पूरी दुनिया में उगते हुए सूर्य को प्रणाम व नमस्कार किया जाता है, अर्थात अच्छे दिनों में लोगों की सबकोई हौसले अफजाई करते हैं, लेकिन पूरी दुनिया में भारत के मुख्यरूपेण बिहार राज्य में ऐसा ही प्रतिवर्ष होता है, जहां 'डूबते हुए सूर्य' को भी प्रणाम किया जाता हैं । डूबते हुए 'सूर्य' देव का नमन यानी छठ पर्व का पहला अर्घ्य । आज मैसेंजर ऑफ ऑर्ट में पढ़ते हैं गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड होल्डर प्रो.सदानंद पॉल का आलेख...,आइये देर न करते हुए पढ़ ही लेते हैं --
शारदा सिन्हा के 'छठ' गीतों में 'अभद्र' शब्दों का बोलबाला !
सूर्योपासना और लोकआस्था का महापर्व 'छठ' के आते ही बिहार, झारखंड, पश्चिमी प. बंगाल, पूर्वी उत्तर प्रदेश, नेपाल इत्यादि अवस्थित श्रद्धालुओं द्वारा कैसेट, सीडी, मोबाइल, लाउडस्पीकर, साउंड बॉक्स इत्यादि के मार्फ़त 'छठ' गीत सुनने को मिलने लग जाते हैं।
पहले पद्मश्री विंध्यवासिनी देवी, अनुराधा पौडवाल के द्वारा गाई गई लोकगीतों को सुनी जा सकती थी । हालांकि यह अब भी है, किन्तु लगभग 3 दशकों से जिस प्रकार से 'छठी' मैया के लोकगीतों को लेकर 'शारदा सिन्हा' के गीतों की घर-घर चर्चा है, इसे सुनते हुए बिहार सरकार ने 2009 में उन्हें 'भोजपुरी की लता मंगेशकर सम्मान' प्रदान की ।
किन्तु हर किसी को भारत रत्न लता मंगेशकर कह देने से 'शारदा जी' को लेकर अभिमानबोध गृहीत होती है । वैसे शारदा सिन्हा के बोल में न सिर्फ भोजपुरी, अपितु हिंदी, मैथिली, मगही, वज्जिका, अंगिका इत्यादि भाषाई भी शामिल हैं । जिसतरह से उनकी द्वारा गाई गयी छठी गीतों में कुष्ठ रोगियों के लिए अपशब्द जैसे- कोढ़िया, फिर दृष्टिहीन व्यक्ति के लिए अन्हरा, संतानहीन माता-बहनों के लिए बांझ इत्यादि सहित अनुसूचित जाति के लिए 'डोमरा' कह इनके कार्य 'सुपवा' को गीतों में पिरोया गया है, यह उक्त रोगी, दिव्यांग व जाति-पाँति के भाव लिए असम्मान करने के गुरेज़ से है । यही नहीं, किसी को 'कुरूप' (ugly) कह ऐसे लोगों को उबारना नहीं, अपितु उनमें हीनभावना भरना ही कहा जायेगा । रही-सही कसर, शारदा सिन्हा के इन गीतों के माध्यम से छठी मैया से 'पुत्र' प्राप्ति की प्रबलतम इच्छा को उद्भूत कर 'बेटी बचाओ' अभियान को तिरोहित की जा रही है ! उनकी छठ गीतों में -- ओ हो दीनानाथ, पहले-पहले छठी मैया, केलवा के पात पर, नदिया के तीरे-तीरे, उठहु सुरुज भेले बिहान, हे गंगा मैया, पटना के घटवा पर..... इत्यादि को सर्वप्रथम HMV ने स्वरबद्ध किया, बाद में T-series ने ।
जबकि पद्मभूषण शारदा सिन्हा की कविता कितनी ही भाव-प्रवण है, देखिए तो सही---
"कौम को कबीलों में मत बाँटो,
सफ़र को मीलों में मत बाँटो,
बहने दो पानी जो बहता है --
अपनी रवानी में उसे कुँआ,
तालाबों, झीलों में मत बाँटो !"
परंतु, गायन में अभद्र शब्द क्यों ?
यह दीगर बात है, 1988 में मॉरीशस के स्वतंत्रता-समारोह में इनकी प्रस्तुति ने खास पहचान बनाई, तो 1991 में भारत सरकार ने उन्हें 'पद्मश्री' से सम्मानित की, तो 26 वर्ष बाद यानी 2017 में 'पद्मभूषण' से सम्मानित भी किया । इस बीच 2000 में संगीत नाटक अकादमी ने भी सम्मानित की है ।
ध्यातव्य है, सुपौल (बिहार) के हुलास गाँव में शिक्षाधिकारी पिता शुकदेव ठाकुर के घर अक्टूबर 1952 में जन्मी शारदा ठाकुर की शादी डॉ. ब्रज किशोर सिन्हा से होने के बाद वह शारदा सिन्हा हो गई । हालांकि वे खुद महिला महाविद्यालय, समस्तीपुर में प्राध्यापक थी। बांकीपुर बालिका उच्च विद्यालय, पटना से मैट्रिक करने के बाद मगध महिला महाविद्यालय, पटना से इंटर, स्नातक और अंग्रेजी में स्नातकोत्तर, तो पुनः 'प्रयाग संगीत समिति, इलाहाबाद' से संगीत में भी स्नातकोत्तर की। इतना ही नहीं, टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज, समस्तीपुर से बी एड की । बहरहाल, 2017 में प्राध्यापिका पद से अवकाशप्राप्ति के बाद राजेंद्रनगर, पटना में अपने आवास 'नारायणी' में रह रही हैं ।
नमस्कार दोस्तों !
