हर साल श्रावण पूर्णिमा को 'राष्ट्रीय संस्कृत दिवस' मनाया जाता है । भारत सरकार ने 1968 में ऐसा निर्णय लिया था और 1969 से यह दिवस निरंतर मनाई जा रही है । इस तरह से दिवस मनाए जाने के प्रसंगश: यह संस्कृत दिवस की 50वीं वर्षगाँठ है । संसार की कई भाषाएँ संस्कृत से निःसृत है, एतदर्थ यह भाषाओं की जननी भी है । यह संसार के वैज्ञानिक भाषाओं में एक है । संसार के सभी भाषाओं में से सबसे लंबे शब्दों के 'गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स' अपनी प्राचीन भाषा 'संस्कृत' के नाम है । खड़ी बोली हिंदी 'संस्कृत' की दुहिता है । हिंदी 'संस्कृत' की सरलीकृत रूप है, इसे अद्यत: खारिज नहीं की जा सकती ! यहाँ तक की संगम कालीन साहित्य व तमिल, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़, लेटिन, हिब्रू इत्यादि के हजारों शब्द संस्कृत से प्रेरित हैं ! हमारे पाठक सोच रहे होंगे, आज यह बातें क्यों ? क्योंकि मैसेंजर ऑफ आर्ट में आज पढ़ते हैं, संस्कृत के अघोषित अपत्यवाची संज्ञा संस्कृति से जुड़ी कविता ! आइये, देर न करते हुए पढ़ते हैं हम डॉ. संगम वर्मा की सांस्कृतिक-पुकार........
पुकार
हे राम !
तुम कब आओगे ?
कलियुगी समाज में
सब कलुषित हो गया है
कोई नहीं है
धनुष की प्रत्यँचा
चढ़ाने को यहाँ
है नहीं धीरता,वीरता
साहस दिखाने को यहाँ ?
घर कर गई है
कलियुग की
कलुषित कालिमा
बिकने लगी है
सरेबाज़ार लालीमा ।
पूत, पूत न रहा कपूत हो गया
नशे के मद में वशीभूत हो गया ।
इक वचन की ख़ातिर
तुमने राज त्याग दिया
आज वचनों की ख़ातिर
अपने त्यागित हो गए
हृदय व्यथित हो गए ।
ताड़का का वध कर
ऋषियों का उद्धार किया
पावन पाँव छूकर शिलांकित
अहिल्या का सिद्धार किया ।
देखो !
क्या-क्या ?
हो रहा है यहाँ
बिखरी पड़ी है
मानवता जहाँ-तहाँ
रावण वध कर
बसाया रामराज्य
अतिमानवीयता में
जीना हो रहा दु:साध्य ।
मर्यादा,अमर्यादित हुई
चौसर सारी चौपट हुई
सत्ता विखण्डित हुई
मानवता विचलित हुई ।
अन्तर्द्वन्द्व का युद्ध लड़ा जा रहा
धर्म के नाम पर लूटा जा रहा
क्रूर सत्ता की क्रूरता देखो
पददलितों को पीटा जा रहा ।
शिष्टाचार का नाम नहीं
चापलूसी बिना काम नहीं ।
क्या नैतिकता ?
और
क्या अनैतिकता ?
है संसार में छाई विपरीतता ।
अबलाओं का नहीं ठौर ठिकाना
मिलता नहीं अयोध्या सा घराना
आबरू बेआबरू होती रहती ।
दुनिया आँख बँद कर सोती रहती
सारा आकाश है तमाशा देखता
वक़्त का ज़मीर है सोया रहता ।
गुण्डों का है मेला
और
मेले में हैं मवाली
फिर कैसे मनाएँ हम
दशहरा और दिवाली ।
उत्कंठ हृदय से पुकार है मेरी
अराजकता को ख़त्म कर दो
सारे संसार को जगमग कर दो
जीवन में सबके नवरस भर दो ।
वचन को सदा निभाया है तुमने
आस का दीया जलाया है हमने ।
हे राम !
तुम कब आओगे ?
हे राम !
तुम कब आओगे ?
नमस्कार दोस्तों !
'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।
डॉ. संगम वर्मा |
पुकार
हे राम !
तुम कब आओगे ?
कलियुगी समाज में
सब कलुषित हो गया है
कोई नहीं है
धनुष की प्रत्यँचा
चढ़ाने को यहाँ
है नहीं धीरता,वीरता
साहस दिखाने को यहाँ ?
घर कर गई है
कलियुग की
कलुषित कालिमा
बिकने लगी है
सरेबाज़ार लालीमा ।
पूत, पूत न रहा कपूत हो गया
नशे के मद में वशीभूत हो गया ।
इक वचन की ख़ातिर
तुमने राज त्याग दिया
आज वचनों की ख़ातिर
अपने त्यागित हो गए
हृदय व्यथित हो गए ।
ताड़का का वध कर
ऋषियों का उद्धार किया
पावन पाँव छूकर शिलांकित
अहिल्या का सिद्धार किया ।
देखो !
क्या-क्या ?
हो रहा है यहाँ
बिखरी पड़ी है
मानवता जहाँ-तहाँ
रावण वध कर
बसाया रामराज्य
अतिमानवीयता में
जीना हो रहा दु:साध्य ।
मर्यादा,अमर्यादित हुई
चौसर सारी चौपट हुई
सत्ता विखण्डित हुई
मानवता विचलित हुई ।
अन्तर्द्वन्द्व का युद्ध लड़ा जा रहा
धर्म के नाम पर लूटा जा रहा
क्रूर सत्ता की क्रूरता देखो
पददलितों को पीटा जा रहा ।
शिष्टाचार का नाम नहीं
चापलूसी बिना काम नहीं ।
क्या नैतिकता ?
और
क्या अनैतिकता ?
है संसार में छाई विपरीतता ।
अबलाओं का नहीं ठौर ठिकाना
मिलता नहीं अयोध्या सा घराना
आबरू बेआबरू होती रहती ।
दुनिया आँख बँद कर सोती रहती
सारा आकाश है तमाशा देखता
वक़्त का ज़मीर है सोया रहता ।
गुण्डों का है मेला
और
मेले में हैं मवाली
फिर कैसे मनाएँ हम
दशहरा और दिवाली ।
उत्कंठ हृदय से पुकार है मेरी
अराजकता को ख़त्म कर दो
सारे संसार को जगमग कर दो
जीवन में सबके नवरस भर दो ।
वचन को सदा निभाया है तुमने
आस का दीया जलाया है हमने ।
हे राम !
तुम कब आओगे ?
हे राम !
तुम कब आओगे ?
नमस्कार दोस्तों !
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