ज़िन्दगी भी गजब की कहानी कहती है । हर सुख-सुविधा देकर मौत की मांग कर जाती है ! मौत की जब भी बात आती है, दिमाग अजीबोगरीब दुनिया में खो जाती है कि क्या मौत के बाद भी दुनिया है या नहीं ?
आज मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं श्रीमान हिमांशु कालिया की बेहतरीन कविताओं में से एक ! आइये, देर न करते हुए पढ़ते हैं और समझते हैं मौत को, उनके तरीके से........
मौत
मौत तू ही सबसे बड़ी सच्चाई है,
पर क्यों दिल डरता है, तुझे अपनाने में !
तेरे ख्याल से क्यों रूह काँप उठती है,
तेरा ज़िक्र भी सिरहन क्यों पैदा करता है !
क्यों हम इस बहकावे में जिए जा रहे हैं,
ज़िंदगी को अपनी दुश्वार किए जा रहे है !
की शायद तू आएगी नहीं, हमें साथ ले जाएगी नहीं,
पर तेरे पाश से कभी कोई कहाँ बच पाया है ?
कभी ना कभी मुझे भी तेरे आलिंगन में समाना है,
तूने मेरे अपने छीने --
तूने मेरे सपने छीने,
तूने मुझे तन्हा किया --
तूने मुझे लाचार किया !
इससे पहले की तू यह खेल मेरे साथ खेले,
मुझे मेरी ज़िंदगी ज़ीनी है।
कुछ चेहरों पे मुस्कान लानी है,
कुछ दिलों में जगह बनानी है ।
कुछ किस्सों कहानियों में अपना किरदार निभाना है,
कुछ महफ़िलों में अपनी कमी का एहसास करना है।
पर ये भी एक छलावा है,
क्या पता कहानी के किस मोढ़ पे ?
किताब के किस पन्ने पे मुलाकात होगी,
तब तक के लिए चाहत तो नही सिर्फ़ इंतज़ार रहेगा।
नमस्कार दोस्तों !
'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।
आज मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं श्रीमान हिमांशु कालिया की बेहतरीन कविताओं में से एक ! आइये, देर न करते हुए पढ़ते हैं और समझते हैं मौत को, उनके तरीके से........
श्रीमान हिमांशु कालिया |
मौत
मौत तू ही सबसे बड़ी सच्चाई है,
पर क्यों दिल डरता है, तुझे अपनाने में !
तेरे ख्याल से क्यों रूह काँप उठती है,
तेरा ज़िक्र भी सिरहन क्यों पैदा करता है !
क्यों हम इस बहकावे में जिए जा रहे हैं,
ज़िंदगी को अपनी दुश्वार किए जा रहे है !
की शायद तू आएगी नहीं, हमें साथ ले जाएगी नहीं,
पर तेरे पाश से कभी कोई कहाँ बच पाया है ?
कभी ना कभी मुझे भी तेरे आलिंगन में समाना है,
तूने मेरे अपने छीने --
तूने मेरे सपने छीने,
तूने मुझे तन्हा किया --
तूने मुझे लाचार किया !
इससे पहले की तू यह खेल मेरे साथ खेले,
मुझे मेरी ज़िंदगी ज़ीनी है।
कुछ चेहरों पे मुस्कान लानी है,
कुछ दिलों में जगह बनानी है ।
कुछ किस्सों कहानियों में अपना किरदार निभाना है,
कुछ महफ़िलों में अपनी कमी का एहसास करना है।
पर ये भी एक छलावा है,
क्या पता कहानी के किस मोढ़ पे ?
किताब के किस पन्ने पे मुलाकात होगी,
तब तक के लिए चाहत तो नही सिर्फ़ इंतज़ार रहेगा।
नमस्कार दोस्तों !
'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।
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