साल (Year) यूँ ही आकर यूँ ही चली भी जाती है । हमारे दादा के समय भी साल नियमित आयी थी, अब उनके निर्वाण के बाद भी साल आ रही है और आज उसी कड़ी में 2018 नामक साल भी अब जाने को ही है, क्योंकि सम्प्रति साल की अंतिम तिथि है आज ! किंतु साल की विदाई बेला को हम नैराश्य नहीं, अपितु महती आवश्यक बनाना चाहते हैं ! हर साल ख़ुशियाँ और दुखियाँ यानी दोनों बहनों को साथ-साथ लाती हैं, लेकिन जो दुःख की घड़ी में आपके मनोबल को डिगने न दें, उन्हें हम सच्चा मित्र अथवा डॉक्टर कहते हैं । परन्तु कोई डॉक्टर अगर साथ-साथ लेखक भी हो, तो सोने पे सुहागा यानी 'positive' मीमांसा के विनयस्त: साकार और सकारात्मक तथ्यान्वेषण लिए वह हमेशा ही चिरनीत और दूसरों के लिए सहयोगार्थ प्रतिबद्ध रहते हैं !
वर्ष (Year) की अंतिम तिथि को 'मैसेंजर ऑफ आर्ट' जहाँ अपने आदरणीय पाठकों को एक ऐसे शख़्सियत से मिलाने को उत्सुक हैं, जो प्रवासी भारतीय हैं, अर्थात नॉर्वे में रेडियोलॉज़िस्ट हैं यानी चिकित्सकीय पेशा से आबद्ध हैं, साथ ही संगीत-अध्ययनज्ञ तथा लेखक भी हैं, उनकी प्रकाशित पुस्तकों में --- चमनलाल की डायरी (2016),भूतों के देश में :आइसलैंड (2018), नास्तिकों के देश में :नीदरलैंड (2018) इत्यादि प्रासंगिक रचनायें प्रकाशित हो चुकी हैं । फिर तो हर माह को प्रकाशित व प्रसारित होनेवाली 'इनबॉक्स इंटरव्यू' के लिए बहुमुखी प्रतिभा के धनी इस शख़्सियत का एतदर्थ चयन किया जाना कतई अप्रासंगिक नहीं है ।
उन्हें और भी जानने व समझने से पहले 'मैसेंजर ऑफ आर्ट' के संपादक भी अपनी बात रखना चाहता है । साल का अंतिम दिन और आज मेरा जन्मदिवस भी है, सिर्फ़ तीन साल और कुछ माह की उम्र में मेरी किताब आ चुकी थी, जो गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड के लिए पंजीकृत हुई थी। मैं पिछले 13 सालों से RTI के माध्यम से और इसके प्रसंगश: सलाहकार के रूप में सामाजिक कार्य कर रहा हूँ। मेरा नाम गणित, विज्ञान और अन्य कार्यार्थ लिम्का बुक, इंडिया बुक सहित देश-विदेश के अनेक रिकार्ड्स बुक व रिकार्ड्स वेबसाइट में दर्ज हो चुके हैं, लेकिन इन सबों के बावजूद मेरा दिल अब भी अभियंता की तरह धड़कता है यानी डिग्रीवाले इंजीनियर से इतर समाज के इंजीनियर के रूप में, तो राष्ट्र के इंजीनियर के रूप में !
इस माह के 'इनबॉक्स इंटरव्यू' के लिए आइये हम लेखक-डॉक्टर व डॉक्टर-लेखक श्रीमान प्रवीण कुमार झा से मिलते हैं, जो रहते तो हैं नॉर्वे में, किंतु वहाँ भी उनकी चिंता में भारत और हिंदी गृहीत है ! देरी किये बगैर, सम्प्रति इंटरव्यू के माध्यम से डॉक्टर साहब से 14 गझिन प्रश्नों का सुलझे उत्तर पढ़िये तो लीजिये जरा !
इससे पहले डॉ. प्रवीण कुमार झा और हमारे प्रबुद्ध पाठकों को "नूतन वर्ष 2019 की शुभमंगलकामनाएँ !"
प्र.(1.)आपके कार्यों को इंटरनेट / सोशल मीडिया / प्रिंट मीडिया के माध्यम से जाना । इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र के आईडिया-संबंधी 'ड्राफ्ट' को सुस्पष्ट कीजिये ?
