अभी भारतवर्ष में देश चलाने हेतु सबसे महत्त्वपूर्ण उत्सव 'लोकसभा चुनाव' की अकथ गहमागहमी दौड़ रही है, जोकि अप्रैल-मई माह लिए है । इसके साथ ही गर्मी भी प्रचंड-स्थिति में पहुँच गया है । लोकतंत्र में चुनाव एक आदरणीय कड़ी है, तो मतदाता और चुनाव-प्रतिनिधि के बीच की कड़ी 'पत्रकार' व 'अखबारनवीस' होते हैं !
तो आइए, हर माह की तरह इस माह भी 'मैसेंजर ऑफ आर्ट' में 'इनबॉक्स इंटरव्यू' के अंतर्गत लोकतंत्र के चतुर्थ स्तम्भ के कर्त्ता-धर्ता यानी पत्रकार के रूप में श्रीमान अमिताभ बुधौलिया के विचारों से हम रूबरू होते हैं । ध्यातव्य है, 'हिंदी पत्रकारिता' श्री बुधौलिया का न केवल पेशा है, अपितु रचनाधर्मिता के साथ भी आत्मसातवत हैं, तभी तो वे लेखक के रूप में भी चर्चित व बहुचर्चित सुनाम होते जा रहे हैं !
मीडियाकर्मी होने के नाते वे दूजे मीडियाकर्मियों के दुःख, संताप, टीस, आहें व दर्द को अच्छी तरह से समझ सकते हैं ! तभी तो 'मैसेंजर ऑफ आर्ट' ने उनसे 14 गझिन प्रश्नों को पूछकर उन्हें 14 आदर्श उत्तर देने के लिए रससिक्त किया है ! आइये, हम प्रस्तुत 'इनबॉक्स इंटरव्यू' से रूबरू होते हैं......
प्र.(1.)आपके कार्यों को इंटरनेट / सोशल मीडिया / प्रिंट मीडिया के माध्यम से जाना । इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र के आईडिया-संबंधी 'ड्राफ्ट' को सुस्पष्ट कीजिये ?
उ:-
चूंकि मैं मीडिया से जुड़ा हूँ, इसलिए यह भली-भांति जानता-समझता हूँ कि मेरा लिखा एक-एक शब्द पढ़ने वालों के दिलो-दिमाग में असर करेगा, इसलिए हमेशा कोशिश रहती है कि मीडिया के मौजूदा व्यावसायिक दौर में भी कुछ ऐसा लिखूँ,जो समाज-देश और लोगों की सोच में थोड़ा-बहुत भी बदलाव ला सके।
प्र.(2.)आप किसतरह के पृष्ठभूमि से आये हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
उ:-
मैं मप्र के एक पिछड़े जिले दतिया से हूँ। दतिया बुंदेलखंड का एक ऐतिहासिक शहर है। यहां अपनी जीविका चलाने के दो ही साधन है या तो खुद का बिजनेस या मेहनत-मजदूरी। खेती-किसानी उतनी समृद्ध नहीं है, जो कृषि आधारित रोजगार को बढ़ावा दे सके ! लिहाजा जो लोग यह सब नहीं कर सकते, उन्हें अपना शहर छोड़ना पड़ता है। मेरे पिता समाजवादी विचारधारा के नेता रहे हैं। मजदूरों के हितार्थ कई आंदोलन कराए। मीसा के दौरान जेल यात्राएं की। उनका लेखन में गहरा दखल रहा है, वही रक्त-बीज मेरे लेखन में भी प्रभावित हुए। मुझे भी ऐसे विषयों पर लिखना पसंद है, जो आमजन से जुड़े हों या जो बदलाव की लिए उद्वेलित करते हों, ऊर्जित करते हों। किशोरावस्था से लिखने का शौक रहा है। 14-15 साल की उम्र से कविताएं और व्यंग्य लिखना शुरू किया। जेब खर्च के लिए लोकल अखबारों और न्यूज चैनल में नौकरी की। वर्ष 2000 में दैनिक भास्कर, भोपाल में आने का मौका मिला, तो दतिया छोड़कर भोपाल चला आया।
प्र.(3.)आपका जो कार्यक्षेत्र है, इनसे आमलोग किसतरह से इंस्पायर अथवा लाभान्वित हो सकते हैं ?
