मैसेंजर ऑफ आर्ट हमेशा से पुरानी चीजों को नये-नये तरीके से प्रकाशित करते आ रहे हैं । आज डॉ. अम्बेडकर साहब का महापरिनिर्वाण दिवस है । आइये पढ़ते हैं, उनपर अद्भुत आलेख, जो कि डॉ. सदानंद पॉल द्वारा लिखित है.....
1.] डॉ. आम्बेडकर ने 1952 में बॉम्बे (उत्तर मध्य) निर्वाचन क्षेत्र से पहले लोक सभा का चुनाव एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप मे लड़ा, किन्तु वे हार गये। इस चुनाव में आम्बेडकर को 123,576 मत तथा उनके कभी सहायक रहे नारायण सडोबा काजोलकर को 138,137 मत प्राप्त हुए थे । उन्होंने भंडारा से 1954 के उपचुनाव में फिर से लोकसभा में प्रवेश करने की कोशिश की, लेकिन वे तीसरे स्थान पर रहे । इस उपचुनाव में भी कांग्रेस पार्टी जीती। वोटों का मतदान किया गया था। मार्च 1952 में उन्हें संसद के ऊपरी सदन व राज्य सभा के लिए मनोनीत सदस्य के रूप में भेजा गया, जो मृत्युपर्यन्त वह इस सदन के सदस्य रहे।
2.] डॉ. आम्बेडकर ने अपनी राजनीतिक पार्टी को 'अखिल भारतीय अनुसूचित जाति संघ' में बदलते देखा, परंतु 1946 में भारत के 'संविधान सभा' के लिए हुये चुनाव में उनकी पार्टी ने खराब प्रदर्शन किया। बाद में वह बंगाल, जहां मुस्लिम लीग सत्ता में थी, वहां से संविधान सभा के लिए चुने गए।
3.] डॉ. आम्बेडकर ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 का विरोध किया, जिसने जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा दिया है । यह अनुच्छेद उनकी इच्छाओं के खिलाफ संविधान में शामिल किया गया था। डॉ. अम्बेडकर ने शेख अब्दुल्ला को स्पष्ट रूप से कहा था, "आप चाहते हैं कि भारत को आपकी सीमाओं की रक्षा करनी चाहिए, उसे आपके क्षेत्र में सड़कों का निर्माण करना चाहिए, उसे आपको अनाज की आपूर्ति करनी चाहिए, परंतु कश्मीर को भारत के समान दर्जा देना चाहिए और भारत सरकार के पास केवल सीमित शक्तियां होनी चाहिए और भारतीय लोगों को कश्मीर में कोई अधिकार नहीं होना चाहिए। इस प्रस्ताव को सहमति देने के लिए, भारत के कानून मंत्री के रूप में भारत के हितों के खिलाफ एक विश्वासघाती बात होंगी, यह वह कभी नहीं करेगा।"
4.] डॉ. आम्बेडकर वास्तव में 'समान नागरिक संहिता' के पक्षधर थे। भारत को वे आधुनिक, वैज्ञानिक और तर्कसंगत सोच-विचारोंवाले देश के रूप में देखना चाहते थे, जिनमें कोई भी पर्सनल कानून की जगह नहीं हो। 'संविधान सभा' में बहस के दौरान उन्होंने एक समान नागरिक संहिता को अपनाने की सिफारिश करके भारतीय समाज में सुधार करने की अपनी इच्छा प्रकट कि। सन 1951 मे संसद में अपने हिन्दू कोड बिल (हिंदू संहिता विधेयक) के मसौदे को रोके जाने के बाद डॉ. आम्बेडकर ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। हिंदू कोड बिल द्वारा भारतीय महिलाओं को कई अधिकारों प्रदान करने की बात कही गई थी।
5.] डॉ. आम्बेडकर ने 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में अपने समर्थकों के साथ एक औपचारिक सार्वजनिक धर्मांतरण समारोह का आयोजन किया। जहाँ उसने अपनी पत्नी सविता एवं कुछ सहयोगियों के साथ भिक्षु महास्थवीर चंद्रमणी द्वारा पारंपरिक तरीके से त्रिरत्न और पंचशील को अपनाते हुये बौद्ध धर्म ग्रहण किया । वह बौद्ध धर्म में मृत्यु तक यानी कुल 54 दिन रहे!