उ:- मेरा लेखन मेरी रुचि से ही है। संगीत में रुचि है, तो संगीत पर सोशल मीडिया या अखबारों में कॉलम लिखता हूँ। पुस्तक भी लिख रहा हूँ। इतिहास में रुचि है, तो उनके पहलुओं पर लिखता रहता हूँ। यात्राएँ करता हूँ, तो संस्मरण लिखता हूँ। उनमें भी मेरी रुचि मानवीय, सामाजिक और सांस्कृतिक पहलुओं पर अधिक है। एन्थ्रॉपॉलोज़ी और साम्य ढूँढना। इसी संबंध में स्कैंडिनैविया और यूरोप के देशों के भारतीय संस्कृति से तुलनात्मक लेखन किया है और ‘ग्रेट इंडियन डायस्पोरा’ के प्रसंगश: प्रतीक्षित भी है। अंग्रेज़ी कथेतर विधाओं में यह भारी मात्रा में उपलब्ध है, जो समाज को समझने और एक-दूसरे से सीखने में मदद करती रही है। हिन्दी में भी होगी, तो समाज का एक बड़ा तबका शायद अधिक लचीला या परिवर्तनशील बने, रूढ़ नहीं। कुछ ऐसी ही सकारात्मकता लेखन-कला में रखना चाहता हूँ।
प्र.(2.)आप किसतरह के पृष्ठभूमि से आये हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
उ:- मैं ग्रामीण और छोटे शहर के पृष्ठभूमि से ही हूँ, बिहार के मिथिलांचल से। वहाँ गप्प देने की पुरानी संस्कृति रही है। कहीं भी, कभी भी। कोरे गप्प भी मीमांसा बन कर उभरते हैं, जैसे ‘खट्टर-कक्का’ लिखा गया। चौपाल में बैठ घटनाओं की अभिधा, लक्षणा और व्यंजना से व्याख्या करना भी गंवई दास्ताँगोई ही है। मेरी शुरुआत भी वहीं से हुई जब गाँव के वाचनालय की घास पर हम हफ्ते में एक शाम बैठते थे।
बाकी, मैं चिकित्सक हूँ। रोज सैकड़ों लोग मिलते हैं। बहुभाषी हूँ कि नॉर्वेज़ियन, अंग्रेज़ी, हिन्दी, मैथिली, कन्नड़, मराठी और कुछ तेलुगु लिख-बोल लेता हूँ। तीन महादेशों (एशिया, अमरीका, यूरोप) में ख़ासा वक़्त बिताया है और खूब दोस्त बनाए हैं। छात्र-नेतागिरी, हल्की-फुल्की भाषणबाजी और संगीत आयोजनों से भी कुछ जुड़ा रहा। अब सोशल मीडिया से भी जुड़ गया और ‘मैसेंजर ऑफ आर्ट’ से भी रू-ब-रू हो गया। इन सबका योगदान तो है ही।
प्र.(3.)आपका जो कार्यक्षेत्र है, इनसे आमलोग किसतरह से इंस्पायर अथवा लाभान्वित हो सकते हैं ?
उ:- शास्त्रीय संगीत पर किस्से-कहानियों के मध्य कुछ बारीकी बातें लिखता रहा हूँ, जिससे कई युवा अब सुनने और समझने लगे हैं। यह अथाह विद्या है और मैं संगीतकार नहीं, लेकिन रोचक ढंग से लिखता रहा हूँ। जो कभी नीरस समझ कर नकार दिया गया यह संगीत अब जनमानस को छूने लगा है। एक मित्र ने तो प्रसूति काल में भी इस संगीत का उपयोग किया और यह सहज बना। जब संस्कृतियों पर लिखता हूँ, तो विदेशी संस्कृतियों के गुण-अवगुण से सब परिचित होते हैं। यह भी काफी पसंद किया गया और प्रेरक रहा है। एक महत्वपूर्ण, लेकिन 'भूले-बिसरे इतिहास' पर शोध-पुस्तक शीघ्र प्रकाश्य है, इसकी जल्द खबर मिलेगी। यह एक बड़े समूह को लाभान्वित कर सकती है।
प्र.(4.)आपके कार्य में आये जिन रूकावटों,बाधाओं या परेशानियों से आप या संगठन रू-ब-रू हुए, उनमें से दो उद्धरण दें ?
