कुछ लोग दिल के बेहद करीब होते हैं, तो कुछ लोग दिल में बसकर भी अजीब होते चले जाते हैं ! कई-कई वर्षों की मिलन-यात्रा नाजुक-सी झल्लाहट में ही थम जाती है । सच में, कुछ अक्स भूले नहीं भुलाये जाते ! तो कुछ के चेहरे शैतानियत लिए होती हैं । किन्तु प्रेम और स्नेह की बारिश भी रुकती कहाँ है ? आइये, परिचित और अपरिचित के बीच एक समरेख खींच मध्यम मार्ग अपनायें । आज मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, सुश्री निधि बंसल की कविता, जो समर्पित है उनके ताऊजी को...! ताऊजी को स्मरण करते हुए पढ़ते हैं, यह कविता....
कितनी अजीब बात है न ?
जो थे सालों से साथ अब नहीं है न --
वो चले गए इतना दूर कही,
जहाँ से आता-जाता न है कोई --
जो थे सालों से साथ अब नहीं है न --
वो चले गए इतना दूर कही,
जहाँ से आता-जाता न है कोई --
पता नहीं ऐसी क्या बात है वहाँ ?
जो भी जाता है आता नहीं है वापस --
कितनी अजीब बात है न ?
वो अपने ही तो होते हैं --
पता नहीं कैसे रूठ के खो जाते हैं,
फिर कैसे कुछ पलों के बाद ही --
उन्ही चेहरों से लगने लगता है डर भी,
वो थे तो अपने ही --
फिर क्यों सब बदल गया इतने दिनों में ही,
कितनी अजीब बात है न ?
कुछ दिनों पहले की ही तो बात है,
सब रहते तो थे साथ हम --
ऐसा भी क्या है वहाँ --
जिसके लिए छोड़ गए सब,
इतनी भी क्या जल्दी थी जाने की ?
हमको मोहलत भी न दी अपनी बात कहने की,
कुछ तो कह लेते --
या फिर कुछ सुन ही लेते,
कुछ तो होगा दिल में कहने को --
जो ले गए साथ आसमान को,
कितनी अजीब बात है न ?
जो थे सालों से साथ अब नहीं है न ।
नमस्कार दोस्तों !
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