महिला हिंसा के खिलाफ शुरू हुई 'मी टू कैैंपेन' को 2017 का टाइम पर्सन ऑफ द ईयर चुनी गई, लेकिन भारत में यह अभियान 2018 में अपने चर्मोत्कर्ष पर हैं। साल 2017 में 'मी 2 कैंपेन' को शुरुआत में मात्र 6 प्रतिशत वोट मिल रही थी, लेकिन टाइम मैगज़ीन केे संपादकों की राय शामिल होने पर इन्हें नम्बर 1 स्थान प्राप्त हुआ । महिला हिंसा और शोषण के खिलाफ पूरी दुनिया की महिलाओं ने हैशटैग के इस्तेमाल के साथ इस कैंपेन के साथ,अपने साथ घटित घटनाओं को सोशल मीडिया पर शेयर किया और जिस कारण काफी सारे विख्यात चेहरों पर से पर्दा उठा । वैसे 'टाइम पर्सन ऑफ द ईयर' चुने जाने की शुरुआत 1927 से हुई थी, लेकिन किसी कैंपेन या ग्रुप को 15 वीं बार 'टाइम पर्सन द ईयर' चुना गया है परंतु 20 साल पहले की गरी गुमनाम कहानी को सामने लाकर किसी साफ चेहरे को बेदाग करना, इस अभियान की सबसे बड़ी अवगुण निकट भविष्य में बनने वाली हैं क्योंकि हर कहानी सही भी नहीं होती ! आज मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं #Me_Too पर एक कविता ---
मन की आवाज ही है ऐसी,
कभी यह 'मंटो' बन आती है,
तो कभी 'मीटू' --
पर जब भी निकलती हैं,
सच्चाई उड़ेल देती है --
चाहे लोग उसे रोकने के लिए,
झूठ को सच बना दें,
या --
सच को झूठ ।
-- प्रधान प्रशासी-सह-प्रधान संपादक ।
मन की आवाज ही है ऐसी,
कभी यह 'मंटो' बन आती है,
तो कभी 'मीटू' --
पर जब भी निकलती हैं,
सच्चाई उड़ेल देती है --
चाहे लोग उसे रोकने के लिए,
झूठ को सच बना दें,
या --
सच को झूठ ।
-- प्रधान प्रशासी-सह-प्रधान संपादक ।
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