उ:- पहला तो यह कि मैं साहित्य-मंडली का व्यक्ति नहीं हूँ और दूसरा यह कि हिन्दी लेखन में नया हूँ। विदेश में रहता हूँ, तो साहित्योत्सवों में नहीं जा पाता। प्रकाशकों और साहित्यकारों से नियमित नहीं मिल पाता ! यह परिस्थितिजनित बाधाएँ हैं। किसी व्यक्ति ने कभी बाधा नहीं डाली, बल्कि सहयोग ही मिला। ख़ास कर जानकीपुल (प्रभात जी का ब्लॉग) ने मुझे कई अवसर दिए कि लोग मुझे जान व समझ सकें।
प्र.(5.)अपने कार्य क्षेत्र के लिए क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होना पड़ा अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के तो शिकार न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाये ?
उ:- नहीं ! ऐसी कोई दिक्कत तो नहीं आई। परंतु हाँ, इस बात को लेकर कि पहले प्रकाशन की दुनिया से बेखबर था, तो ऑनलाइन कंपनी से पहली पुस्तक प्रकाशित कराई और कुछ खर्च कर वितरण भी करवाया। कितने बिके, इसपर यही कहना है कि तथ्यों की पारदर्शिता पर संदेह रहा ! आखिर मैंने किंडल पर ही किताबें रखी, तो जितने भी बिकते हैं, वह उसी वक्त अपडेट होता है। यह भी कि कितने पृष्ठ पढ़े गए ? हालांकि हिन्दी में किंडल बाज़ार अभी नया है और वहाँ प्रिंट की अपेक्षा खरीद लगभग चौथाई है। नये लेखकों की किताबों की बिक्री कम होती है।
प्र.(6.)आपने यही क्षेत्र क्यों चुना ? आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट थे या उनसबों ने राहें अलग पकड़ ली !
उ:- डॉक्टरी तो मैंने कई वर्ष पहले चुना। उसकी वजह अब नहीं याद ! लेखन का क्षेत्र मेरे लिए सुलभ था कि किताबें पढ़ने का शौक रहा है। परिवार के सदस्य इसमें सहयोग देते ही हैं या यूँ कहिए कि उन्हें ख़ास मतलब नहीं !
प्र.(7.)आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ? यह सभी सम्बन्ध से हैं या इतर हैं !
उ:- सहयोगी तो हर रोज नए मिल रहे हैं, वहीं कुछ मित्र प्रूफ़रीडिंग कर देते हैं। कुछ मुझे समझाते हैं, तो कुछ नए माध्यम हेतु सुझाते हैं। इनमें अब प्रकाशक भी हैं। यह सभी रक्त-संबंध से इतर है और इनसे मैं कभी व्यक्तिगत रूप से मिला भी नहीं। लेखकों में मात्र गिरिंद्रनाथ जी से उनके गाँव में मिला हूँ।
प्र.(8.)आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ? इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं अथवा संस्कृति पर चोट पहुँचाने के कोई वजह ?
उ:- शास्त्रीय संगीत, संस्कृति के तुलनात्मक अध्ययन और इतिहास। यह तीनों ही भारतीय संस्कृति से सीधे तौर पर जुड़े हैं। मेरा लेखन भारतीय संस्कृति लिए केंद्रित है। चोट तो कभी नहीं पहुँचाता, तुलना करता रहा हूँ। ध्येय सकारात्मक देना ही है।
प्र.(9.)भ्रष्टा चारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में आप और आपके कार्य कितने कारगर साबित हो सकते हैं !
