10 जनवरी की तारीख इतिहास के पन्नों में सुख्यात है, क्योंकि इस दिन विश्व हिंदी दिवस है, तो हास्य दिवस भी । जो कि आज है । वैसे भारत में हिंदी दिवस 14 सितम्बर को मनाई जाती है, किन्तु 'विश्व हिंदी सम्मेलन' के प्रसंगश: सम्पूर्ण संसार में हिंदी भाषा और साहित्य की व्यापक प्रचार-प्रसारार्थ प्रति वर्ष 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस मनाई जाती है । उद्देश्य स्पष्ट है, विश्व में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिये जागरूकता लाना तथा हिन्दी को अन्तरराष्ट्रीय भाषा के रूप में स्थापित करना भी है। विदेशों में व खासकर भारत के दूतावास में इस दिवस को व विश्व हिंदी दिवस को विशेष रूप से मनाये जाते हैं, लेकिन द्रष्टव्यश: 1863 में आज ही के दिन लंदन में विश्व की पहली अंडरग्राउंड रेल सेवा की भी शुरुआत हुई थी और 1991 में संयुक्त राष्ट्र महासचिव जेवियर पेरेज़ द कुइयार खाड़ी युद्ध टालने की अपनी आखिरी कोशिश के तहत इराक़ की राजधानी बगदाद भी गए थे, परंतु आज का दिन जहाँ हास्य लिए है, वहीं 1954 में ब्रिटेन का कॉमेट जेट भूमध्यसागर में दुर्घटनाग्रस्त हो गया था यानी खुशी और गम साथ-साथ ! परंतु इन दिवसों के बीच कविता और कथा के माध्यम से एतदर्थ विन्यास रचनेवाली बिंदास रचनाकार सुश्री आयुषी खरे को आज हम 'मैसेंजर ऑफ आर्ट' में पढ़ते हैं, तो रचनाकार सुश्री आयुषी खरे की एक खत, उनकी जुबानी व उनकी सोच से निःसृत हुई हैं, पढ़िए तो जरा......
"नज़रिए का ख़त"
मुझे तुमसे प्यार नहीं है,
तुम मुझे पसंद हो ।
जब तुमसे बातें करती हूँ, तो दिल चाहता है कि तुम कहते रहो, मैं सुनती रहूँ ...
तुम सुनाते रहो अपने बारे में,
तुम सुनाते रहो अपनी जिंदगी के बारे में,
तुम सुनाते रहो इस दुनिया के बारे में,
तुम कुछ भी ना कहो मेरे बारे में,
फिर भी दिल चाहता है तुम्हें सुनती रहूँ ।
कितनी ही बातें हुई है हमारे बीच जिनकी वजह को हमने 'बस यूं ही' करार दिया । मुझे तुम्हारी आंखें पसंद है । तुम्हारी आंखों में जो गहराई है, जो संजीदगी है, मुझे वो पसंद है । एक दुनिया है तुम्हारे दिल की, जिससे मैं तुम्हारी आंखों के जरिए मिलती रहती हूँ ।
मुझे पढ़ना भी पसंद है,
कभी तुम्हारे चेहरे को,
कभी तुम्हारी किताबों को,
जिनमें तुमने शब्द नहीं,
अपना दिल लिखा है कि --
तुम मेरी मोहब्बत हो,
तुम कहते हो मुझसे,
मुझे यह भी बहुत पसंद है,
पर --
मुझे तुम पसंद हो ।
तुम्हारे प्रति मेरे दिल में जो एहसास हैं, मैं उन्हें प्यार कहकर बांधना नहीं चाहती । प्यार अपने साथ इंतज़ार लेकर आता है, सांसारिक इच्छाएं लेकर आता है, किसी मुकम्मल रिश्ते के रूप में पूरा होने की तमन्ना लेकर आता है । प्यार में दिल चाहता है कि कभी शाम ओ सहर उंगलियों में उंगलियों को उलझा कर, कांधे पर सिर रखकर बिता दिए जाएं, तो कभी पानी के किनारों पर हाथ थामे हम चलते रहे या जिंदगी के हर लम्हे को एक दूसरे के 'साथ' गुजारा जाए..., अगर मैं तुमसे कहूंगी कि मुझे तुमसे प्यार है, तो फिर दिल यह सब चाहेगा, पर मुझे और तुम्हें ये इल्म है कि हम एक दूसरे के लिए तो बने हैं, पर एक दूसरे के 'साथ' के लिए नहीं, क्योंकि हमारी ज़िंदगियाँ बहुत मुख्तलिफ है फिर जब यह नहीं हो पाएगा, हम साथ नहीं हो पाएंगे, तो हम कहेंगे कि हम प्यार में नाकाम रहे ! मैं हमारे दरम्यान इन खूबरसूरत एहसासों को यह नाकामी की मंज़िल नहीं देना चाहती। पसंद तो किसी को कोई भी हो सकता है, बिना शर्त के कि उसके साथ मुकम्मल रिश्ता कायम हो पाएगा ।
पसंद तो समंदर चांद को भी करता है,
लहरें किनारे को भी करती हैं,
तारे सीप को भी करते हैं --
प्यार जितना सुलझा हुआ है,
उतनी ही उलझन इसमें मौजूद हैं --
जबकि प्रेम तो सफेद रंग जैसा होता है, ना छल, न कपट, न तमन्ना है, बस निश्छल प्रेम, त्याग, समर्पण और ठहराव ही तो प्रेम के वर्णन है और पसंद में भी पूरे होने के बंधन नहीं होते, क्योंकि ये प्रेम का ही एक रूप होता है। तुम मुझे पसंद करते रहना, उसके सबसे खूबसूरत और स्थिर रूप में, प्रेम के रूप में, क्योंकि तुम्हें मुझसे मोहब्बत है और यह हमेशा रहेगी -----
जैसे मैं तुम्हें पसंद करती हूँ और हमेशा करती रहूंगी ।
नमस्कार दोस्तों !
