देश में जहाँ इंजीनियरिंग कॉलेज इतने धड़ल्ले से खुल रहे हैं, लेकिन उन कॉलेजों में इंफ्रास्ट्रक्चर की पूर्त्ति और लेक्चरर्स की बहाली नहीं हो रही है, जिनके अभाव में तकनीकी शिक्षा-व्यवस्था फ़ख़्त 'सर्टिफिकेट' प्राप्त करने भर रह गयी है । ऐसे में तकनीकी शिक्षा जहाँ प्रायोगिक होनी चाहिए, वहाँ विद्यार्थी सैद्धांतिक जानकारी ही हस्तगत करने में लगे हैं, ताकि वे येन-केन-प्रकारेण परीक्षा पास कर डिग्री भर ले सके ! इतनी चरमराई है यहाँ, तकनीकी शिक्षा ! आई.आई.टी. की स्थिति से गुरेज नहीं कर रहा, उधर भी तो आये दिन 'बुझते मन' ही दिखने को मिल रहे हैं !
अभियंता दिवस यानी श्रीमान मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया के जन्मदिवस के बहाने मैसेंजर ऑफ आर्ट लेकर आई है, एक ऐसी कविता, जो भारत में अभियांत्रिकी शिक्षा की दुःस्थिति को उजागर कर रही होती है । तो आइए पढ़ते हैं, इस अभियंता दिवस पर अभियंताओं के भावनाओं को पेश करती यह कविता.........
कुकुरमुत्ते की भांति --
उगते जा रहे इंजीनियरिंग कॉलेज,
जहाँ न होते शिक्षक, न ही प्रैक्टिकल कक्षाएँ
पढ़ाई के नाम पर पॉलिटेक्निक शिक्षक
या बी.टेक. छात्र ही
गेस्ट लेक्चरर बन जाते हैं,
जो होते हैं फ़ख्त कॉमेडियन और टाइम पास !
वहाँ तब होते हैं, सिर्फ राजनीतिक बातें
और प्रेम-प्रसंग लिए आश !
इंजीनियरिंग संस्थान ऐसे में --
लूटते हैं इन भावी इंजीनियर्स को
रुपये तो ऐंठते ही हैं,
खाने के नाम पर मेस सिर्फ रजिस्टर में
उनके बीच स्वाध्याय के सिवाय-
फ़ख्त गेस पेपर ही
होते हैं मित्र परीक्षा निकालने को !
बढ़ते जा रहे बी. टेक.
बढ़ती जा रही बेरोजगारी
रोजगार के अवसर है कम
इंजीनियर्स भूखे हैं,
जिनके कारण क्रिएशन है कम !
किन्तु बी. टेक. डिग्रीधारक क्रिएशन के नाम पर
बन रहे लेखक, चेतन भगत
यानी सबका यही गत !
यह न करें, तो क्या करें,
हे मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया महाराज !
पेट से पेट्रोल और पेट्रोलियम तक है यहाँ,
किन्तु यहाँ साइकिल पंचर की दुकान चलाने के-
कर्ज़ तक नहीं, बावजूद...
इस इंजीनियर्स डे में फिर भी
बड़ी शान से करूँगा चीयर्स,
क्योंकि हम हैं इंजीनियर्स !
हाँ, हम इंजीनियर आन -बान- शान हैं,
सुबह-सुबह चाय चुसकते --
फिर भी हमारा भारत महान है, महान हैं !
-- प्रधान प्रशासी सह संपादक ।
अभियंता दिवस यानी श्रीमान मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया के जन्मदिवस के बहाने मैसेंजर ऑफ आर्ट लेकर आई है, एक ऐसी कविता, जो भारत में अभियांत्रिकी शिक्षा की दुःस्थिति को उजागर कर रही होती है । तो आइए पढ़ते हैं, इस अभियंता दिवस पर अभियंताओं के भावनाओं को पेश करती यह कविता.........
कुकुरमुत्ते की भांति --
उगते जा रहे इंजीनियरिंग कॉलेज,
जहाँ न होते शिक्षक, न ही प्रैक्टिकल कक्षाएँ
पढ़ाई के नाम पर पॉलिटेक्निक शिक्षक
या बी.टेक. छात्र ही
गेस्ट लेक्चरर बन जाते हैं,
जो होते हैं फ़ख्त कॉमेडियन और टाइम पास !
वहाँ तब होते हैं, सिर्फ राजनीतिक बातें
और प्रेम-प्रसंग लिए आश !
इंजीनियरिंग संस्थान ऐसे में --
लूटते हैं इन भावी इंजीनियर्स को
रुपये तो ऐंठते ही हैं,
खाने के नाम पर मेस सिर्फ रजिस्टर में
उनके बीच स्वाध्याय के सिवाय-
फ़ख्त गेस पेपर ही
होते हैं मित्र परीक्षा निकालने को !
बढ़ते जा रहे बी. टेक.
बढ़ती जा रही बेरोजगारी
रोजगार के अवसर है कम
इंजीनियर्स भूखे हैं,
जिनके कारण क्रिएशन है कम !
किन्तु बी. टेक. डिग्रीधारक क्रिएशन के नाम पर
बन रहे लेखक, चेतन भगत
यानी सबका यही गत !
यह न करें, तो क्या करें,
हे मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया महाराज !
पेट से पेट्रोल और पेट्रोलियम तक है यहाँ,
किन्तु यहाँ साइकिल पंचर की दुकान चलाने के-
कर्ज़ तक नहीं, बावजूद...
इस इंजीनियर्स डे में फिर भी
बड़ी शान से करूँगा चीयर्स,
क्योंकि हम हैं इंजीनियर्स !
हाँ, हम इंजीनियर आन -बान- शान हैं,
सुबह-सुबह चाय चुसकते --
फिर भी हमारा भारत महान है, महान हैं !
-- प्रधान प्रशासी सह संपादक ।
0 comments:
Post a Comment