'मैसेंजर ऑफ आर्ट' प्रत्येक माह 'इनबॉक्स इंटरव्यू' प्रकाशित व प्रसारित करते रहा है । इस माह के अंक में हम जिस शख़्सियत से मुलाकात कराने जा रहे हैं, वे सामाजिक सरोकारों से जुड़ी शख़्सियत हैं और एक महत्त्वपूर्ण मुहिम के सबसे प्रतिबद्ध पैरोकार हैं । चलिए, इसी बहाने हम भी अपने मुहिम को याद कर लेते हैं, जो सावन पूर्णिमा के तत्वश: है । पिछले 12 सालों से यह अभियान चलाया जा रहा है, जिसका नाम है- #justice4राखियाँ ।
हाँ, यही नाम है हमारे अभियान का ! परंतु प्रबुद्ध पाठकों को लगेगा, इसमें कौन-से आश्चर्य की बात है ! किन्तु बताते चलूँ...... #justice4rakhiyan
...... मैंने जब से होश संभाला है, हर वर्ष के 'रक्षा बंधन' में अपनी दीदी को ही मेरी कलाई पर 'राखी' बाँधती देखा है, क्योंकि मैं देखता था, वो भैया और मुझ छुटकू के कलाई पर न केवल राखी बाँधती थी, वरन मुझे ललाट पर तिलक लगाती थी और मिठाई भी खिलाती थी ! यह कैसा पर्व है, खुद उनकी कलाई खाली, ललाट खाली और मिठाई के लिए भी मुँह ताकती रहती !
क्या रक्षा बंधन सिर्फ बहनों की कर्तव्यपरायणता की ही कहानी है, भाइयों को बहन द्वारा ऐसी कृत्य पर ही बहन को सुरक्षा की गारंटी देना मेरे लिए असमजंसकारी रहा ! घर में छुटकू होने के नाते बचपन से ही मुझे मेरी बहनों ने न केवल सुरक्षित रखा, अपितु आज जब कैसी भी मुसीबत आती है, तो वे ढाल बन कर मेरी सुरक्षा प्रदान करती हैं ।
पिछले 12 सालों से मैं अपनी बहनों को ही राखी बांधी है, ताकि वे मेरी रक्षा यूँ करती रहे ! कुछ लोग शायद मुझे स्वार्थी कह सकते हैं, लेकिन मुझे ऐसा नहीं लगता, क्योंकि अगर ऐसा होता, तब तो कोई माँ अपने बच्चों की रक्षा के लिए जो कार्य करती हैं, तब उनकी कृत्य भी स्वार्थसिद्धार्थ कहलाती !
आइये, मेरी मुहिम को इस सावन पूर्णिमा में हमारी मुहिम बना डालिये ! क्यों न इस रक्षा बंधन में आप भी अपनी बहनों को राखी बांधे और उसे खूब प्रचारित-प्रसारित करें, क्योंकि किसी-न-किसी मोड़ पर वो आपकी रक्षा जरूर करती हैं, चाहे बहन का रिश्ता 'रक्त' से जुड़ा हो या भावना से ? शुरुआत में समाज आपके अभियान का विरोध करेगी, लेकिन जिस तरह पद्मश्री अरुणाचलम मुरुगनाथम ने अपने कार्यों के कारण 'पैडमैन' कहलाये, तो एक दूसरे 'पैडमेन' डॉ.अमित सॉरिकवाल से परिचित कराने को लेकर 'मैसेंजर ऑफ आर्ट' प्रतिबद्ध और दृढ़ उत्सुक हो रहे हैं ।
डॉ. अमित को 'लखनऊ के पैडमेन' भी कहा जाता है, तो इस शख़्सियत को कई अवार्ड्स व पुरस्कारों से भी नवाजा गया है, जिन्हें 'इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड्स और मार्वेलस रिकॉर्ड बुक' ने जगह दी, तो इनकी सेवापरायणता ऐसी कि वे अपनी देह को मृत्युपश्च लिए दान कर दिए हैं।
तो आइए, आप इस प्रोफ़ेसर से मिलिए और उनसे उत्तर जानिए, अपने प्रिय 14 प्रश्नों के.....
प्र.(1.)आपके कार्यों को इंटरनेट के माध्यम से जाना । इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र के आईडिया-संबंधी 'ड्राफ्ट' को सुस्पष्ट कीजिये ?
