कुछ रिश्ते अजीबोगरीब हालात में बनते हैं, जैसे- कामचलाऊ दोस्तों से हुए रिश्ते ! ...तो कुछ रिश्ते माँ के गर्भ से तय होकर आते हैं, हालाँकि ऐसे रिश्ते खून के रिश्ते कहलाते हैं, तथापि ऐसे समोदर रिश्ते भी रक्त-सम्बन्धित होकर भी आजीवन स्थापित नहीं हो पाते हैं ! वहीं 'कामचलाऊ रिश्ते' कहने को तो गगनचुम्बी-सोच लिए होते हैं, किन्तु समय की तकाज़ा के साथ ऐसे रिश्ते पानी के बुलबुले की तरह ऐन वक्त पर गायब हो जाते हैं । आज मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं,शांत व्यक्तित्व के स्वामी श्रीमान शैलेंद्र शांत की मन को अशांत करनेवाली एक लघुकथा, जो रिश्ते की वास्तविकता को न केवल उकेरती है, अपितु सामाजिक पोस्टमार्टम करती दृष्टिगत होती है । तो आइए, इसे हम पढ़ ही डालते हैं.....
सम्वाद
बस खुलने के इंतजार में था। तभी उनका उसमें चढ़ना हुआ।
-अरे, आप ?
-नमस्कार, कहां जा रही हैं आप ?
-अस्पताल !
-कौन भर्ती है ?
-पिता जी !
-कब से ?
-आठ दिन हो गए !
-आप लोगों ने बताया नहीं कि काका बीमार चल रहे हैं।
-सभी चिंतित, परेशान थे।
-कोई जरूरत पड़े, तो बताइएगा।
-चलिए मेरे साथ, उन्हें देख आइए।
-बहुत जरूरी काम है, कल या परसो जाऊंगा।
-बाबा, आज या कल डिस्चार्ज कर दिए जाएंगे।
-यह तो अच्छी बात है, फिर घर पर ही आता हूं।
-जैसी आप की मर्जी !
बस चल पड़ी तो वह सज्जन पीछे की सीट पर बैठ लिए। मोहतरमा ने चुप्पी साध ली। वे दोनों शायद मन ही मन कुछ सोच रहे थे। क्या, यह मैं कैसे बताऊं ?
श्रीमान शैलेंद्र शांत |
सम्वाद
बस खुलने के इंतजार में था। तभी उनका उसमें चढ़ना हुआ।
-अरे, आप ?
-नमस्कार, कहां जा रही हैं आप ?
-अस्पताल !
-कौन भर्ती है ?
-पिता जी !
-कब से ?
-आठ दिन हो गए !
-आप लोगों ने बताया नहीं कि काका बीमार चल रहे हैं।
-सभी चिंतित, परेशान थे।
-कोई जरूरत पड़े, तो बताइएगा।
-चलिए मेरे साथ, उन्हें देख आइए।
-बहुत जरूरी काम है, कल या परसो जाऊंगा।
-बाबा, आज या कल डिस्चार्ज कर दिए जाएंगे।
-यह तो अच्छी बात है, फिर घर पर ही आता हूं।
-जैसी आप की मर्जी !
बस चल पड़ी तो वह सज्जन पीछे की सीट पर बैठ लिए। मोहतरमा ने चुप्पी साध ली। वे दोनों शायद मन ही मन कुछ सोच रहे थे। क्या, यह मैं कैसे बताऊं ?
नमस्कार दोस्तों !
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