उ:-
शब्दों की ताकत हमेशा से ही दुनिया-समाज पर असर डालती रही है। कोशिश यही है कि गरीब-पिछड़े वर्ग के अलावा अपने देश के लिए थोड़ा-थोड़ा योगदान देता चलूं। इसलिए ऐसी खबरों पर फोकस करता हूँ, जो कुछ बेहतर बदलाव का जरिया बन सके !
प्र.(4.)आपके कार्य में आये जिन रूकावटों,बाधाओं या परेशानियों से आप या संगठन रू-ब-रू हुए, उनमें से दो उद्धरण दें ?
उ:-
आजादी के पहले मीडिया एक मिशन के तौर पर काम कर रही थी, इसलिए ज्यादातार पत्रकार अच्छे लेखक थे, लेकिन फिर एक दौर व्यावसायिक आया। इससे मीडिया से लेखकों की जमात खत्म होती चली गई और विशुद्ध पत्रकार शामिल होते गए। दिक्कत यह हुई कि इनमें ज्यादातर ऐसे लोग भी आते गए, जिन्हें शब्दों के भाव और अर्थों से कोई लेना देना नहीं होता व समझ ही नहीं होती ! वे बस सूचनावाहक बनकर रह गए, जबकि खबरें सिर्फ सूचना नहीं होतीं, वे लोगों को जागृत करती हैं, बुराई के प्रति आंदोलित करती हैं...गड़बड़ियां करने वालों में भय का रस घोलती हैं, लेकिन अब खबरों से सारे रस खत्म हो गए हैं ! खबरें निस्तेज हो चली हैं। न पढ़ने पर दिलो-दिमाग में कुछ कौंधता है और न कुछ बदलता है। इसी वजह से मीडिया का लगातार पतन होता चला गया, जिनके लिए सरस्वती सिर्फ लक्ष्मी पूजा का जरिया बन जाए...,वहां भावनाओं...देश-समाज की कोई कद्र नहीं होती।
प्र.(5.)अपने कार्य क्षेत्र के लिए क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होना पड़ा अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के तो शिकार न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाये ?
उ:-
जो समय के साथ नहीं बदलेगा, उसे हमेशा दिक्कतें उठानी पड़ेंगी। जब हम कन्फर्ट जोन में आ जाते हैं, तो आगे कदम उठाने से भी डरते हैं। अकसर हम ऐसा सामना करते रहते हैं। ऐसी दिक्कतें कभी खत्म नहीं होंगी...,इसलिए इन दिक्कतों के बीच से मेरी कोशिश है कि रिस्क उठाते हुए कुछ कर गुजरा जाए।
प्र.(6.)आपने यही क्षेत्र क्यों चुना ? आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट थे या उनसबों ने राहें अलग पकड़ ली !
उ:-
किशोरावस्था से अपना खर्चा खुद उठाने का जुनून था। थोड़ा-बहुत लिख लेता था, जिससे पैसे मिलने लगे। धीरे-धीरे इसी क्षेत्र में रम गया। बाकी दूसरी ओर ध्यान ही नहीं दे पाया। मुझे अपने निर्णय पर कोई पछतावा नहीं। हां, संतुष्ट कभी नहीं रहा, क्योंकि हमेशा नया सोचता हूँ व करने का प्रयास करता हूँ, इसलिए आज का किया...कल बासी लगने लगता है..जिससे कभी संतुष्ट नहीं हो सकता।
प्र.(7.)आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ? यह सभी सम्बन्ध से हैं या इतर हैं !
उ:- जी सभी !
प्र.(8.)आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ? इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं अथवा संस्कृति पर चोट पहुँचाने के कोई वजह ?
उ:-
शब्द,संस्कृति..... क्या किसी भी चीज को चोटिल कर सकते हैं ! इसलिए कभी शब्दों को गलत वाक्यांश में नहीं पिरोता !
प्र.(9.)भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में आप और आपके कार्य कितने कारगर साबित हो सकते हैं !
