निजता से परे हटकर अक्सर सोचता हूँ, बिहार के माननीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इधर के तीन-चार वर्षों से अपने राज्य में सामाजिक आंदोलन जैसे कार्य किये हैं, वे ईश्वरचंद्र विद्यासागर, राजाराम मोहन राय, ज्योतिबा फुले इत्यादि के प्रतिमूर्ति बनकर उभरे हैं । हमने से किसी ने नहीं, इन तीनों को देखा है, किन्तु शराब बंदी, दहेज बन्दी, बालविवाह बन्दी से लगता है, नीतीश जी ही ये तीनों हैं । अगर आगामी 2019 में केंद्र की सरकार पुनः एनडीए की बनती है, तो आगामी 'गृह मंत्री' का बेहतर उम्मीदवार माननीय नीतीश कुमार ही हो सकते हैं ! यह त्याग तो भारतीय जनता पार्टी और वर्त्तमान गृहमंत्री श्री राजनाथ सिंह जी को करना ही चाहिए । सदन में नीतीशजी के भाषण-कला के दीवानों में भारतरत्न वाजपेयीजी भी होते थे । अब तो वाजपेयीजी वयोवृद्ध और अस्वस्थ हैं, अन्यथा अगर ऐसी बात आती, तो निश्चित ही उनके तरफ से 'हाँ' ही रहता !आज मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, प्रो. सदानंद पॉल का कुछ अलग, लघु आलेख ---
गरीबी हटाओ, इंदिरा हटाओ, कांग्रेस हटाओ, लालू हटाओ, लाला हटाओ, बाला हटाओ, अब मोदी हटाओ, यह तो हटाने का पारंपरिक उत्सव है ! जिन्हें जिनके विचार पसंद नहीं आये, उन्हें हटाओ ! शाहजहाँ को हटा औरंगजेब सत्तासीन हुए, मुलायम को हटा अखिलेश अध्यक्षासीन हुए, तो कांशीराम को हटा मायावती । सबने देखा है, जॉर्ज फर्नाडिस को किस तरह से दरकिनार किया गया । आडवाणी जी को अटल जी के अधीन 'डिप्टी' रहने की अब तक पीड़ा है, तो अपने शिष्य मोदी जी से और भी ! कल जिसे आपने हटाया, आगामी कल को वह नहीं तो कोई और कभी न कभी आपके साथ पुनरावृत्ति जरूर करेगा । जब इस देश को 14 साल की सफल और सुफल सेवा 'चरणपादुका' (चप्पल व खड़ाऊँ) दे सकते हैं, तो किसी को भी कुर्सी की लालच क्यों ? सत्ता चिरस्थायी नहीं होती ! सुकार्य और सद्कार्य चिरस्थायी होते हैं । अगर कोई भी जनप्रतिनिधि ये दोनों कार्य सम्पादित किए हैं, तो आपके कृतित्व और व्यक्तित्व इतिहास के स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेंगे, तब सत्ता की बागडोर संभाले हो या नहीं, फर्क नहीं पड़ता !
नमस्कार दोस्तों !
'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें Email - messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।
गरीबी हटाओ, इंदिरा हटाओ, कांग्रेस हटाओ, लालू हटाओ, लाला हटाओ, बाला हटाओ, अब मोदी हटाओ, यह तो हटाने का पारंपरिक उत्सव है ! जिन्हें जिनके विचार पसंद नहीं आये, उन्हें हटाओ ! शाहजहाँ को हटा औरंगजेब सत्तासीन हुए, मुलायम को हटा अखिलेश अध्यक्षासीन हुए, तो कांशीराम को हटा मायावती । सबने देखा है, जॉर्ज फर्नाडिस को किस तरह से दरकिनार किया गया । आडवाणी जी को अटल जी के अधीन 'डिप्टी' रहने की अब तक पीड़ा है, तो अपने शिष्य मोदी जी से और भी ! कल जिसे आपने हटाया, आगामी कल को वह नहीं तो कोई और कभी न कभी आपके साथ पुनरावृत्ति जरूर करेगा । जब इस देश को 14 साल की सफल और सुफल सेवा 'चरणपादुका' (चप्पल व खड़ाऊँ) दे सकते हैं, तो किसी को भी कुर्सी की लालच क्यों ? सत्ता चिरस्थायी नहीं होती ! सुकार्य और सद्कार्य चिरस्थायी होते हैं । अगर कोई भी जनप्रतिनिधि ये दोनों कार्य सम्पादित किए हैं, तो आपके कृतित्व और व्यक्तित्व इतिहास के स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेंगे, तब सत्ता की बागडोर संभाले हो या नहीं, फर्क नहीं पड़ता !
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