आजकल 'देशभक्ति' और 'स्वतंत्रता' को लेकर नयी संस्कृति पनप रही है, उसमें भी जब से सोशल मीडिया की शुरुआत हुई है, लोग संवेदनशील से लेकर अतिसंवेदनशील मामले तक को नज़रअंदाज़ कर आलतू-फालतू पोस्ट करने बैठ जाते हैं और स्वयं को निर्णायक, अधिनायक, जज, शंकराचार्य और महाराणा प्रताप तक समझने की गुस्ताखी कर बैठते हैं । हमारी संस्कृति बहुलतावादी है, बावजूद हम एकल देशभक्ति की जज्बा लिए जीते हैं । आज मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, युवा कवि व शोधार्थी श्रीमान मनोज वर्मा की ऐसी ही भावना लिए बेहतरीन रियलटी कविता, किन्तु जो देशभक्ति में तल्लीन भी है ! आइये, इस रियलटी कविता को पढ़ते हैं ----
नफरत की बयार
इस युग में देशभक्ति की
अलग गढ़ ली गई है परिभाषा
जो हमारे धर्म निरपेक्ष सपनों और
बहुलतावादी शब्दों को
नष्ट करने की दिनों-दिन
की जा रही है साजिश
इस परियोजना में मर्दानगी का मतलब
घेर कर मारने के लिए
मौजूद भीड़
जो किसी भी राह चलते को
बना लेती है अपना शिकार
और बन जाते हैं --
आम आदमी के राणा प्रताप
हिन्दू श्रेष्ठतावादियों ने
महिलाओं को पुरुषों के अधीन रखने के
इजात किए हैं कई तरीके
जिसका उद्देश्य
महिलाओं से छीनना उनका जीवन
औऱ उनकी देह का अधिकार
लादना पितृसत्तात्मकता का चोंगा
उन्हें रखना पुरुषों के अधीन
उन्हें प्रयोग करना सिर्फ
बच्चे पैदा करने की मशीन
फासिस्टों लेते हो सत्ता का सहारा
पुलिस को बनाते हो अपना हथियार
मीडिया को बना लिया गया है
बंधुआ मजदूर --
जो सिर्फ अपने मालिक की तारीफ़ में
फूंकता है बिगुल
जिसके सामने लोकतंत्र और मानवाधिकार
जैसे शब्द
खोते दिख रहे हैं
अपना अर्थ।
नमस्कार दोस्तों !
'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।
कवि मनोज वर्मा |
नफरत की बयार
इस युग में देशभक्ति की
अलग गढ़ ली गई है परिभाषा
जो हमारे धर्म निरपेक्ष सपनों और
बहुलतावादी शब्दों को
नष्ट करने की दिनों-दिन
की जा रही है साजिश
इस परियोजना में मर्दानगी का मतलब
घेर कर मारने के लिए
मौजूद भीड़
जो किसी भी राह चलते को
बना लेती है अपना शिकार
और बन जाते हैं --
आम आदमी के राणा प्रताप
हिन्दू श्रेष्ठतावादियों ने
महिलाओं को पुरुषों के अधीन रखने के
इजात किए हैं कई तरीके
जिसका उद्देश्य
महिलाओं से छीनना उनका जीवन
औऱ उनकी देह का अधिकार
लादना पितृसत्तात्मकता का चोंगा
उन्हें रखना पुरुषों के अधीन
उन्हें प्रयोग करना सिर्फ
बच्चे पैदा करने की मशीन
फासिस्टों लेते हो सत्ता का सहारा
पुलिस को बनाते हो अपना हथियार
मीडिया को बना लिया गया है
बंधुआ मजदूर --
जो सिर्फ अपने मालिक की तारीफ़ में
फूंकता है बिगुल
जिसके सामने लोकतंत्र और मानवाधिकार
जैसे शब्द
खोते दिख रहे हैं
अपना अर्थ।
नमस्कार दोस्तों !
'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।
Superb
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