उ:- मैं भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्रों पर नियमित लेखनकार्य करता रहा हूँ। यह भी कि उनसे क्या सीख सकते हैं, उनके प्रसंगश: भी मेरा लेखन सामाजिक मूल्यों पर ही केंद्रित है। हाँ, रोमांस पर मैंने कम लिखा है। इन मूल्यों से आशा है कि समाज भी बेहतर ही बनेगा।
प्र.(10.)इस कार्य के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे से इतर किसी प्रकार के सहयोग मिले या नहीं ? अगर हाँ, तो संक्षिप्त में बताइये ।
उ:- जैसा मैंने कहा कि प्रभात जी के ब्लॉग 'जानकीपुल' से सहयोग मिला। ‘नई वाली हिन्दी’ से जुड़े युवा लेखकों ने भी समय-समय पर अप्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष रूप से सुझाव व सहयोग दिया है। संगीत के क्षेत्र में यतींद्र जी और विनोद जी से विचार-विमर्श होते रहे हैं, हालांकि हम कभी मिले नहीं ! कथेतर विधा में अच्छे पत्रकारों और लेखकों से संपर्क में रहा हूँ। कुछ अच्छे संपादक भी नियमित प्रोत्साहन करते रहे हैं, यही पुरस्कार है और बाकी कुछ मंच पर मेडल वगैरह तो नहीं मिला, परंतु पाठकों से गाहे-बगाहे जो प्यार मिला, इनकी तुलना किसी भी अवार्ड अथवा मेडल से नहीं की जा सकती !
प्र.(11.)आपके कार्य क्षेत्र के कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी धोखा, केस या मुकद्दमे की परेशानियां झेलने पड़े हों ?
उ:- नहीं।
प्र.(12.)कोई किताब या पम्फलेट जो इस सम्बन्ध में प्रकाशित हों, तो बताएँगे ?
उ:- नहीं।
( सम्पादकीय हस्तक्षेप:- उनकी कुछ किताबें प्रकाशित हैं, जो ऊपर वर्णित हैं। )
प्र.(13.)इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, बताएँगे ?
उ:- एक भी नहीं।
प्र.(14.)आपके कार्य मूलतः कहाँ से संचालित हो रहे हैं तथा इसके विस्तार हेतु आप समाज और राष्ट्र को क्या सन्देश देना चाहेंगे ?
उ:- मैं तो नॉर्वे में अपने मोबाइल पर ही किताबें या लेख लिखता हूँ। हिन्दी में लेखकीय और पाठकीय विस्तार से अधिक महत्वपूर्ण अब यह है कि अगली पीढ़ी देवनागरी नियमित पढ़ पाए। महानगरों और अभिजात्य घरों में भी हिन्दी अखबार और पत्रिकाएँ ली जाए और पढ़ी जाए। उनमें भी बाल-पत्रिकाएँ तो निश्चित ही ! इसके अतिरिक्त अन्य क्षेत्रीय भाषाओं का भी विस्तार हो !
वर्ष (Year) की अंतिम तिथि को 'मैसेंजर ऑफ आर्ट' जहाँ अपने आदरणीय पाठकों को एक ऐसे शख़्सियत से मिलाने को उत्सुक हैं, जो प्रवासी भारतीय हैं, अर्थात नॉर्वे में रेडियोलॉज़िस्ट हैं यानी चिकित्सकीय पेशा से आबद्ध हैं, साथ ही संगीत-अध्ययनज्ञ तथा लेखक भी हैं, उनकी प्रकाशित पुस्तकों में --- चमनलाल की डायरी (2016),भूतों के देश में :आइसलैंड (2018), नास्तिकों के देश में :नीदरलैंड (2018) इत्यादि प्रासंगिक रचनायें प्रकाशित हो चुकी हैं । फिर तो हर माह को प्रकाशित व प्रसारित होनेवाली 'इनबॉक्स इंटरव्यू' के लिए बहुमुखी प्रतिभा के धनी इस शख़्सियत का एतदर्थ चयन किया जाना कतई अप्रासंगिक नहीं है ।
उन्हें और भी जानने व समझने से पहले 'मैसेंजर ऑफ आर्ट' के संपादक भी अपनी बात रखना चाहता है । साल का अंतिम दिन और आज मेरा जन्मदिवस भी है, सिर्फ़ तीन साल और कुछ माह की उम्र में मेरी किताब आ चुकी थी, जो गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड के लिए पंजीकृत हुई थी। मैं पिछले 13 सालों से RTI के माध्यम से और इसके प्रसंगश: सलाहकार के रूप में सामाजिक कार्य कर रहा हूँ। मेरा नाम गणित, विज्ञान और अन्य कार्यार्थ लिम्का बुक, इंडिया बुक सहित देश-विदेश के अनेक रिकार्ड्स बुक व रिकार्ड्स वेबसाइट में दर्ज हो चुके हैं, लेकिन इन सबों के बावजूद मेरा दिल अब भी अभियंता की तरह धड़कता है यानी डिग्रीवाले इंजीनियर से इतर समाज के इंजीनियर के रूप में, तो राष्ट्र के इंजीनियर के रूप में !
