही मैं पुस्तकालय की स्थायी सदस्या बन गई । उन्होंने ही मेरी इस प्रवृत्ति को प्रोत्साहित की । जब वे स्कूल जाती, तो उस दौरान हम भाई-बहनों का कुछ समय नाना-नानी के पास व्यतीत होते ! नाना जी की स्वच्छन्द विचारधारा, फिर प्राणों को भारतीय संस्कृति की मिट्टी से सींचने वाली नानी माँ-- इन दो जनों की उपस्थिति ने मेरे जीवन को बहुत प्रभावित किया। जब आज पूरे अधिकार से पौराणिक प्रसंगों, भारतीय ग्रंथों व महाकाव्यों पर चर्चा करती हूँ, तो मन अनायास ही उनके प्रति आभार से भर उठता है। इस तरह पूर्वी और पाश्चात्य सभ्यता के अनमोल रत्नों से मेरी मंजूषा समृद्ध होती चली गई।
....विवाह 20 नवंबर 1995 में श्रीमान संजय भोला 'धीर’ से । वे स्वयं उम्दा कलाकार व लेखक हैं। मुझे यह कहने में कोई गुरेज़ नहीं कि मेरे जीवन में लेखन को सबसे महत्वपूर्ण पद पर लाने वालों में उनका नाम सर्वोपरि है। ससुराल में सभी सदस्यों ने मेरी लेखनकला को सराहा और मेरे पति ने मुझे आगे बढ़ाने के लिए हर संभव योगदान दिया। । वे सदा ही एक अच्छे आलोचक की भूमिका भी निभाते आए हैं। मेरी प्रत्येक पुस्तक और अनुवाद का अंतिम ड्राफ्ट वे अवश्य पढ़ते हैं और अपनी राय भी देते हैं। कुछ अनुवाद व लेखन-प्रोजेक्ट्स पर हमने मिलकर काम भी किया है।
विवाह के बाद मुझे उनके साथ भारत के अलग-अलग प्रांतों व हिस्सों का भ्रमण करने का सुअवसर प्राप्त हुई है, वे भी घूमने-फिरने का बहुत शौक रखते हैं। भारत की महान सभ्यता और संस्कृति को अपनी आँखों से देखने का यह अवसर मेरे जीवन के अनुभवों को समृद्ध करने का साधन बना। मैंने उस संसार को भी देखा और जाना जो कित़ाबों से परे, यथार्थ की धरातल पर साँस लेता है। आज जब मेरे लेखन में भारतीय माटी की गंध मिलती है, तो अनायास ही मन उनके प्रति श्रद्धा से भर जाता है, जो मुझे उस संसार से परिचित कराने के कारक बने। सच में, लोगों से मिले बिना, उनके बीच जाए बिना, उनके जीवन को निकट से देखे बिना, किसी के बारे में नहीं लिख सकते हैं ! आज भी समय मिलते ही हम कहीं न कहीं घूमने निकल जाते हैं और जब वापिस आते हैं तो अनुभवों की पोटली पहले से कहीं अधिक भरपूर भरी होती है, मानो प्रकृति हमें अपनी संजीवनी का उपहार दे गई हो। हमारा एक बेटा है। जिसका नाम कुशल है। उसने इसी वर्ष स्नातक की डिग्री ली है। कला के प्रति उनका रुझान मेरे लिए और मेरे परिवार के लिए किसी वरदान से कम नहीं है।"
अब श्रीमती रचना भोला 'यामिनी' से 'इनबॉक्स इंटरव्यू' में होइए रू-ब-रू.........
प्र.(1.)आपके कार्यों को इंटरनेट के माध्यम से जाना । इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र के आईडिया-संबंधी 'ड्राफ्ट' को सुस्पष्ट कीजिये ?
