पहले राजा, मंत्री और उनके परिवार सोने, चाँदी की थाली में खाना खाते थे ! सैनिक और प्रजायें मिट्टी की थाली अथवा लोहे, पीतल, काँसा, एल्युमिनियम, स्टील, चीनी मिट्टी और प्लास्टिक के बर्त्तनों में क्रमशः खाने लग गए ! अब राजा हो या प्रजा 'पत्ते' पर खाना खाते हैं और इसे शुभ मानते हैं ! सखुआ, पुरइन, केले इत्यादि के पत्ते भोजादि में खाना खाने के कार्य में आते हैं, लेकिन बिहार में प्लास्टिक बंद होने के बावजूद भी यह दुकानदारों के पास पाई जाती हैं। आइये मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, इनपर एक लघु रिपोर्ट ----
बिहार में पॉलीथिन कैरीबैग अथवा प्लास्टिक बंद हो चुकने का सरकारी फरमान है, लेकिन राजधानी 'पटना' में अब भी यह जारी है। 'पटना जंक्शन' के आसपास, गाँधी मैदान व पटना के अधिकतर गली-मोहल्लों की दुकानों में दुकानदारों के लिये अभी भी यह शान की बात है। यह तो चिराग तले अँधेरेवाली बात हुई, क्योंकि ऐसा 'खुला खेल फर्रुखाबादी' कार्यक्रम राजधानी में ही देखे जा रहे हैं । बिहार सरकार, खासकर पटना प्रशासन को इस ओर ध्यान देनी चाहिए तथा सख्ती से इनका अनुपालन करवाना चाहिए, क्योंकि ऐसा नहीं होने से कथनी और करनी के बीच अंतर को देखते हुए बिहार सरकार की बदनामी तय है ।
-- प्रधान प्रशासी-सह-प्रधान संपादक ।
बिहार में पॉलीथिन कैरीबैग अथवा प्लास्टिक बंद हो चुकने का सरकारी फरमान है, लेकिन राजधानी 'पटना' में अब भी यह जारी है। 'पटना जंक्शन' के आसपास, गाँधी मैदान व पटना के अधिकतर गली-मोहल्लों की दुकानों में दुकानदारों के लिये अभी भी यह शान की बात है। यह तो चिराग तले अँधेरेवाली बात हुई, क्योंकि ऐसा 'खुला खेल फर्रुखाबादी' कार्यक्रम राजधानी में ही देखे जा रहे हैं । बिहार सरकार, खासकर पटना प्रशासन को इस ओर ध्यान देनी चाहिए तथा सख्ती से इनका अनुपालन करवाना चाहिए, क्योंकि ऐसा नहीं होने से कथनी और करनी के बीच अंतर को देखते हुए बिहार सरकार की बदनामी तय है ।
-- प्रधान प्रशासी-सह-प्रधान संपादक ।
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