इस माह के 'इनबॉक्स इंटरव्यू' के लिए आइये हम लेखक-डॉक्टर व डॉक्टर-लेखक श्रीमान प्रवीण कुमार झा से मिलते हैं, जो रहते तो हैं नॉर्वे में, किंतु वहाँ भी उनकी चिंता में भारत और हिंदी गृहीत है ! देरी किये बगैर, सम्प्रति इंटरव्यू के माध्यम से डॉक्टर साहब से 14 गझिन प्रश्नों का सुलझे उत्तर पढ़िये तो लीजिये जरा !
इससे पहले डॉ. प्रवीण कुमार झा और हमारे प्रबुद्ध पाठकों को "नूतन वर्ष 2019 की शुभमंगलकामनाएँ !"
श्रीमान प्रवीण कुमार झा |
प्र.(1.)आपके कार्यों को इंटरनेट / सोशल मीडिया / प्रिंट मीडिया के माध्यम से जाना । इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र के आईडिया-संबंधी 'ड्राफ्ट' को सुस्पष्ट कीजिये ?
उ:- मेरा लेखन मेरी रुचि से ही है। संगीत में रुचि है, तो संगीत पर सोशल मीडिया या अखबारों में कॉलम लिखता हूँ। पुस्तक भी लिख रहा हूँ। इतिहास में रुचि है, तो उनके पहलुओं पर लिखता रहता हूँ। यात्राएँ करता हूँ, तो संस्मरण लिखता हूँ। उनमें भी मेरी रुचि मानवीय, सामाजिक और सांस्कृतिक पहलुओं पर अधिक है। एन्थ्रॉपॉलोज़ी और साम्य ढूँढना। इसी संबंध में स्कैंडिनैविया और यूरोप के देशों के भारतीय संस्कृति से तुलनात्मक लेखन किया है और ‘ग्रेट इंडियन डायस्पोरा’ के प्रसंगश: प्रतीक्षित भी है। अंग्रेज़ी कथेतर विधाओं में यह भारी मात्रा में उपलब्ध है, जो समाज को समझने और एक-दूसरे से सीखने में मदद करती रही है। हिन्दी में भी होगी, तो समाज का एक बड़ा तबका शायद अधिक लचीला या परिवर्तनशील बने, रूढ़ नहीं। कुछ ऐसी ही सकारात्मकता लेखन-कला में रखना चाहता हूँ।
प्र.(2.)आप किसतरह के पृष्ठभूमि से आये हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
उ:- मैं ग्रामीण और छोटे शहर के पृष्ठभूमि से ही हूँ, बिहार के मिथिलांचल से। वहाँ गप्प देने की पुरानी संस्कृति रही है। कहीं भी, कभी भी। कोरे गप्प भी मीमांसा बन कर उभरते हैं, जैसे ‘खट्टर-कक्का’ लिखा गया। चौपाल में बैठ घटनाओं की अभिधा, लक्षणा और व्यंजना से व्याख्या करना भी गंवई दास्ताँगोई ही है। मेरी शुरुआत भी वहीं से हुई जब गाँव के वाचनालय की घास पर हम हफ्ते में एक शाम बैठते थे।
बाकी, मैं चिकित्सक हूँ। रोज सैकड़ों लोग मिलते हैं। बहुभाषी हूँ कि नॉर्वेज़ियन, अंग्रेज़ी, हिन्दी, मैथिली, कन्नड़, मराठी और कुछ तेलुगु लिख-बोल लेता हूँ। तीन महादेशों (एशिया, अमरीका, यूरोप) में ख़ासा वक़्त बिताया है और खूब दोस्त बनाए हैं। छात्र-नेतागिरी, हल्की-फुल्की भाषणबाजी और संगीत आयोजनों से भी कुछ जुड़ा रहा। अब सोशल मीडिया से भी जुड़ गया और ‘मैसेंजर ऑफ आर्ट’ से भी रू-ब-रू हो गया। इन सबका योगदान तो है ही।
प्र.(3.)आपका जो कार्यक्षेत्र है, इनसे आमलोग किसतरह से इंस्पायर अथवा लाभान्वित हो सकते हैं ?
