प्यार करने की कोई उम्र नहीं होती, लेकिन प्यार की 'नियति' की अभीष्ट उम्र तो होती ही है ! जब इश्क़ की बात आती है, तब यही प्यार आर-पार हो 'रार' ठान लेती है । फिर हमें यह मालूम नहीं होता और हम फिर कनफ़्यूजन या अवसाद का शिकार हो जाते हैं कि हम प्यार के साथ संतुलित रह पाएंगे या इश्क के साथ ! हाँ, इश्क और मुश्क छुपाये नहीं छुपते ! यही कारण है, एक पटाक्षेप के तहत हम इश्कयापे प्यार में बहुत-कुछ पाना चाहते हैं ! ....यानी कली अगर प्यार है तो इश्क़ फूल है और दोनों के बीच सतत द्वंद्व चलते रहता है । चकोर पक्षी का प्रेमी चंद्रमा के प्रति प्रेम ऐसा घनिष्ठ है कि ढाई आखर का प्रेम आखिरकार 'परिभाषित' हो ही जाता है । हम मानव जिसे परिभाषित नहीं कर पाते हैं, उसे प्रकृति और उनकी अन्य रूप उसे अवश्य ही परिभाषित करते हैं । भँवरों की तरफ से फूलों के प्रति अतिशय दीवानगी इसके ही नामित उदाहरण हैं ! आज 'मैसेंजर ऑफ आर्ट' में पढ़ते हैं, कवि आलोक शर्मा की प्रेमरस से मंजी कविता 'कली -फूल-संवाद' ! आइये, हम सब मिल इस कविता का लुत्फ़ उठाते हैं......
'कली_फूल_संवाद'
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