उ:-
बहुत हद तक ! अगर हमारा लिखा एक समाचार 10 लोगों को भी भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़ा कर पाया तो यह बहुत बड़ी शुरुआत होगी।
प्र.(10.)इस कार्य के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे से इतर किसी प्रकार के सहयोग मिले या नहीं ? अगर हाँ, तो संक्षिप्त में बताइये ।
उ:-
आज जो कुछ लिख पा रहा हूँ, वह लोगों के सहयोग से ही है।
प्र.(11.)आपके कार्य क्षेत्र के कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी धोखा, केस या मुकद्दमे की परेशानियां झेलने पड़े हों ?
उ:-
नहीं।
प्र.(12.)कोई किताब या पम्फलेट जो इस सम्बन्ध में प्रकाशित हों, तो बताएँगे ?
उ:-
मैंने सभी विषयों पर लिखा है। 'सत्ता परिवर्तन' के बाद 'उल्लू का पट्ठा' दूसरा उपन्यास है। इससे पहले एक स्प्रिच्युअल बुक 'सबके जीवन में साई' एडिट की थी। टीवी-रेडियो सबके लिए लिखा।
प्र.(13.)इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, बताएँगे ?
उ:-
मेरे लिए पुरस्कार से ज्यादा लोगों के द्वारा हौसला अफजाई महत्वपूर्ण है। इसलिए पुरस्कारों के लिए न कभी जुगाड़ी की, न जोड़-तोड़ ! इस देश का हर नागरिक सम्मानित है। जिसे पुरस्कार मिला हो या जिसे न मिला हो...,वो सब।
प्र.(14.)आपके कार्य मूलतः कहाँ से संचालित हो रहे हैं तथा इसके विस्तार हेतु आप समाज और राष्ट्र को क्या सन्देश देना चाहेंगे ?
उ:-
मैं भोपाल में निवासरत हूं। मैं सबसे यही कहता हूं कि अगर हम खुद को बदल पाए, तो सबकुछ बदल जाएगा। सिर्फ कहें नहीं, जो कहें वो करने की एक बार कोशिश अवश्य करें।
तो आइए, हर माह की तरह इस माह भी 'मैसेंजर ऑफ आर्ट' में 'इनबॉक्स इंटरव्यू' के अंतर्गत लोकतंत्र के चतुर्थ स्तम्भ के कर्त्ता-धर्ता यानी पत्रकार के रूप में श्रीमान अमिताभ बुधौलिया के विचारों से हम रूबरू होते हैं । ध्यातव्य है, 'हिंदी पत्रकारिता' श्री बुधौलिया का न केवल पेशा है, अपितु रचनाधर्मिता के साथ भी आत्मसातवत हैं, तभी तो वे लेखक के रूप में भी चर्चित व बहुचर्चित सुनाम होते जा रहे हैं !
मीडियाकर्मी होने के नाते वे दूजे मीडियाकर्मियों के दुःख, संताप, टीस, आहें व दर्द को अच्छी तरह से समझ सकते हैं ! तभी तो 'मैसेंजर ऑफ आर्ट' ने उनसे 14 गझिन प्रश्नों को पूछकर उन्हें 14 आदर्श उत्तर देने के लिए रससिक्त किया है ! आइये, हम प्रस्तुत 'इनबॉक्स इंटरव्यू' से रूबरू होते हैं......
श्रीमान अमिताभ बुधौलिया |
प्र.(1.)आपके कार्यों को इंटरनेट / सोशल मीडिया / प्रिंट मीडिया के माध्यम से जाना । इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र के आईडिया-संबंधी 'ड्राफ्ट' को सुस्पष्ट कीजिये ?