उ:- शास्त्रीय संगीत पर किस्से-कहानियों के मध्य कुछ बारीकी बातें लिखता रहा हूँ, जिससे कई युवा अब सुनने और समझने लगे हैं। यह अथाह विद्या है और मैं संगीतकार नहीं, लेकिन रोचक ढंग से लिखता रहा हूँ। जो कभी नीरस समझ कर नकार दिया गया यह संगीत अब जनमानस को छूने लगा है। एक मित्र ने तो प्रसूति काल में भी इस संगीत का उपयोग किया और यह सहज बना। जब संस्कृतियों पर लिखता हूँ, तो विदेशी संस्कृतियों के गुण-अवगुण से सब परिचित होते हैं। यह भी काफी पसंद किया गया और प्रेरक रहा है। एक महत्वपूर्ण, लेकिन 'भूले-बिसरे इतिहास' पर शोध-पुस्तक शीघ्र प्रकाश्य है, इसकी जल्द खबर मिलेगी। यह एक बड़े समूह को लाभान्वित कर सकती है।
प्र.(4.)आपके कार्य में आये जिन रूकावटों,बाधाओं
उ:- पहला तो यह कि मैं साहित्य-मंडली का व्यक्ति नहीं हूँ और दूसरा यह कि हिन्दी लेखन में नया हूँ। विदेश में रहता हूँ, तो साहित्योत्सवों में नहीं जा पाता। प्रकाशकों और साहित्यकारों से नियमित नहीं मिल पाता ! यह परिस्थितिजनित बाधाएँ हैं। किसी व्यक्ति ने कभी बाधा नहीं डाली, बल्कि सहयोग ही मिला। ख़ास कर जानकीपुल (प्रभात जी का ब्लॉग) ने मुझे कई अवसर दिए कि लोग मुझे जान व समझ सकें।
प्र.(5.)अपने कार्य क्षेत्र के लिए क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होना पड़ा अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के तो शिकार न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाये ?
उ:- नहीं ! ऐसी कोई दिक्कत तो नहीं आई। परंतु हाँ, इस बात को लेकर कि पहले प्रकाशन की दुनिया से बेखबर था, तो ऑनलाइन कंपनी से पहली पुस्तक प्रकाशित कराई और कुछ खर्च कर वितरण भी करवाया। कितने बिके, इसपर यही कहना है कि तथ्यों की पारदर्शिता पर संदेह रहा ! आखिर मैंने किंडल पर ही किताबें रखी, तो जितने भी बिकते हैं, वह उसी वक्त अपडेट होता है। यह भी कि कितने पृष्ठ पढ़े गए ? हालांकि हिन्दी में किंडल बाज़ार अभी नया है और वहाँ प्रिंट की अपेक्षा खरीद लगभग चौथाई है। नये लेखकों की किताबों की बिक्री कम होती है।
प्र.(6.)आपने यही क्षेत्र क्यों चुना ? आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट थे या उनसबों ने राहें अलग पकड़ ली !
उ:- डॉक्टरी तो मैंने कई वर्ष पहले चुना। उसकी वजह अब नहीं याद ! लेखन का क्षेत्र मेरे लिए सुलभ था कि किताबें पढ़ने का शौक रहा है। परिवार के सदस्य इसमें सहयोग देते ही हैं या यूँ कहिए कि उन्हें ख़ास मतलब नहीं !
प्र.(7.)आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ? यह सभी सम्बन्ध से हैं या इतर हैं !
उ:- सहयोगी तो हर रोज नए मिल रहे हैं, वहीं कुछ मित्र प्रूफ़रीडिंग कर देते हैं। कुछ मुझे समझाते हैं, तो कुछ नए माध्यम हेतु सुझाते हैं। इनमें अब प्रकाशक भी हैं। यह सभी रक्त-संबंध से इतर है और इनसे मैं कभी व्यक्तिगत रूप से मिला भी नहीं। लेखकों में मात्र गिरिंद्रनाथ जी से उनके गाँव में मिला हूँ।
प्र.(8.)आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ? इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं अथवा संस्कृति पर चोट पहुँचाने के कोई वजह ?