'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।
शारदा सिन्हा के 'छठ' गीतों में 'अभद्र' शब्दों का बोलबाला !
सूर्योपासना और लोकआस्था का महापर्व 'छठ' के आते ही बिहार, झारखंड, पश्चिमी प. बंगाल, पूर्वी उत्तर प्रदेश, नेपाल इत्यादि अवस्थित श्रद्धालुओं द्वारा कैसेट, सीडी, मोबाइल, लाउडस्पीकर, साउंड बॉक्स इत्यादि के मार्फ़त 'छठ' गीत सुनने को मिलने लग जाते हैं।
पहले पद्मश्री विंध्यवासिनी देवी, अनुराधा पौडवाल के द्वारा गाई गई लोकगीतों को सुनी जा सकती थी । हालांकि यह अब भी है, किन्तु लगभग 3 दशकों से जिस प्रकार से 'छठी' मैया के लोकगीतों को लेकर 'शारदा सिन्हा' के गीतों की घर-घर चर्चा है, इसे सुनते हुए बिहार सरकार ने 2009 में उन्हें 'भोजपुरी की लता मंगेशकर सम्मान' प्रदान की ।
किन्तु हर किसी को भारत रत्न लता मंगेशकर कह देने से 'शारदा जी' को लेकर अभिमानबोध गृहीत होती है । वैसे शारदा सिन्हा के बोल में न सिर्फ भोजपुरी, अपितु हिंदी, मैथिली, मगही, वज्जिका, अंगिका इत्यादि भाषाई भी शामिल हैं । जिसतरह से उनकी द्वारा गाई गयी छठी गीतों में कुष्ठ रोगियों के लिए अपशब्द जैसे- कोढ़िया, फिर दृष्टिहीन व्यक्ति के लिए अन्हरा, संतानहीन माता-बहनों के लिए बांझ इत्यादि सहित अनुसूचित जाति के लिए 'डोमरा' कह इनके कार्य 'सुपवा' को गीतों में पिरोया गया है, यह उक्त रोगी, दिव्यांग व जाति-पाँति के भाव लिए असम्मान करने के गुरेज़ से है । यही नहीं, किसी को 'कुरूप' (ugly) कह ऐसे लोगों को उबारना नहीं, अपितु उनमें हीनभावना भरना ही कहा जायेगा । रही-सही कसर, शारदा सिन्हा के इन गीतों के माध्यम से छठी मैया से 'पुत्र' प्राप्ति की प्रबलतम इच्छा को उद्भूत कर 'बेटी बचाओ' अभियान को तिरोहित की जा रही है ! उनकी छठ गीतों में -- ओ हो दीनानाथ, पहले-पहले छठी मैया, केलवा के पात पर, नदिया के तीरे-तीरे, उठहु सुरुज भेले बिहान, हे गंगा मैया, पटना के घटवा पर..... इत्यादि को सर्वप्रथम HMV ने स्वरबद्ध किया, बाद में T-series ने ।
जबकि पद्मभूषण शारदा सिन्हा की कविता कितनी ही भाव-प्रवण है, देखिए तो सही---
"कौम को कबीलों में मत बाँटो,
सफ़र को मीलों में मत बाँटो,
बहने दो पानी जो बहता है --
अपनी रवानी में उसे कुँआ,
तालाबों, झीलों में मत बाँटो !"
परंतु, गायन में अभद्र शब्द क्यों ?
यह दीगर बात है, 1988 में मॉरीशस के स्वतंत्रता-समारोह में इनकी प्रस्तुति ने खास पहचान बनाई, तो 1991 में भारत सरकार ने उन्हें 'पद्मश्री' से सम्मानित की, तो 26 वर्ष बाद यानी 2017 में 'पद्मभूषण' से सम्मानित भी किया । इस बीच 2000 में संगीत नाटक अकादमी ने भी सम्मानित की है ।
ध्यातव्य है, सुपौल (बिहार) के हुलास गाँव में शिक्षाधिकारी पिता शुकदेव ठाकुर के घर अक्टूबर 1952 में जन्मी शारदा ठाकुर की शादी डॉ. ब्रज किशोर सिन्हा से होने के बाद वह शारदा सिन्हा हो गई । हालांकि वे खुद महिला महाविद्यालय, समस्तीपुर में प्राध्यापक थी। बांकीपुर बालिका उच्च विद्यालय, पटना से मैट्रिक करने के बाद मगध महिला महाविद्यालय, पटना से इंटर, स्नातक और अंग्रेजी में स्नातकोत्तर, तो पुनः 'प्रयाग संगीत समिति, इलाहाबाद' से संगीत में भी स्नातकोत्तर की। इतना ही नहीं, टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज, समस्तीपुर से बी एड की । बहरहाल, 2017 में प्राध्यापिका पद से अवकाशप्राप्ति के बाद राजेंद्रनगर, पटना में अपने आवास 'नारायणी' में रह रही हैं ।
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