श्रीमद्भगवद्गीता में लिखा है--
यदा-यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारतम्,
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ।
[हिंदी अर्थ:-
जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब ही मैं (ईश्वर) किसी न किसी रूप में जन्म लेता हूँ अर्थात साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूँ]
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्,
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ।
[हिंदी अर्थ:-सद्जनों का उद्धार करने के लिए, पाप कर्म करने वालों का विनाश करने के लिए और धर्म की अच्छी तरह से स्थापना करने के लिए मैं (ईश्वर ) युग-युग में प्रकट हुआ करता हूँ]
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ।
[हिंदी अर्थ:-सद्जनों का उद्धार करने के लिए, पाप कर्म करने वालों का विनाश करने के लिए और धर्म की अच्छी तरह से स्थापना करने के लिए मैं (ईश्वर ) युग-युग में प्रकट हुआ करता हूँ]
आज मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, एक सद्गुरु जिनमें वे सारे गुण हैं, जो किसी भी ईश-अवतार से भी उत्तुंग हो सकते हैं । संतमत-सत्संग के महान संत महर्षि मेंहीं के अभिन्न शिष्य महर्षि संतसेवी परमहंस के 99वां जन्मदिवस पर पढ़िये, सद्गुरु 'संतसेवी' स्वामी पर डॉ. सदानंद पॉल के लिखा जीवनवृन्त से ! आइये, इसे पढ़ते हैं......
बिहार, झारखंड, पूर्वांचल, प. बंगाल के पश्चिमी क्षेत्र और नेपाल, भूटान, जापान तक फैले संतमत-सत्संगियों के आदर्श सद्गुरुदेव ब्रह्मलीन महर्षि मेंहीं परमहंस के उत्तराधिकारी-शिष्य और संतमत-सत्संग के आचार्य रहे ब्रह्मलीन महर्षि संतसेवी परमहंस के पावन जन्मोत्सव (20 दिसम्बर) पर परम श्रद्धा से सादर नमन ! महर्षि मेंहीं और मेरे प्रपितामह मधुसूदन पटवारी मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश के संत बाबा देवी साहब के शिष्य थे, इसतरह से मेरा परिवार एतदर्थ संतमत - सत्संग के अनन्यतम विचारपोषक रहा है । मेरे पितामह योगेश्वर प्रसाद 'सत्संगी' तो महर्षि मेंहीं और महर्षि संतसेवी के सिद्धांतों में जीवन लीन कर दिए ।
20 दिसम्बर 1920 को बिहार के मधेपुरा जिला के गम्हरिया में कायस्थकुल में जन्म लिए 'महावीर लाल' ही महर्षि मेंहीं के सान्निध्य में 'संतसेवी' हो गए । सद्गुरुदेव के अविवाहित रहने पर वे भी एतदर्थ संन्यासी और आजन्म ब्रह्मचारी रहे, किन्तु कुप्पाघाट आश्रम, भागलपुर में रहने से पूर्व महर्षि मेंहीं के निर्देश पर स्वामी संतसेवी कटिहार जिले के मनिहारी और नवाबगंज में बच्चों को पढ़ाने लगे । वर्ष 1945 में महर्षि मेंहीं द्वारा स्थापित पहला संतमत - सत्संग मंदिर नवाबगंज में बना और फिर मनिहारी गंगातट पर साधना कुटीर / कुटी बना, जहाँ स्वामी संतसेवी अंतेवासीरूपेण रहने लगे, यहीं कई आध्यात्मिक ग्रंथों का प्रणयन भी किया । 'योग महात्म्य' नामक प्रसिद्ध ग्रंथ की रचना यहीं की गई थी । ध्यातव्य है, इस ग्रंथ को भारत के पूर्व प्रधानमंत्री भारतरत्न श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी सराहे हैं । 'महर्षि संतसेवी - हीरक जयंती - अभिनंदन ग्रंथ' में वाजपेयी जी के शुभकामना - पत्र भी प्रकाशित है, तब वाजपेयी जी लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता थे ।
स्वामी संतसेवी को 'महर्षि' विभूषण सनातन हिन्दू धर्म के एक शंकराचार्य ने प्रदान किया था । देश के राष्ट्रपति रहे डॉ. शंकर दयाल शर्मा महर्षि संतसेवी के विचारों से प्रभावित रहे हैं । भारत रत्न प्रधानमंत्री श्री वाजपेयी सहित श्री चंद्रशेखर, श्री नरेन्द्र मोदी से लेकर बिहार, झारखंड सहित कई राज्यों के राज्यपाल, मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री, आईएएस, आईपीएस, अभिनेता, अभिनेत्री, खिलाड़ी सहित लाखों शिष्य महर्षि मेंहीं और महर्षि संतसेवी के विचारों से प्रभावित रहे हैं।
नमस्कार दोस्तों !
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