मुहब्बत यानी प्यार के बारे में कहा जाता है कि यह किसी योजनाबद्ध तरीके से किये नहीं जाते, अपितु अकस्मात हो जाती है ! परंतु 21वीं सदी में जब महान यांत्रिक उपकरण 'कंप्यूटर' भी काफी परिपक्वता हासिल कर लिए हैं, तब मुहब्बत भी होने को लेकर नहीं, किया जाने को लेकर पूर्णत: योजनाबद्ध हो गई है ! यह किया जाने लायक नहीं, अपितु परिपक्वता के बावजूद यह 'नालायक' हो गई है । युवा-युवती के बीच का प्रेम 'स्नेह' लिए कम, 'वासनात्मक' ज्यादा ही हो गई है । अगर शादी के पहले 'देह' प्राप्ति के बगैर स्नेह लिए प्रेम हो भी जाय, तब भी 'ऑनर किलिंग' पीछा नहीं छोड़ता ! अगर इनसे उबर भी गए अथवा कोर्ट-मैरिज सम्पन्न भी हो गया, तब अब प्रेम व गंधर्व-विवाह के बाद परिवार, ससुराल और अंततः समाज में उन जोड़ी को हेय दृष्टि से देखा जाता है। उलाहना व प्रताड़ना जारी ! अगर प्रेमी-युगल दबंग है तो सिर्फ खुसुर-फुसुर बात चलती है, अन्यथा कमजोर प्रेमी-जोड़ी के आगे समाज 'खुला खेल फर्रूखाबादी' की ढोल तबतक पीटते हैं, जबतक वह युगल समाज या अपने-अपने देह को ही नहीं छोड़ दें ! आइये, आज मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, सुश्री प्रतिभा अग्रहरि की 'मुहब्बत पर फेल-व्यवस्था' लिए जानदार कविता ! ..... तो इसे पढ़ ही डालिए, न !
फेल व्यवस्था
सुश्री प्रतिभा अग्रहरि |
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