6.] डॉ. आम्बेडकर की पहली पत्नी रमाबाई की मृत्यु 27 मैं 1935 को एक लंबी बीमारी के बाद हो गई। रमाबाई अपनी मृत्यु से पहले तीर्थयात्रा के लिये पंढरपुर जाना चाहती थीं, परन्तु डॉ. आम्बेडकर ने उन्हे इसकी इजाज़त नहीं दी और कहा, "उस हिन्दू तीर्थ में जहाँ उनको अछूत माना जाता है, जाने का कोई औचित्य नहीं है ।" इसके बजाय उन्होंने पत्नी के लिये एक नया पंढरपुर बनाने की बात कही।
7.] डॉ. आम्बेडकर ने भारतीय संविधान के मसौदे को पूरा करने के बाद अनिद्रा से पीड़ित रहने लगे । उनके पैरों में न्यूरोपैथिक दर्द था, इंसुलिन और होम्योपैथिक दवाएं ले रहे थे। वह इलाज के लिए बॉम्बे (मुम्बई) गए और वहां डॉक्टर शारदा कबीर से मिले, जिनके साथ उन्होंने 15 अप्रैल 1948 को नई दिल्ली में अपने घर ही विवाह किए । डॉक्टरों ने एक ऐसे जीवन साथी की सिफारिश की जो एक अच्छा खाना पकाने वाली हो और उनकी देखभाल करने के लिए चिकित्सा ज्ञान हो। ब्राह्मणी डॉ. शारदा कबीर ने शादी के बाद सविता आम्बेडकर नाम अपनाया और उनके शेष जीवन में उनकी देखभाल की।
8.] डॉ. आम्बेडकर की मृत्यु के बाद परिवार में उनकी दूसरी पत्नी सविता आम्बेडकर रह गयी थीं, जो बौद्ध आंदोलन में आम्बेडकर के साथ बौद्ध बनने वाली पहली महिला थी। विवाह से पहले उनकी पत्नी का नाम डॉ. शारदा कबीर था। डॉ. सविता आम्बेडकर की एक बौद्ध के रूप में 29 मई 2003 में 94 वर्ष की आयु में मृत्यु हो गई। प्रथम पत्नी से प्राप्त पुत्र यशवंत आम्बेडकर रहे, फिर उनके पुत्र यानी डॉ. आम्बेडकर के पौत्र प्रकाश आम्बेडकर भारतीय संसद के दोनों सदनों के सदस्य रह चुके हैं। इसप्रकार प्रकाश, आनंदराज तथा भीमराव -- तीनों यशवंत आम्बेडकर के पुत्र हैं । डॉ. आम्बेडकर जब पाँचवी अंग्रेजी कक्षा पढ़ रहे थे, तब उनकी शादी रमाबाई से हुई। रमाबाई से पाँच बच्चे प्राप्त हुए थे, जिनमें चार पुत्र यशवंत, रमेश, गंगाधर, राजरत्न और एक पुत्री इन्दु थी, किंतु 'यशवंत' को छोड़कर सभी संतानों की बचपन में ही मृत्यु हो गई। सविता आम्बेडकर, जिन्हें 'माई' या 'माइसाहेब' कहा जाता है, जिनकी मृत्यु 29 मई 2003 को महरौली, नई दिल्ली में 93 वर्ष की आयु में हो गयी ।
9.] डॉ. आम्बेडकर तीन महान व्यक्तियों को अपना गुरु मानते थे यानी महात्मा बुद्ध, संतकवि कबीर और महात्मा ज्योतिबा फुले। भारतीय जनता पार्टी समर्थित बीपी सिंह की सरकार ने 1990 में उन्हें मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया, इनके प्रति यह प्रतिष्ठा 'कांग्रेस' ने कभी नहीं सोचा।