उ:-
मैं लेखन व अनुवाद के क्षेत्र से जुड़ी हूँ। यही मेरे जीवन का ध्येय है और यही मेरी आजीविका का साधन भी है। मैं अक्सर कहती हूँ कि अपने पैशन से प्रोफेशन तक की यह यात्रा मेरे जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि रही है। इसके अतिरिक्त अपने आसपास के जीवन को और बेहतर बनाने के संकल्प के साथ जीवन जी रही हूँ। अपने लेखन के माध्यम से प्रेम और सकारात्मकता का संदेश प्रचारित करना चाहती हूँ।
उ:-
मैं दिल्ली एनसीआर के इलाके से हूँ। शहरी पृष्ठभूमि से ही हूँ, किंतु अवसर पाते ही प्रकृति की ममतामयी गोद में जा पहुँचती हूँ। मेरे माता-पिता शैक्षणिक क्षेत्र से थे, इसलिए घर में ही पढ़ने-पढ़ाने का सहज परिवेश मिला। माँ के निजी पुस्तकालय से पढ़ने का जो शौक मिला तो वह आज तक जारी है। पहले-पहल पत्र-पत्रिकाओं के लिए लिखती थी। लिखने और पढ़ने के शौक ने कोई और नौकरी नहीं करने दी और मैं स्वतंत्र लेखन करने लगी। जीवनी साहित्य में अनेक पुस्तकें लिखीं और अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद भी करने लगी। अनेक जाने-माने राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर के लेखकों की पुस्तकों के अनुवाद का अवसर न केवल मिली, अपितु उनसे बहुत कुछ सीखी है, जो अब भी सीख रही हूँ ।
माँ और पिता जी ने सदैव मेरे लेखन को सराहा और उसे आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया। मेरी पुस्तक-प्रेम इतनी विख्यात थी कि मेरे जन्मदिन और मेरे जीवन से जुड़े हर अवसर पर मुझे पुस्तकें ही भेंट में दी जाती रही । माँ ने विश्वस्तरीय साहित्य, कला और सिनेमा के प्रति जो प्रेम मुझमें डाली, वह आज भी ज्यों की त्यों है और मेरे लेखन को निखारने में सदैव सहायक रही है । लेखन के लिए उपयुक्त बीज तो बचपन से ही बोए जा चुके थे। जब थोड़ा बड़ी हुई तो कलम स्वयं ही सपने बुनने लगी। मेरे बक्से में सहेजी डायरियों में लिखे शब्दों को पहली बार समाचार-पत्र और पत्रिकाओं में स्थान मिला तो लिखने के लिए भीतर से और भी प्रोत्साहित हुई । मुझे महापुरुषों के जीवनचरित्र बहुत आकर्षित करते थे। मेरे जीवन में वे भी प्रेरणा के एक स्रोत हैं। जब अपने लेखनकर्म को आगे लाने का समय आया, तो मेरा इस विषय की ओर रुझान होना स्वाभाविक ही था। मैंने विभिन्न क्षेत्रों के महापुरुषों की जीवनियाँ लिखने का संकल्प लिया, ताकि नई पीढ़ी उन विस्मृत होते जा रहे प्रेरणास्पद व्यक्तित्वों से प्रेरणा ग्रहण कर सके।
प्र.(3.)आपका जो कार्यक्षेत्र है, इनसे आमलोग किसतरह से इंस्पायर अथवा लाभान्वित हो सकते हैं ?
उ:-
मेरा लेखन दूसरों के लिए प्रेरणा व साकार बने, यह मेरी हार्दिक इच्छा रही है। मेरा मानना है कि यदि आपके लिखे शब्द किसी के जीवन में, किसी भी रूप में प्रेरणा का स्रोत बन सकते हैं तो उनकी इससे बड़ी सार्थकता क्या होगी। हाल ही में राजपाल एंड संस प्रकाशन से मेरी पुस्तक 'मन के मंजीरे’ प्रकाशित हुई है। ये लव नोट्स न केवल पाठकों द्वारा सराहे गए हैं, बल्कि मेरे पाठकों से मिली फीडबैक ने यह बताया कि पुस्तक अपने उद्देश्य में पूरी तरह सफल रही। मेरे लिए यह बहुत प्रसन्नता की बात है।
प्र.(4.)आपके कार्य में आये जिन रूकावटों,बाधाओं या परेशानियों से आप या संगठन रू-ब-रू हुए, उनमें से दो उद्धरण दें ?
उ:-
मुझे कभी अपने काम में किसी बाधा का सामना नहीं करनी पड़ी । काम करने के तरीकों में बदलाव जरूर आते रहे। मैंने समय के साथ अपने हुनर को निखारना जारी रखा। जो काम पहले हाथ से किया जाता था। अब पुस्तक का पहला अक्षर लिखने से लेकर अंतिम प्रारूप तक कंप्यूटर पर ही तैयार होता है। इस सिलसिले में तकनीकी बाधाएँ आती रहीं, परंतु लगन सच्ची थी, इसलिए कभी कोई रुकावट मेरे लेखन-प्रवाह को रोक नहीं सकी।
उ:-
लेखन व अनुवाद के क्षेत्र से जुड़ने से पहले सरकारी नौकरी में थी। कुछ समय तक काम करने के बाद त्याग-पत्र दे दी और स्वतंत्र लेखन को ही जीवन का ध्येय बनाई । आरंभ में आर्थिक तौर पर दिक्कतें आती थीं, परंतु लंबे समय से इस क्षेत्र में, अपने कुछ सिद्धांतों और नियमों के साथ डटी हूँ इसलिए अब ऐसी कोई परेशानी नहीं आती। मेरा मानना है कि अगर हम अपने कार्य को पूरी ईमानदारी व निष्ठा से करते हैं तो समस्या कोई भी हो, हल उसके ठीक पीछे छिपा रहता है और स्वयं सामने आ जाता है।
उ:-
जैसा कि मैंने पहले बताया। आरंभ से ही इसी क्षेत्र में रुचि थी और आगे चल कर यही व्यापक और व्याप्य होती चली गईं, फिर धीरे-धीरे मेरा जीवन इसी क्षेत्र के लिए पूर्णतया समर्पित हो गया। परिवार के सदस्यों के अलावा कलाकार व लेखक पति श्रीमान धीर संजय भोला का भरपूर सहयोग मिला। पुत्र 'कुशल' की रुचियाँ भी हमारी रुचियों से मेल खाती है, इसलिए घर में सहज ही रचनात्मक-परिवेश बना रहता है। अब लेखन और अनुवाद कार्य मेरे जीवन का काम भी है और विश्राम भी है। जब इन क़िताबों के बीच काम करके थक जाती हूँ तो इनके बीच जाकर ही पुनः तरोताज़ा भी हो जाती हूँ।
प्र.(7.)आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ? यह सभी सम्बन्ध से हैं या इतर हैं !
