कहा गया है, कोई लेखक जो कल्पना करते हैं, उसे वैज्ञानिक किसी-न-किसी दिन पूरा जरूर कर ही लेते हैं । कुछ साल पहले ही लेखिका 'जे. के. रॉलिंग' की प्रसिद्ध उपन्यास 'हैरी पॉटर' सीरीज की सभी पुस्तकों पढ़ा है, जिनमें एक किताब है-
'Harry Potter and the Philosopher's Stone',
किताब की कहानी हमारे सभी पाठकगण को मालूम हैं, लेकिन श्रीमान प्रेम एस. गुर्जर साहब ने हैरी पॉटर की कहानी को भारतीय संस्कृति का अमली जामा पहनाकर एक चरवाहे की कथा को और विश्वास की ताकत को सँजोकर उसे राजा बनने की राह दिखा देते हैं । 'फिलॉसॉफर्स स्टोन' मतलब पारस पत्थर की कहानी ! आज मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, फिलॉसॉफर्स स्टोन की समीक्षा, लेकिन इससे पहले लेखक से एकबात पूछना चाहूँगा कि जिस तरह जे.के.रॉलिंग अपने नाम के शुरुआती अक्षर शॉर्ट फॉर्म में लिखते हैं, तो क्या लेखक प्रेम एस. गुर्जर भी एस. को गौण रखना चाहेंगे ! अगर 'एस' को विलुप्त व गौण नहीं रखना चाहते हैं, तो बतायेंगे, हमारे पाठकों को ! ..... कि 'एस' से 'Yes' कहलाकर 'एस' माने 'स्टोन' कहला दूँ ! क्यों ? आइये, पढ़ते हैं.......
बीते दिनों जब भारतरत्न श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ज़िन्दगी और मौत के बीच मौत को मात देने की कोशिश कर रहे थे, तो मैं दद्दू (इन्हें मैं दद्दू मानता हूँ ) की स्वास्थ्य की कामना करते हुए प्रस्तुत नॉवेल को पढ़े जा रहा था, क्योंकि यह एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है, जिनके नाम की चर्चा आधी कहानी निकलने के बाद पेज नम्बर 60 में ही मालूम होता है कि वह व्यक्ति जिसका नाम मानव है, जो कि पेशे से चरवाहा है, लेकिन इस मानव का सपना यहीं तक सीमित रहना नहीं है, अपितु हर रोज उसे एक सपना परेशान करता है । हाँ, वैसे भी मिसाइल मैन 'कलाम चचा' कह गए हैं कि सपना वह नहीं है, जो आप सोते हुए देखते हैं, बल्कि सपना वह है, जो आपको सोने न दें !
हमारे कहानी के नायक के साथ भी यहीं होता है। वह अपने गाँव, घर और परिवार को छोड़ निकल पड़ता है, नियति की तलाश में ! क्या उसे नियति मिल पाएगी ? यहाँ कह देना चाहूंगा, नियति कोई लड़की नहीं है ।
लेखक ने साधारण शब्दों में अच्छी कहानी लिखने की कोशिश की है, लेकिन उपन्यास के पेजेज जैसे-जैसे खत्म होते जाते हैं, स्वप्न और प्यार को पाने के चक्कर में मानव भी खोते चले जाते हैं, तो कभी हिम्मत और विश्वास के दम पर लक्ष्य के करीब आ भी जाते हैं, परंतु जैसे वह अपनी नियति के करीब आता है, लेखक कहानी में हैरी पॉटर के कॉन्सेप्ट को मिला देते हैं, जो कि कथा का ट्विस्ट है ।
कैसे हैरी पॉटर में हैरी की रक्षा करने डंबलडोर आते हैं, ठीक यहां भी महागुरु नामक पात्र हमें पढ़ने को मिलता है ?
यह कहानी झूठ-सच, जादू और उसमें भी काला-जादू से निकलते-निकलते एक साधारण चरवाहे को किताब के टाइटल यानि पारस पत्थर से भेंट करा ही देती है और वह बन जाता है आर्यावर्त्त का राजा !
