सच में, कविता में किसी के दर्द को बखूबी बयां करने की पूरी क्षमता होती है, लेकिन बड़े कवि व कवयित्रियों की कलम में आज वह दम नहीं है, क्यों ? क्योंकि लेखन का मतलब इन नाम बड़े लोगों ने 'फ़ैशन' मान लिया है ! अब रुपये को भी डॉलर ने पीछे छोड़ दिया है । ऐसे बड़े लेखक-कवि डॉलर के पीछे भाग रहे हैं, परंतु आज मैसेंजर ऑफ आर्ट में जो कविता-द्वय प्रस्तुत है, यह न डॉलर के पीछे दौड़ लगाई है, न ही पलंग व सोफ़े पर बैठकर लिखी गई है । तो युवा कवि श्रीमान शशांक पांडेय की प्रस्तुत कविता को हम पढ़ ही डालते हैं, जो हमारे मन को अवश्य विचलित कर डालेंगे । पढ़िये, प्रस्तुत काव्याणु --
भूख
किसी ने कहा -सरकार ने विश्वास खो दिया,
यह सवाल उस व्यक्ति के सवाल से बिल्कुल अलग था --
जिसे भूख थी,
और इसी कारण उसे मरना पड़ा।
खिड़कियाँ
मैंने बचपन में
बहुत से ऐसे घर बनायें और फिर गिरा दिये --
जिसमें खिड़कियाँ नहीं थी
दरवाजें नहीं थे
लेकिन बाकी सभी चीजों की तरह --
और दुनिया को साफ-साफ देखने के लिये
हर घर में एक खिड़की
और एक दरवाजें होनी ही चाहिये।
श्रीमान शशांक पांडेय |
भूख
किसी ने कहा -सरकार ने विश्वास खो दिया,
यह सवाल उस व्यक्ति के सवाल से बिल्कुल अलग था --
जिसे भूख थी,
और इसी कारण उसे मरना पड़ा।
खिड़कियाँ
मैंने बचपन में
बहुत से ऐसे घर बनायें और फिर गिरा दिये --
जिसमें खिड़कियाँ नहीं थी
दरवाजें नहीं थे
लेकिन बाकी सभी चीजों की तरह --
और दुनिया को साफ-साफ देखने के लिये
हर घर में एक खिड़की
और एक दरवाजें होनी ही चाहिये।
नमस्कार दोस्तों !
'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें Email-messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।
बहुत बहुत धन्यवाद सर💐
ReplyDeleteसुंदर
ReplyDeleteSuperb sir
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