उ:-
चूंकि मैं मीडिया से जुड़ा हूँ, इसलिए यह भली-भांति जानता-समझता हूँ कि मेरा लिखा एक-एक शब्द पढ़ने वालों के दिलो-दिमाग में असर करेगा, इसलिए हमेशा कोशिश रहती है कि मीडिया के मौजूदा व्यावसायिक दौर में भी कुछ ऐसा लिखूँ,जो समाज-देश और लोगों की सोच में थोड़ा-बहुत भी बदलाव ला सके।
प्र.(2.)आप किसतरह के पृष्ठभूमि से आये हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
उ:-
मैं मप्र के एक पिछड़े जिले दतिया से हूँ। दतिया बुंदेलखंड का एक ऐतिहासिक शहर है। यहां अपनी जीविका चलाने के दो ही साधन है या तो खुद का बिजनेस या मेहनत-मजदूरी। खेती-किसानी उतनी समृद्ध नहीं है, जो कृषि आधारित रोजगार को बढ़ावा दे सके ! लिहाजा जो लोग यह सब नहीं कर सकते, उन्हें अपना शहर छोड़ना पड़ता है। मेरे पिता समाजवादी विचारधारा के नेता रहे हैं। मजदूरों के हितार्थ कई आंदोलन कराए। मीसा के दौरान जेल यात्राएं की। उनका लेखन में गहरा दखल रहा है, वही रक्त-बीज मेरे लेखन में भी प्रभावित हुए। मुझे भी ऐसे विषयों पर लिखना पसंद है, जो आमजन से जुड़े हों या जो बदलाव की लिए उद्वेलित करते हों, ऊर्जित करते हों। किशोरावस्था से लिखने का शौक रहा है। 14-15 साल की उम्र से कविताएं और व्यंग्य लिखना शुरू किया। जेब खर्च के लिए लोकल अखबारों और न्यूज चैनल में नौकरी की। वर्ष 2000 में दैनिक भास्कर, भोपाल में आने का मौका मिला, तो दतिया छोड़कर भोपाल चला आया।
प्र.(3.)आपका जो कार्यक्षेत्र है, इनसे आमलोग किसतरह से इंस्पायर अथवा लाभान्वित हो सकते हैं ?
उ:-
शब्दों की ताकत हमेशा से ही दुनिया-समाज पर असर डालती रही है। कोशिश यही है कि गरीब-पिछड़े वर्ग के अलावा अपने देश के लिए थोड़ा-थोड़ा योगदान देता चलूं। इसलिए ऐसी खबरों पर फोकस करता हूँ, जो कुछ बेहतर बदलाव का जरिया बन सके !
प्र.(4.)आपके कार्य में आये जिन रूकावटों,बाधाओं या परेशानियों से आप या संगठन रू-ब-रू हुए, उनमें से दो उद्धरण दें ?
उ:-
आजादी के पहले मीडिया एक मिशन के तौर पर काम कर रही थी, इसलिए ज्यादातार पत्रकार अच्छे लेखक थे, लेकिन फिर एक दौर व्यावसायिक आया। इससे मीडिया से लेखकों की जमात खत्म होती चली गई और विशुद्ध पत्रकार शामिल होते गए। दिक्कत यह हुई कि इनमें ज्यादातर ऐसे लोग भी आते गए, जिन्हें शब्दों के भाव और अर्थों से कोई लेना देना नहीं होता व समझ ही नहीं होती ! वे बस सूचनावाहक बनकर रह गए, जबकि खबरें सिर्फ सूचना नहीं होतीं, वे लोगों को जागृत करती हैं, बुराई के प्रति आंदोलित करती हैं...गड़बड़ियां करने वालों में भय का रस घोलती हैं, लेकिन अब खबरों से सारे रस खत्म हो गए हैं ! खबरें निस्तेज हो चली हैं। न पढ़ने पर दिलो-दिमाग में कुछ कौंधता है और न कुछ बदलता है। इसी वजह से मीडिया का लगातार पतन होता चला गया, जिनके लिए सरस्वती सिर्फ लक्ष्मी पूजा का जरिया बन जाए...,वहां भावनाओं...देश-समाज की कोई कद्र नहीं होती।
प्र.(5.)अपने कार्य क्षेत्र के लिए क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होना पड़ा अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के तो शिकार न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाये ?
उ:-
जो समय के साथ नहीं बदलेगा, उसे हमेशा दिक्कतें उठानी पड़ेंगी। जब हम कन्फर्ट जोन में आ जाते हैं, तो आगे कदम उठाने से भी डरते हैं। अकसर हम ऐसा सामना करते रहते हैं। ऐसी दिक्कतें कभी खत्म नहीं होंगी...,इसलिए इन दिक्कतों के बीच से मेरी कोशिश है कि रिस्क उठाते हुए कुछ कर गुजरा जाए।
प्र.(6.)आपने यही क्षेत्र क्यों चुना ? आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट थे या उनसबों ने राहें अलग पकड़ ली !