उ:-
यह बात मई 2015 की है। पापा हॉस्पिटल में थे और हम उनके साथ वहीं रहते थे । समय बिताने के लिए लैपटॉप साथ रखते थे। 15 मई के आसपास दामिनी यादव जी कि “माहवारी” को लेकर एक कविता सामने आई । बस तभी से सोच लिया कि इस विषय पर काम करना है । 28 मई से अपना अभियान “हिम्मत” शुरू कर दिया । वहां से जो कारवां शुरू हुआ, वो आज तक चलते चले आ रहा है, अबतक रुका नहीं है ।
प्र.(2.)आप किसतरह के पृष्ठभूमि से आये हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
उ:-
हम पहले टीचिंग के जॉब में थे, लेकिन जैसे काम करना चाहते थे वो नहीं हो पा रहा था, तो वह सब छोड़ कर समाज में बदलाव लाने के लिए इस क्षेत्र में आ गए । हमेशा से यह सोच रही है कि कुछ अलग हटकर काम होना चाहिए । इस क्षेत्र में हम इस कार्य को बहुत अच्छे से कर पा रहे हैं ।
प्र.(3.)आपका जो कार्यक्षेत्र है, इनसे आमलोग किसतरह से इंस्पायर अथवा लाभान्वित हो सकते हैं ?
उ:-
यदि बात करें, 'हिम्मत' अभियान की, तो यह शायद ग्रामीण लड़कियों के लिए एक वरदान से कम नहीं है. माहवारी जैसे विषय पर बात करने की तो वो सोच भी नहीं सकती थीं, लेकिन हम लोग उनको यही हिम्मत देते हैं कि यह तुम्हारा अधिकार है और अधिकार खुलकर माँगना चाहिए। हम लोग लड़के-लड़कियों को साथ बैठाकर इस विषय पर बात करते हैं, ताकि लड़के भी इसकी उपयोगिता समझें और लड़कियों पर हँसे नहीं ! उनको बताते हैं कि इसी वजह से तुम्हारा जन्म हुआ है फिर हँसते क्यूँ हो ?
प्र.(4.)आपके कार्य में आये जिन रूकावटों,बाधाओं या परेशानियों से आप या संगठन रू-ब-रू हुए, उनमें से दो उद्धरण दें ?
उ:-
बस एक समस्या थी छोटी सी ! वो भी शुरू में की 20 लड़कियों को बैठाओ, उनमें से 5 और लड़कियां को बुलाने की बोलकर जाती थीं और खुद ही लौट कर नहीं आती थीं और दूसरी बात कि कभी किसी समस्या को देखा ही नहीं, इसलिए दिखी ही नहीं !
प्र.(5.)अपने कार्य क्षेत्र के लिए क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होना पड़ा अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के तो शिकार न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाये ?
उ:-
थोड़ा होना पड़ा, लेकिन जैसे ही लोगों को समझ आया कि यह तो लड़कियों के लिए एक वरदान की तरह है, तो बहुत लोग साथ आ गए। उसको पार पाने के लिए डोनेशन कार्यक्रम चलाया और उसमें बहुत लोग आ जुड़े !
प्र.(6.)आपने यही क्षेत्र क्यों चुना ? आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट थे या उनसबों ने राहें अलग पकड़ ली !
उ:-
सामाजिक परिवर्तन का तो मुझे भूत-सा सवार है और कभी भी अपने को समाजसेवी कहलवाना पसंद नहीं ! सामाजिक परिवर्तन के लिए आये हैं इस क्षेत्र में, जो संपन्न हैं उनसे सहयोग लेकर जिसको ज़रुरत है उसको उसकी स्थिति से ऊपर उठाना, यह उद्देश्य है ।
परिवार का पूरा साथ रहता है। पत्नी हर कदम पर साथ रहती हैं। हम लोगों का एक वृद्धाश्रम है, उसकी डायरेक्टर वही हैं । पापा-मम्मी और बच्चों का सहयोग निरंतर रहता है।
प्र.(7.)आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ? यह सभी सम्बन्ध से हैं या इतर हैं !
उ:-
हमारे सहयोगी सम्बन्धी में तो बस 1-2 होंगे ! हमारा पूरा काम फेसबुक के माध्यम से ही बढ़ा है । हमारे सबसे बड़े सहयोगी फेसबुक और सोशल मीडिया के मित्रगण हैं ।
प्र.(8.)आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ? इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं अथवा संस्कृति पर चोट पहुँचाने के कोई वजह ?
उ:-
हमारी भारतीय संस्कृति में महिलाओं व लड़कियों को देवीस्वरूपा मानी गयी है, लेकिन यदि वही कष्ट में है, तो हमारी पूजा व्यर्थ है, तो पहले उनको रोगमुक्त करना होगा, प्रसन्न रखना होगा। तन स्वस्थ तो मन स्वस्थ, इसलिए उनको स्वस्थ रखने की मुहिम है यह ! जब देवी मन से खुश होगी तो हर तरफ भला ही भला होगा ।
प्र.(9.)भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में आप और आपके कार्य कितने कारगर साबित हो सकते हैं !