10.] डॉ. आम्बेडकर ने पाकिस्तान की मांग कर रहे मुस्लिम लीग के लाहौर रिज़ोल्यूशन-1940 के बाद 'थॉट्स ऑन पाकिस्तान' नामक 400 पृष्ठों की एक पुस्तक लिखा, जिसने अपने सभी पहलुओं में 'पाकिस्तान' की अवधारणा का विश्लेषण किया। इसमें उन्होंने मुस्लिम लीग की मुसलमानों के लिए एक अलग देश पाकिस्तान की मांग की आलोचना की। साथ ही यह तर्क भी दिया कि हिंदुओं को मुसलमानों के पाकिस्तान का स्वीकार करना चाहिए। उन्होंने प्रस्तावित किया कि मुस्लिम और गैर-मुस्लिम बहुमत वाले हिस्सों को अलग करने के लिए क्रमशः पंजाब और बंगाल की प्रांतीय सीमाओं को फिर से तैयार किया जाना चाहिए। उन्होंने सोचा कि मुसलमानों को प्रांतीय सीमाओं को फिर से निकालने के लिए कोई आपत्ति नहीं हो सकती है। विद्वान वेंकट ढलीपाल ने कहा कि 'थॉट्स ऑन पाकिस्तान' ने एक दशक तक भारतीय राजनीति को रोका ! इसने मुस्लिम लीग और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बीच संवाद के पाठ्यक्रम को निर्धारित किया, जो भारत के विभाजन के लिए रास्ता तय कर रहा था, हालांकि वे मोहम्मद अली जिन्ना और मुस्लिम लीग की विभाजनकारी सांप्रदायिक रणनीति के घोर आलोचक थे, किन्तु उन्होने तर्क दिया कि हिंदुओं और मुसलमानों को पृथक कर देना चाहिए और पाकिस्तान का गठन हो जाना चाहिये, क्योकि एक ही देश का नेतृत्व करने के लिए व जातीय राष्ट्रवाद के चलते देश के भीतर और अधिक हिंसा पनपेगी!
11.] डॉ. आम्बेडकर का गांधीजी से कई दृष्टिकोणों को लेकर मतभेद था । गांधीजी जब पूना की येरवडा जेल में थे। कम्युनल एवार्ड की घोषणा होते ही गांधीजी ने पहले तो अंग्रेजी हुकूमत के प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर इसे बदलवाने की मांग की, लेकिन जब उनको लगा कि उनकी मांग पर कोई अमल नहीं किया जा रहा है तो उन्होंने आमरण अनशन की घोषणा कर दी । इसी बीच डॉ. आम्बेडकर ने कहा, ''यदि गांधी देश की स्वतंत्रता के लिए यह व्रत रखता तो अच्छा होता, लेकिन उन्होंने दलित लोगों के विरोध में यह व्रत रखा है, जो बेहद अफसोसजनक है। जबकि भारतीय ईसाइयो, मुसलमानों और सिखों को मिले इसी पृथक निर्वाचन के अधिकार को लेकर गांधी की ओर से कोई आपत्ति नहीं आई है । वैसे गांधी कोई अमर व्यक्ति नहीं हैं। भारत में न जाने कितने ऐसे लोगों ने जन्म लिया और चले गए। गांधी की जान बचाने के लिए वह दलितों के हितों का त्याग नहीं कर सकते।'' इधर आमरण अनशन के कारण गांधीजी की तबियत लगातार बिगड़ रही थी और तब पूरा हिंदू समाज 'आम्बेडकर' का विरोधी हो गया। देश में बढ़ते दबाव को देख डॉ. आम्बेडकर 24 सितम्बर 1932 को शाम पांच बजे येरवडा जेल पहुंचे। यहां गांधीजी और डॉ. आम्बेडकर के बीच समझौता हुआ, जो बाद में पूना पैक्ट के नाम से जाना गया !