उ:-
किशोरावस्था से अपना खर्चा खुद उठाने का जुनून था। थोड़ा-बहुत लिख लेता था, जिससे पैसे मिलने लगे। धीरे-धीरे इसी क्षेत्र में रम गया। बाकी दूसरी ओर ध्यान ही नहीं दे पाया। मुझे अपने निर्णय पर कोई पछतावा नहीं। हां, संतुष्ट कभी नहीं रहा, क्योंकि हमेशा नया सोचता हूँ व करने का प्रयास करता हूँ, इसलिए आज का किया...कल बासी लगने लगता है..जिससे कभी संतुष्ट नहीं हो सकता।
प्र.(7.)आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ? यह सभी सम्बन्ध से हैं या इतर हैं !
उ:- जी सभी !
प्र.(8.)आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ? इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं अथवा संस्कृति पर चोट पहुँचाने के कोई वजह ?
उ:-
शब्द,संस्कृति..... क्या किसी भी चीज को चोटिल कर सकते हैं ! इसलिए कभी शब्दों को गलत वाक्यांश में नहीं पिरोता !
प्र.(9.)भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में आप और आपके कार्य कितने कारगर साबित हो सकते हैं !
उ:-
बहुत हद तक ! अगर हमारा लिखा एक समाचार 10 लोगों को भी भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़ा कर पाया तो यह बहुत बड़ी शुरुआत होगी।
प्र.(10.)इस कार्य के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे से इतर किसी प्रकार के सहयोग मिले या नहीं ? अगर हाँ, तो संक्षिप्त में बताइये ।
उ:-
आज जो कुछ लिख पा रहा हूँ, वह लोगों के सहयोग से ही है।
प्र.(11.)आपके कार्य क्षेत्र के कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी धोखा, केस या मुकद्दमे की परेशानियां झेलने पड़े हों ?
उ:-
नहीं।
प्र.(12.)कोई किताब या पम्फलेट जो इस सम्बन्ध में प्रकाशित हों, तो बताएँगे ?
उ:-
मैंने सभी विषयों पर लिखा है। 'सत्ता परिवर्तन' के बाद 'उल्लू का पट्ठा' दूसरा उपन्यास है। इससे पहले एक स्प्रिच्युअल बुक 'सबके जीवन में साई' एडिट की थी। टीवी-रेडियो सबके लिए लिखा।
प्र.(13.)इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, बताएँगे ?
उ:-
मेरे लिए पुरस्कार से ज्यादा लोगों के द्वारा हौसला अफजाई महत्वपूर्ण है। इसलिए पुरस्कारों के लिए न कभी जुगाड़ी की, न जोड़-तोड़ ! इस देश का हर नागरिक सम्मानित है। जिसे पुरस्कार मिला हो या जिसे न मिला हो...,वो सब।
प्र.(14.)आपके कार्य मूलतः कहाँ से संचालित हो रहे हैं तथा इसके विस्तार हेतु आप समाज और राष्ट्र को क्या सन्देश देना चाहेंगे ?
उ:-
मैं भोपाल में निवासरत हूं। मैं सबसे यही कहता हूं कि अगर हम खुद को बदल पाए, तो सबकुछ बदल जाएगा। सिर्फ कहें नहीं, जो कहें वो करने की एक बार कोशिश अवश्य करें।
"आप यूं ही हँसते रहें, मुस्कराती रहें, स्वस्थ रहें, सानन्द रहें "..... 'मैसेंजर ऑफ ऑर्ट' की ओर से सहस्रशः शुभ मंगलकामनाएँ !
नमस्कार दोस्तों !
मैसेंजर ऑफ़ आर्ट' में आपने 'इनबॉक्स इंटरव्यू' पढ़ा । आपसे समीक्षा की अपेक्षा है, तथापि आप स्वयं या आपके नज़र में इसतरह के कोई भी तंत्र के गण हो, तो हम इस इंटरव्यू के आगामी कड़ी में जरूर जगह देंगे, बशर्ते वे हमारे 14 गझिन सवालों के सत्य, तथ्य और तर्कपूर्ण जवाब दे सके !
हमारा email है:- messengerofart94@gmail.com
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