उ:-
यह क्षेत्र आम लोगों के लिए अब भी अबूझ पहेली बना है। यह मेरे लिए सौभाग्य है कि मुझे अपने काम के लिए सदैव सहृदय सहयोगी मिलते रहे हैं। उनमें से अधिकांश मेरी रक्तसंबंधी नहीं हैं।
उ:-
मेरे कार्य से भारतीय संस्कृति प्रभावित हो अथवा न हो। मेरी ओर से सदा यही प्रयास रहता है कि सकारात्मक और सार्थक भारतीय मूल्यों का हनन न हो और इसकी विविधता में एकता का गुण बनी रहे ! जो इसकी सबसे बड़ी विशेषता रही है। सबको साथ ले कर चलने वाली अपनी भारतीय संस्कृति पर मुझे बहुत मान है।
उ:-
भ्रष्टाचार मुक्त समाज और राष्ट्र के निर्माण में मेरी ओर से केवल इतना योगदान हो सकता है कि मैं अपनी ओर से भ्रष्ट आचरण न करूँ और न ही भ्रष्ट पद्धति को प्रोत्साहित करूँ !
उ:-
जी नहीं ! मेरे क्षेत्र का इस प्रश्न से कोई संबंध नहीं है।
प्र.(11.)आपके कार्य क्षेत्र के कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी धोखा, केस या मुकद्दमे की परेशानियां झेलने पड़े हों ?
उ:-
जी नहीं ।
उ:-
जी नहीं ।
(संपादकीय हस्तक्षेप :-- अनुवादिका की स्वयं की कई किताबें आ चुकी हैं।)
उ:-
आत्मसंतोष और पाठकों को प्रेरणा व स्नेह का प्रतिदान दे पाना ही सबसे बड़ा पुरस्कार है। मेरे पाठक मुझे चाहते हैं, मेरे लेखन को सराहते हैं और अपने जीवन में उससे मिली प्रेरणा भी साझा करते हैं। मेरे लिए यही सबसे बड़ा पुरस्कार व सम्मान है।
उ:-
मेरे कार्यालय घर में ही है। मैं अपना सारा काम यहीं से करती हूँ। स्वतंत्र रूप से कार्य करने का एक उद्देश्य यह भी है कि मैं अपने परिवार को समय दे सकूँ और मैं अपने मनोरथ में सफल रही। ईश्वर ने प्रत्येक मनुष्य को गुण व प्रतिभासंपन्न बनाया है। युवा पीढ़ी को चाहिए कि बाहरी दुनिया की चकाचौंध में खोने की बजाए वे अपने-अपने गुणों व प्रतिभा को निखारे व प्रत्येक बाधा को चुनौती मानकर उनका मुकाबला करे, तब सफलता निश्चित रूप से कदम चूमेगी !
"आप यूं ही हँसती रहें, मुस्कराती रहें, स्वस्थ रहें, सानन्द रहें "..... 'मैसेंजर ऑफ ऑर्ट' की ओर से सहस्रशः शुभ मंगलकामनाएँ !
नमस्कार दोस्तों !
मैसेंजर ऑफ़ आर्ट' में आपने 'इनबॉक्स इंटरव्यू' पढ़ा । आपसे समीक्षा की अपेक्षा है, तथापि आप स्वयं या आपके नज़र में इसतरह के कोई भी तंत्र के गण हो, तो हम इस इंटरव्यू के आगामी कड़ी में जरूर जगह देंगे, बशर्ते वे हमारे 14 गझिन सवालों के सत्य, तथ्य और तर्कपूर्ण जवाब दे सके !
हमारा email है:- messengerofart94@gmail.com
'मैसेंजर ऑफ आर्ट 'इनबॉक्स इंटरव्यू' के लिए मुझे चुनने का हार्दिक आभार. आपके स्नेह से अभिभूत हूँ किन्तु मैं अनुवाद की मल्लिका कहलाने की अधिकारी नहीं , मैं तो जीवन रुपी पाठशाला की एक विद्यार्थी हूँ और अभी सीखना जारी है. आपके प्रति प्रेम आभार मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट
ReplyDeleteस्नेहशील आभार !
Deleteबेहतरीन इंटरव्यू, बधाई ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार
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