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सुश्री आयुषी खरे |
"नज़रिए का ख़त"
मुझे तुमसे प्यार नहीं है,
तुम मुझे पसंद हो ।
जब तुमसे बातें करती हूँ, तो दिल चाहता है कि तुम कहते रहो, मैं सुनती रहूँ ...
तुम सुनाते रहो अपने बारे में,
तुम सुनाते रहो अपनी जिंदगी के बारे में,
तुम सुनाते रहो इस दुनिया के बारे में,
तुम कुछ भी ना कहो मेरे बारे में,
फिर भी दिल चाहता है तुम्हें सुनती रहूँ ।
कितनी ही बातें हुई है हमारे बीच जिनकी वजह को हमने 'बस यूं ही' करार दिया । मुझे तुम्हारी आंखें पसंद है । तुम्हारी आंखों में जो गहराई है, जो संजीदगी है, मुझे वो पसंद है । एक दुनिया है तुम्हारे दिल की, जिससे मैं तुम्हारी आंखों के जरिए मिलती रहती हूँ ।
मुझे पढ़ना भी पसंद है,
कभी तुम्हारे चेहरे को,
कभी तुम्हारी किताबों को,
जिनमें तुमने शब्द नहीं,
अपना दिल लिखा है कि --
तुम मेरी मोहब्बत हो,
तुम कहते हो मुझसे,
मुझे यह भी बहुत पसंद है,
पर --
मुझे तुम पसंद हो ।
तुम्हारे प्रति मेरे दिल में जो एहसास हैं, मैं उन्हें प्यार कहकर बांधना नहीं चाहती । प्यार अपने साथ इंतज़ार लेकर आता है, सांसारिक इच्छाएं लेकर आता है, किसी मुकम्मल रिश्ते के रूप में पूरा होने की तमन्ना लेकर आता है । प्यार में दिल चाहता है कि कभी शाम ओ सहर उंगलियों में उंगलियों को उलझा कर, कांधे पर सिर रखकर बिता दिए जाएं, तो कभी पानी के किनारों पर हाथ थामे हम चलते रहे या जिंदगी के हर लम्हे को एक दूसरे के 'साथ' गुजारा जाए..., अगर मैं तुमसे कहूंगी कि मुझे तुमसे प्यार है, तो फिर दिल यह सब चाहेगा, पर मुझे और तुम्हें ये इल्म है कि हम एक दूसरे के लिए तो बने हैं, पर एक दूसरे के 'साथ' के लिए नहीं, क्योंकि हमारी ज़िंदगियाँ बहुत मुख्तलिफ है फिर जब यह नहीं हो पाएगा, हम साथ नहीं हो पाएंगे, तो हम कहेंगे कि हम प्यार में नाकाम रहे ! मैं हमारे दरम्यान इन खूबरसूरत एहसासों को यह नाकामी की मंज़िल नहीं देना चाहती। पसंद तो किसी को कोई भी हो सकता है, बिना शर्त के कि उसके साथ मुकम्मल रिश्ता कायम हो पाएगा ।
पसंद तो समंदर चांद को भी करता है,
लहरें किनारे को भी करती हैं,
तारे सीप को भी करते हैं --
प्यार जितना सुलझा हुआ है,
उतनी ही उलझन इसमें मौजूद हैं --
जबकि प्रेम तो सफेद रंग जैसा होता है, ना छल, न कपट, न तमन्ना है, बस निश्छल प्रेम, त्याग, समर्पण और ठहराव ही तो प्रेम के वर्णन है और पसंद में भी पूरे होने के बंधन नहीं होते, क्योंकि ये प्रेम का ही एक रूप होता है। तुम मुझे पसंद करते रहना, उसके सबसे खूबसूरत और स्थिर रूप में, प्रेम के रूप में, क्योंकि तुम्हें मुझसे मोहब्बत है और यह हमेशा रहेगी -----
जैसे मैं तुम्हें पसंद करती हूँ और हमेशा करती रहूंगी ।
नमस्कार दोस्तों !
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