प्यार की कोई नववर्ष नहीं होती है, बावजूद नववर्ष आते ही प्रेमी और प्रेमिकाओं के बीच 'हैप्पी न्यू ईयर' कहने और नववर्ष-ग्रीटिंग्स भेजने पर मानो नववर्ष का अहसास होती है ! हम ऐसे शब्दों की युगलबंदी को भी शब्दों के साथ जोड़ उनकी नई परिभाषा तो गढ़ लेते हैं, लेकिन मूक जीव की तरह 'प्यार' भी निराली चीज है । प्रस्तुत कविता अपने आप में निराली है । प्रेम, प्रेमी, प्रेमिका और प्रकृति के अध्ययन में प्रवीण संदर्भित कवि भी एतदर्थ महत्वता लिए हैं। आज मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं श्रीमान प्रवीण शुक्ला 'श्रावस्ती' की कुछ अलग दास्ताँ ! आइये, इसे पढ़ ही डालते हैं.......
श्रीमान प्रवीण शुक्ला 'श्रावस्ती' |
सोच रहा हूँ मैं लिखूँ,, मगर लिखूँ तो मैं क्या लिखूँ,
आसमां की एक बूंद या गहरा सागर अधाह लिखूँ ।
लोगों की नफरत लिख दूं या प्रीतम का प्यार लिखूँ,
खिलती हुई कुमुदिनी या फिर मुरझाए गुलाब लिखूँ ।
अपनों की तानाशाही या फिर गैरों की चाह लिखूँ,
लिख दूं जहरीली बातें या शाबासी या वाह लिखूँ ।
वो सुंदर सुबह की किरणें लिखूँ या गौधूली शाम लिखूँ,
रात की वो चमकीली सितारें या सूरज - प्रभात लिखूँ ।
नमस्कार दोस्तों !
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