12.] डॉ. आम्बेडकर ने कहा, 'छुआछूत गुलामी से भी बदतर है।' बड़ौदा राज्य के सेना सचिव के रूप में काम करते हुये अपने जीवन में अचानक फिर से आये भेदभाव से डॉ. भीमराव आम्बेडकर निराश हो गये और अपनी नौकरी छोड़ एक निजी ट्यूटर और लेखाकार के रूप में कार्य करने लगे। यहाँ तक कि उन्होंने अपना परामर्श व्यवसाय भी आरंभ किया, जो उनकी सामाजिक स्थिति के कारण विफल रहा। अपने एक अंग्रेज जानकार मुंबई के पूर्व राज्यपाल लॉर्ड सिडनेम के कारण उन्हें मुंबई के सिडनेम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनोमिक्स मे राजनीतिक अर्थव्यवस्था के प्रोफेसर के रूप में नौकरी मिल गयी।
13.] डॉ. आम्बेडकर ने 1920 में कोल्हापुर के शाहू महाराज और अपने एक पारसी मित्र के सहयोग तथा कुछ अपनी बचत से इंग्लैंड जाने में सफ़ल हो पाए तथा 1921 में विज्ञान स्नातकोत्तर (एम॰एससी॰) प्राप्त की। 1922 में उन्हें ग्रेज इन ने बैरिस्टर-एट-लॉज डिग्री प्रदान की और उन्हें ब्रिटिश बार में बैरिस्टर के रूप में प्रवेश मिल गया। फिर 1923 में उन्होंने अर्थशास्त्र में डी॰एससी॰ (डॉक्टर ऑफ साईंस) उपाधि प्राप्त की। उनकी थीसिस 'दी प्राब्लम आफ दि रुपी: इट्स ओरिजिन एंड इट्स सॉल्यूशन' (रुपये की समस्या: इसकी उत्पत्ति और इसका समाधान) पर थी। लंदन का अध्ययन पूर्ण कर भारत वापस लौटते हुये डॉ. भीमराव आम्बेडकर तीन महीने जर्मनी में रुके, जहाँ उन्होंने अपना अर्थशास्त्र का अध्ययन बॉन विश्वविद्यालय में जारी रखा। किंतु समय की कमी के कारण वे विश्वविद्यालय में अधिक दिनों तक नहीं ठहर सके । उनकी तीसरी और चौथी डॉक्टरेट्स [एलएल॰डी॰, कोलंबिया विश्वविद्यालय, 1952 और डी॰लिट॰, उस्मानिया विश्वविद्यालय, 1953] भी उन्होंने प्राप्त कर लिये । इसके पूर्व लन्दन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स और कोलंबिया यूनिवर्सिटी, USA से उन्होंने स्नातकोत्तर किया । इसप्रकार डॉ. आम्बेडकर विदेश से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की डिग्री लेने वाले पहले भारतीय थे।
14.] डॉ. आम्बेडकर दक्षिण एशिया के इस्लाम की रीतियों के भी बड़े आलोचक थे। उन्होने भारत विभाजन का तो पक्ष लिया, पर मुस्लिमो में व्याप्त बाल विवाह की प्रथा और महिलाओं के साथ होने वाले दुर्व्यवहार की घोर निंदा की। उन्होंंने हरिजन, रखैल आदि शब्दों का विरोध किया, क्योंकि यह घृणित शब्द हैं ।
**भारतरत्न डॉ. आम्बेडकर के महापरिनिर्वाण दिवस (6 दिसंबर) पर सादर नमन !
नमस्कार दोस्तों !
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