उ:-
हमारे इस अभियान से भ्रष्टाचार से कोई सीधा सम्बन्ध तो नहीं है, लेकिन हम अलग-अलग मुद्दों पर सरकारी विभागों से सूचना के अधिकार के अंतर्गत सूचना मांग कर लड़ते रहते हैं।
प्र.(10.)इस कार्य के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे से इतर किसी प्रकार के सहयोग मिले या नहीं ? अगर हाँ, तो संक्षिप्त में बताइये ।
उ:-
जी ! बिलकुल मिले, सबसे उपयोगी सहयोग यह हुआ है की अभी Niine Sanitary pads वालों ने हमारे काम से प्रभावित होकर हमारे साथ हाथ मिलाया है। वे हमें कम रेट पर पैड्स उपलब्ध कराएंगे, अब हम ज्यादा लड़कियों की सहायता कर पाएंगे।
प्र.(11.)आपके कार्य क्षेत्र के कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी धोखा, केस या मुकद्दमे की परेशानियां झेलने पड़े हों ?
उ:-
नहीं ऐसा तो कुछ भी नहीं है ।
प्र.(12.)कोई किताब या पम्फलेट जो इस सम्बन्ध में प्रकाशित हों, तो बताएँगे ?
उ:-
संलग्न चित्र :---
प्र.(13.)इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, बताएँगे ?
उ:-
संलग्न चित्र :--
प्र.(14.)आपके कार्य मूलतः कहाँ से संचालित हो रहे हैं तथा इसके विस्तार हेतु आप समाज और राष्ट्र को क्या सन्देश देना चाहेंगे ?
उ:-
अभी यह लखनऊ से है । सपना है कि 'हिम्मत'अभियान भारत के हर गाँव गली तक पहुँच जाए । हर लड़की व महिला अपने पीरियड्स को लेकर सचेत हो और स्वच्छतापूर्ण ज़िन्दगी जी पाए ।
हाँ, यही नाम है हमारे अभियान का ! परंतु प्रबुद्ध पाठकों को लगेगा, इसमें कौन-से आश्चर्य की बात है ! किन्तु बताते चलूँ...... #justice4rakhiyan
...... मैंने जब से होश संभाला है, हर वर्ष के 'रक्षा बंधन' में अपनी दीदी को ही मेरी कलाई पर 'राखी' बाँधती देखा है, क्योंकि मैं देखता था, वो भैया और मुझ छुटकू के कलाई पर न केवल राखी बाँधती थी, वरन मुझे ललाट पर तिलक लगाती थी और मिठाई भी खिलाती थी ! यह कैसा पर्व है, खुद उनकी कलाई खाली, ललाट खाली और मिठाई के लिए भी मुँह ताकती रहती !
क्या रक्षा बंधन सिर्फ बहनों की कर्तव्यपरायणता की ही कहानी है, भाइयों को बहन द्वारा ऐसी कृत्य पर ही बहन को सुरक्षा की गारंटी देना मेरे लिए असमजंसकारी रहा ! घर में छुटकू होने के नाते बचपन से ही मुझे मेरी बहनों ने न केवल सुरक्षित रखा, अपितु आज जब कैसी भी मुसीबत आती है, तो वे ढाल बन कर मेरी सुरक्षा प्रदान करती हैं ।
पिछले 12 सालों से मैं अपनी बहनों को ही राखी बांधी है, ताकि वे मेरी रक्षा यूँ करती रहे ! कुछ लोग शायद मुझे स्वार्थी कह सकते हैं, लेकिन मुझे ऐसा नहीं लगता, क्योंकि अगर ऐसा होता, तब तो कोई माँ अपने बच्चों की रक्षा के लिए जो कार्य करती हैं, तब उनकी कृत्य भी स्वार्थसिद्धार्थ कहलाती !