-- प्रधान प्रशासी-सह-प्रधान संपादक ।
'Harry Potter and the Philosopher's Stone',
किताब की कहानी हमारे सभी पाठकगण को मालूम हैं, लेकिन श्रीमान प्रेम एस. गुर्जर साहब ने हैरी पॉटर की कहानी को भारतीय संस्कृति का अमली जामा पहनाकर एक चरवाहे की कथा को और विश्वास की ताकत को सँजोकर उसे राजा बनने की राह दिखा देते हैं । 'फिलॉसॉफर्स स्टोन' मतलब पारस पत्थर की कहानी ! आज मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, फिलॉसॉफर्स स्टोन की समीक्षा, लेकिन इससे पहले लेखक से एकबात पूछना चाहूँगा कि जिस तरह जे.के.रॉलिंग अपने नाम के शुरुआती अक्षर शॉर्ट फॉर्म में लिखते हैं, तो क्या लेखक प्रेम एस. गुर्जर भी एस. को गौण रखना चाहेंगे ! अगर 'एस' को विलुप्त व गौण नहीं रखना चाहते हैं, तो बतायेंगे, हमारे पाठकों को ! ..... कि 'एस' से 'Yes' कहलाकर 'एस' माने 'स्टोन' कहला दूँ ! क्यों ? आइये, पढ़ते हैं.......
बीते दिनों जब भारतरत्न श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ज़िन्दगी और मौत के बीच मौत को मात देने की कोशिश कर रहे थे, तो मैं दद्दू (इन्हें मैं दद्दू मानता हूँ ) की स्वास्थ्य की कामना करते हुए प्रस्तुत नॉवेल को पढ़े जा रहा था, क्योंकि यह एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है, जिनके नाम की चर्चा आधी कहानी निकलने के बाद पेज नम्बर 60 में ही मालूम होता है कि वह व्यक्ति जिसका नाम मानव है, जो कि पेशे से चरवाहा है, लेकिन इस मानव का सपना यहीं तक सीमित रहना नहीं है, अपितु हर रोज उसे एक सपना परेशान करता है । हाँ, वैसे भी मिसाइल मैन 'कलाम चचा' कह गए हैं कि सपना वह नहीं है, जो आप सोते हुए देखते हैं, बल्कि सपना वह है, जो आपको सोने न दें !
हमारे कहानी के नायक के साथ भी यहीं होता है। वह अपने गाँव, घर और परिवार को छोड़ निकल पड़ता है, नियति की तलाश में ! क्या उसे नियति मिल पाएगी ? यहाँ कह देना चाहूंगा, नियति कोई लड़की नहीं है ।
लेखक ने साधारण शब्दों में अच्छी कहानी लिखने की कोशिश की है, लेकिन उपन्यास के पेजेज जैसे-जैसे खत्म होते जाते हैं, स्वप्न और प्यार को पाने के चक्कर में मानव भी खोते चले जाते हैं, तो कभी हिम्मत और विश्वास के दम पर लक्ष्य के करीब आ भी जाते हैं, परंतु जैसे वह अपनी नियति के करीब आता है, लेखक कहानी में हैरी पॉटर के कॉन्सेप्ट को मिला देते हैं, जो कि कथा का ट्विस्ट है ।
कैसे हैरी पॉटर में हैरी की रक्षा करने डंबलडोर आते हैं, ठीक यहां भी महागुरु नामक पात्र हमें पढ़ने को मिलता है ?
यह कहानी झूठ-सच, जादू और उसमें भी काला-जादू से निकलते-निकलते एक साधारण चरवाहे को किताब के टाइटल यानि पारस पत्थर से भेंट करा ही देती है और वह बन जाता है आर्यावर्त्त का राजा !
-- प्रधान प्रशासी-सह-प्रधान संपादक ।
बहुत-बहुत शुक्रिया सर
ReplyDeleteस्वागत है !
Deleteसमीक्षाकर्ता को धन्यवाद कि विषय वस्तु की संक्षिप्त जानकारी उपलब्ध करवाई।
ReplyDeleteमित्र प्रेम एस गुर्जर जी को 'फिलोसाॅफर्स स्टोन'उपन्यास के लिए बधाई । साथ ही अगली रचना के इन्तजार में....
आभार !
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