एक ऐसे व्यक्ति, जो भारत के होकर भी भारतीय नहीं हुए पर कहते हैं न --
मौत की कोई उम्र नहीं होती,
जब भी आती है --
साला, जीना सीखा जाती है ।
85 वर्षीय नोबेल पुरस्कार विजेता वी.एस. नायपॉल अब हमारे बीच नहीं है, लेकिन छोड़ गई ऐसी सब बातें जिनका जानना भारतीयों के लिए जरूरी है, तो आज मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं डॉ. सदानंद पॉल द्वारा लिखा नायपॉल पर आलेख --
भारतीय मूल के 'वी एस नायपॉल' भारत के हितैषी नहीं थे !
जब नीरद सी. चौधुरी का देहावसान हुआ था, तब इसे अंतिम भारतीय अंग्रेज कहा गया था, वी. एस. नायपॉल भी अपने को अंग्रेज समझते थे, क्योंकि 2001 में जब उसे साहित्य का 'नोबेल पुरस्कार' मिला, तो भारतीय मीडिया ने सूचना प्रसारित किया, "भारतीय मूल के विख्यात लेखक विद्याधर सूरजप्रसाद नायपॉल (V. S. Naipaul) को वर्ष 2001 का साहित्य का नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ है । रवीन्द्रनाथ टैगोर के बाद साहित्य का नोबेल पानेवाले वे दूसरे भारतीय व भारतीय मूल के व्यक्ति हैं" । ....तो वे भारतीय मीडिया से उखड़ गए थे कि वे भारतीय नहीं हैं ।
उनके नाम का शब्द-विस्तार भले ही हिन्दू के प्रसंगश: है, किन्तु वे अपने को हिन्दू नहीं, क्रिश्चियन मानते थे । उनकी प्रणीत सभी पुस्तकें भले ही महान उपलब्धियों के उदाहरण हैं, किन्तु भारत के बारे में लिखी उनकी पुस्तकों में बंगाल की मां काली को खोपड़ियों की महिला कहा है, कोलकाता के काली मंदिरों में नारियल जो फोड़े जाते हैं ! तो सड़क पर शौच करती महिलाओं को लेकर लिखा है-- यह कैसा देश है ?
11अगस्त को नायपॉल का निधन हो गया, वह 85 वर्ष के थे. नायपॉल के परिवार ने शनिवार को उनके निधन की घोषणा की । उन्हें 1971 में बुकर प्राइज भी मिला था । उनका जन्म 1932 में त्रिनिदाद में हुआ था । नायपॉल की पहली किताब 'द मिस्टिक मैसर' 1951 में प्रकाशित हुई थी ।उनकी पुस्तक 'ए हाउस फॉर मिस्टर बिस्वास' दुनिया भर में चर्चित है । उन्हें बीतें की महारानी द्वारा 'सर' (Knight) की उपाधि से भी नवाजा गया था ।
वी एस नायपॉल के पूर्वज भारत के गोरखपुर से थे, जिनके दादा सूरजप्रसाद को अंग्रेजों ने गिरमिटिया मजदूर के तौर पर 1880 में ट्रिनिडाड लेकर गए थे, वापसी की उम्मीद न पा वहीं बस गए और वहाँ की महिला से शादी कर वहीं बस गए । नायपॉल के पिता सीप्रसाद 'त्रिनिदाद गॉर्जियन' में रिपोर्टर और स्वतन्त्र लेखक थे । नायपॉल की शिक्षा इंग्लैंड में हुई और वे इंग्लैंड में ही रहने लगे । उनकी दूसरी शादी पाकिस्तानी पत्रकार नादिरा से हुई । उन्होंने दुनिया के अनेक देशों की कई यात्राएं की और कई पुस्तकें, उपन्यास, यात्रा-वृतांत और निबंध लिखे हैं, जिनसे उन्हें ख्याति मिली और उनकी गिनती दुनिया के टॉप लेखकों में होती थी । वी. एस. नायपॉल कई बार विवादों में भी रहे ।
कवयित्री स्वर्णलता विश्वफूल ने अपनी प्रसिद्ध कविता 'कैक्टस' में नायपॉल को लेकर जो दृष्टिकोण दी है, वह एकदम तथ्यात्मक है, यथा --
" 'बुके' जो मैंने खरीदा,
कैक्टसों से भरा था ।
खैर, उन्हें टैगोर को तो देना न था--
देना था-- वी.एस. नायपॉल को,
जिसने लिखी हैं, ये पुस्तकें--
'अंधकारमय भारत',
'घायल सभ्यता का भारत',
'लाखों बगावतों का भारत' ।"
अंग्रेजी में प्रकाशित उनके उपन्यास:---
The Mystic Masseur - (1957)
The Suffrage of Elvira - (1958)
Miguel Street - (1959)
A House for Mr Bishwas - (1961)
Mr. Stone and the Knights Companion - (1963)
A Flag on the Island - (1967)
The Mimic Men - (1967)
In a Free State - (1971)
Guerillas - (1975)
A Bend in the River - (1979)
Finding the Centre - (1984)
The Enigma of Arrival - (1987)
A Way in the World - (1994)
Half a Life - (2001)
Magic Seeds - (2004)
निबंध, यात्रा-वृत्तांत
The Middle Passage: Impressions of Five Societies - British, French and Dutch in the West Indies and South America- (1962)
An Area of Darkness- (1964)
The Loss of El Dorado - (1969)
The Overcrowded Barracoon and Other Articles- (1972)
India: A Wounded Civilization- (1977)
A Congo Diary- (1980)
The Return of Eva Perón and the Killings in Trinidad-(1980)
Among the Believers: An Islamic Journey-(1981)
Finding the Centre-(1984)
A Turn in the South- (1989)
India: A Million Mutinies Now- (1990)
Beyond Belief: Islamic Excursions among the Converted Peoples (-1998)
Between Father and Son: Family Letters -(1999)
*** सर वी. एस. नायपॉल को श्रद्धांजलि !
नमस्कार दोस्तों !
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