आइये, मेरी मुहिम को इस सावन पूर्णिमा में हमारी मुहिम बना डालिये ! क्यों न इस रक्षा बंधन में आप भी अपनी बहनों को राखी बांधे और उसे खूब प्रचारित-प्रसारित करें, क्योंकि किसी-न-किसी मोड़ पर वो आपकी रक्षा जरूर करती हैं, चाहे बहन का रिश्ता 'रक्त' से जुड़ा हो या भावना से ? शुरुआत में समाज आपके अभियान का विरोध करेगी, लेकिन जिस तरह पद्मश्री अरुणाचलम मुरुगनाथम ने अपने कार्यों के कारण 'पैडमैन' कहलाये, तो एक दूसरे 'पैडमेन' डॉ.अमित सॉरिकवाल से परिचित कराने को लेकर 'मैसेंजर ऑफ आर्ट' प्रतिबद्ध और दृढ़ उत्सुक हो रहे हैं ।
डॉ. अमित को 'लखनऊ के पैडमेन' भी कहा जाता है, तो इस शख़्सियत को कई अवार्ड्स व पुरस्कारों से भी नवाजा गया है, जिन्हें 'इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड्स और मार्वेलस रिकॉर्ड बुक' ने जगह दी, तो इनकी सेवापरायणता ऐसी कि वे अपनी देह को मृत्युपश्च लिए दान कर दिए हैं।
तो आइए, आप इस प्रोफ़ेसर से मिलिए और उनसे उत्तर जानिए, अपने प्रिय 14 प्रश्नों के.....
डॉ. अमित सॉरिकवाल |
प्र.(1.)आपके कार्यों को इंटरनेट के माध्यम से जाना । इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र के आईडिया-संबंधी 'ड्राफ्ट' को सुस्पष्ट कीजिये ?
उ:-
यह बात मई 2015 की है। पापा हॉस्पिटल में थे और हम उनके साथ वहीं रहते थे । समय बिताने के लिए लैपटॉप साथ रखते थे। 15 मई के आसपास दामिनी यादव जी कि “माहवारी” को लेकर एक कविता सामने आई । बस तभी से सोच लिया कि इस विषय पर काम करना है । 28 मई से अपना अभियान “हिम्मत” शुरू कर दिया । वहां से जो कारवां शुरू हुआ, वो आज तक चलते चले आ रहा है, अबतक रुका नहीं है ।
प्र.(2.)आप किसतरह के पृष्ठभूमि से आये हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
उ:-
हम पहले टीचिंग के जॉब में थे, लेकिन जैसे काम करना चाहते थे वो नहीं हो पा रहा था, तो वह सब छोड़ कर समाज में बदलाव लाने के लिए इस क्षेत्र में आ गए । हमेशा से यह सोच रही है कि कुछ अलग हटकर काम होना चाहिए । इस क्षेत्र में हम इस कार्य को बहुत अच्छे से कर पा रहे हैं ।
प्र.(3.)आपका जो कार्यक्षेत्र है, इनसे आमलोग किसतरह से इंस्पायर अथवा लाभान्वित हो सकते हैं ?
उ:-
यदि बात करें, 'हिम्मत' अभियान की, तो यह शायद ग्रामीण लड़कियों के लिए एक वरदान से कम नहीं है. माहवारी जैसे विषय पर बात करने की तो वो सोच भी नहीं सकती थीं, लेकिन हम लोग उनको यही हिम्मत देते हैं कि यह तुम्हारा अधिकार है और अधिकार खुलकर माँगना चाहिए। हम लोग लड़के-लड़कियों को साथ बैठाकर इस विषय पर बात करते हैं, ताकि लड़के भी इसकी उपयोगिता समझें और लड़कियों पर हँसे नहीं ! उनको बताते हैं कि इसी वजह से तुम्हारा जन्म हुआ है फिर हँसते क्यूँ हो ?
प्र.(4.)आपके कार्य में आये जिन रूकावटों,बाधाओं या परेशानियों से आप या संगठन रू-ब-रू हुए, उनमें से दो उद्धरण दें ?
उ:-
बस एक समस्या थी छोटी सी ! वो भी शुरू में की 20 लड़कियों को बैठाओ, उनमें से 5 और लड़कियां को बुलाने की बोलकर जाती थीं और खुद ही लौट कर नहीं आती थीं और दूसरी बात कि कभी किसी समस्या को देखा ही नहीं, इसलिए दिखी ही नहीं !
प्र.(5.)अपने कार्य क्षेत्र के लिए क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होना पड़ा अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के तो शिकार न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाये ?
उ:-
थोड़ा होना पड़ा, लेकिन जैसे ही लोगों को समझ आया कि यह तो लड़कियों के लिए एक वरदान की तरह है, तो बहुत लोग साथ आ गए। उसको पार पाने के लिए डोनेशन कार्यक्रम चलाया और उसमें बहुत लोग आ जुड़े !
प्र.(6.)आपने यही क्षेत्र क्यों चुना ? आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट थे या उनसबों ने राहें अलग पकड़ ली !
