हम हर साल 'मातृ-दिवस' मनाते हैं, परंतु हे माँ ! आज के बच्चे 'मातृ-दिवस' भी मनाते हैं और 'माँ' पर गालियाँ भी बकते हैं ! सासरूपी माँ को आदर तक देते नहीं I पता नहीं, ये कैसी 'मदर-डे' है, जो वे मनाते हैं ? चूँकि मातृ-दिवस पश्चिमी सभ्यता से अपनाई गई है, लेकिन हम भारतीय होकर सिर्फ एक दिन ही माँ के नाम की आराधना करें, यह हमें शोभा नहीं देता ! हम उस माँ को भूल रहे हैं, जिन्होंने अपने बच्चों को सरहदों पर धरती माँ की रक्षा के लिए भेज रखी हैं और अपनी गोदसुनी कर रही हैं और वे जवान (उनके बेटे) भी खुशी-खुशी भारतमाता की रक्षा के लिए दुश्मनों को उनके देश में जाकर मारते हुए शहीद होने का गौरव प्राप्त कर रहे हैं, लेकिन हम उन शहीद बेटे की माँओं को कभी याद नहीं करते ! क्यों न एक दिन उन वीर शहीदों की माँ के नाम भी हो ! आज मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, एक कविता ---
-- प्रधान प्रशासी-सह-प्रधान संपादक ।
जा पगले जा !
जाते-जाते शुभकामनायें लेकर जा,
उन वीरों के लिए --
जिन्होंने दी जान,
माँ भारती की रक्षा के लिए --
उन्हें बता जा,
तुम्हारी माँ भूखे तो नहीं --
लेकिन विवश जरूर है,
तुम्हारी पत्नी रुआंसी तो नहीं --
लेकिन घबराई जरूर है,
तुम्हारी बहनें दीवानी तो नहीं --
लेकिन पीड़िता जरूर हैं,
तुम्हारे बच्चे घायल तो नहीं,
लेकिन बेबस जरूर हैं --
जा पगले जा !
जाते-जाते शुभकामनायें लेकर जा ।
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