उ:- शास्त्रीय संगीत, संस्कृति के तुलनात्मक अध्ययन और इतिहास। यह तीनों ही भारतीय संस्कृति से सीधे तौर पर जुड़े हैं। मेरा लेखन भारतीय संस्कृति लिए केंद्रित है। चोट तो कभी नहीं पहुँचाता, तुलना करता रहा हूँ। ध्येय सकारात्मक देना ही है।
प्र.(9.)भ्रष्टा
उ:- मैं भ्रष्टाचारमुक्त
प्र.(10.)इस कार्य के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे से इतर किसी प्रकार के सहयोग मिले या नहीं ? अगर हाँ, तो संक्षिप्त में बताइये ।
उ:- जैसा मैंने कहा कि प्रभात जी के ब्लॉग 'जानकीपुल' से सहयोग मिला। ‘नई वाली हिन्दी’ से जुड़े युवा लेखकों ने भी समय-समय पर अप्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष रूप से सुझाव व सहयोग दिया है। संगीत के क्षेत्र में यतींद्र जी और विनोद जी से विचार-विमर्श होते रहे हैं, हालांकि हम कभी मिले नहीं ! कथेतर विधा में अच्छे पत्रकारों और लेखकों से संपर्क में रहा हूँ। कुछ अच्छे संपादक भी नियमित प्रोत्साहन करते रहे हैं, यही पुरस्कार है और बाकी कुछ मंच पर मेडल वगैरह तो नहीं मिला, परंतु पाठकों से गाहे-बगाहे जो प्यार मिला, इनकी तुलना किसी भी अवार्ड अथवा मेडल से नहीं की जा सकती !
प्र.(11.)आपके कार्य क्षेत्र के कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी धोखा, केस या मुकद्दमे की परेशानियां झेलने पड़े हों ?
उ:- नहीं।
प्र.(12.)कोई किताब या पम्फलेट जो इस सम्बन्ध में प्रकाशित हों, तो बताएँगे ?
उ:- नहीं।
( सम्पादकीय हस्तक्षेप:- उनकी कुछ किताबें प्रकाशित हैं, जो ऊपर वर्णित हैं। )
प्र.(13.)इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, बताएँगे ?
उ:- एक भी नहीं।
प्र.(14.)आपके कार्य मूलतः कहाँ से संचालित हो रहे हैं तथा इसके विस्तार हेतु आप समाज और राष्ट्र को क्या सन्देश देना चाहेंगे ?
उ:- मैं तो नॉर्वे में अपने मोबाइल पर ही किताबें या लेख लिखता हूँ। हिन्दी में लेखकीय और पाठकीय विस्तार से अधिक महत्वपूर्ण अब यह है कि अगली पीढ़ी देवनागरी नियमित पढ़ पाए। महानगरों और अभिजात्य घरों में भी हिन्दी अखबार और पत्रिकाएँ ली जाए और पढ़ी जाए। उनमें भी बाल-पत्रिकाएँ तो निश्चित ही ! इसके अतिरिक्त अन्य क्षेत्रीय भाषाओं का भी विस्तार हो !
आप यू ही हँसते रहे , मुस्कराते रहे , स्वस्थ रहे-सानन्द रहे ! 'मैसेंजर ऑफ ऑर्ट' की ओर से नूतनवर्ष 2019 की सहस्रबार शुभमंगलकामनायें !
नमस्कार दोस्तों !
मैसेंजर ऑफ़ आर्ट' में आपने 'इनबॉक्स इंटरव्यू' पढ़ा । आपसे समीक्षा की अपेक्षा है, तथापि आप स्वयं या आपके नज़र में इसतरह के कोई भी तंत्र के गण हो, तो हम इस इंटरव्यू के आगामी कड़ी में जरूर जगह देंगे, बशर्ते वे हमारे 14 गझिन सवालों के सत्य, तथ्य और तर्कपूर्ण जवाब दे सके !
हमारा email है:- messengerofart94@gmail.com
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