उ:-
सामाजिक परिवर्तन का तो मुझे भूत-सा सवार है और कभी भी अपने को समाजसेवी कहलवाना पसंद नहीं ! सामाजिक परिवर्तन के लिए आये हैं इस क्षेत्र में, जो संपन्न हैं उनसे सहयोग लेकर जिसको ज़रुरत है उसको उसकी स्थिति से ऊपर उठाना, यह उद्देश्य है ।
परिवार का पूरा साथ रहता है। पत्नी हर कदम पर साथ रहती हैं। हम लोगों का एक वृद्धाश्रम है, उसकी डायरेक्टर वही हैं । पापा-मम्मी और बच्चों का सहयोग निरंतर रहता है।
प्र.(7.)आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ? यह सभी सम्बन्ध से हैं या इतर हैं !
उ:-
हमारे सहयोगी सम्बन्धी में तो बस 1-2 होंगे ! हमारा पूरा काम फेसबुक के माध्यम से ही बढ़ा है । हमारे सबसे बड़े सहयोगी फेसबुक और सोशल मीडिया के मित्रगण हैं ।
प्र.(8.)आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ? इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं अथवा संस्कृति पर चोट पहुँचाने के कोई वजह ?
उ:-
हमारी भारतीय संस्कृति में महिलाओं व लड़कियों को देवीस्वरूपा मानी गयी है, लेकिन यदि वही कष्ट में है, तो हमारी पूजा व्यर्थ है, तो पहले उनको रोगमुक्त करना होगा, प्रसन्न रखना होगा। तन स्वस्थ तो मन स्वस्थ, इसलिए उनको स्वस्थ रखने की मुहिम है यह ! जब देवी मन से खुश होगी तो हर तरफ भला ही भला होगा ।
प्र.(9.)भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में आप और आपके कार्य कितने कारगर साबित हो सकते हैं !
उ:-
हमारे इस अभियान से भ्रष्टाचार से कोई सीधा सम्बन्ध तो नहीं है, लेकिन हम अलग-अलग मुद्दों पर सरकारी विभागों से सूचना के अधिकार के अंतर्गत सूचना मांग कर लड़ते रहते हैं।
प्र.(10.)इस कार्य के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे से इतर किसी प्रकार के सहयोग मिले या नहीं ? अगर हाँ, तो संक्षिप्त में बताइये ।
उ:-
जी ! बिलकुल मिले, सबसे उपयोगी सहयोग यह हुआ है की अभी Niine Sanitary pads वालों ने हमारे काम से प्रभावित होकर हमारे साथ हाथ मिलाया है। वे हमें कम रेट पर पैड्स उपलब्ध कराएंगे, अब हम ज्यादा लड़कियों की सहायता कर पाएंगे।
प्र.(11.)आपके कार्य क्षेत्र के कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी धोखा, केस या मुकद्दमे की परेशानियां झेलने पड़े हों ?
उ:-
नहीं ऐसा तो कुछ भी नहीं है ।
प्र.(12.)कोई किताब या पम्फलेट जो इस सम्बन्ध में प्रकाशित हों, तो बताएँगे ?
उ:-
संलग्न चित्र :---
प्र.(13.)इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, बताएँगे ?
उ:-
संलग्न चित्र :--
प्र.(14.)आपके कार्य मूलतः कहाँ से संचालित हो रहे हैं तथा इसके विस्तार हेतु आप समाज और राष्ट्र को क्या सन्देश देना चाहेंगे ?
उ:-
अभी यह लखनऊ से है । सपना है कि 'हिम्मत'अभियान भारत के हर गाँव गली तक पहुँच जाए । हर लड़की व महिला अपने पीरियड्स को लेकर सचेत हो और स्वच्छतापूर्ण ज़िन्दगी जी पाए ।
"आप यूं हँसते रहें, मुस्कराते रहें, स्वस्थ रहें, सानन्द रहें "..... 'मैसेंजर ऑफ ऑर्ट' की ओर से सहस्रशः शुभ मंगलकामनाएँ !
नमस्कार दोस्तों !
मैसेंजर ऑफ़ आर्ट' में आपने 'इनबॉक्स इंटरव्यू' पढ़ा । आपसे समीक्षा की अपेक्षा है, तथापि आप स्वयं या आपके नज़र में इसतरह के कोई भी तंत्र के गण हो, तो हम इस इंटरव्यू के आगामी कड़ी में जरूर जगह देंगे, बशर्ते वे हमारे 14 गझिन सवालों के सत्य, तथ्य और तर्कपूर्ण जवाब दे सके !
हमारा email है:- messengerofart94@gmail.com
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