आज 21 वीं सदी में हम जी रहे हैं, लेकिन सामाजिक प्राणी होने के बावजूद हमारे कार्य सामाजिक नहीं होते हैं ! ऐसी क्या बातें हैं कि हम घायल पड़े लोगों को देखकर सेल्फी लेने में मशगूल होते हैं ? ऐसी क्या बातें हैं कि बुजुर्गों के प्रति युवाओं का सोच इतनी निम्न हो गयी है ? शायद इसका एक कारण संस्कार भी हो सकता है ! आज स्मार्टफोन में लोग जितने व्यस्त रहते हैं, यदि यह व्यस्तता कम जो जाय, तो काफी सारे काम पूर्ण हो सकते हैं । आइये आज मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं एक लघु आलेख...
आज के पुत्र और पुत्रवधू बूढ़े माता - पिता को रोजाना सताते हैं । वे उन्हें घर पर नहीं रखते हैं, वृद्धाश्रम में रखते हैं । अगर घर में रखते हैं, तो घर के बाहरी हिस्से में । बुजुर्ग माता - पिता को समय पर खाने को नहीं मिलता है । अगर खाना मिल भी जाय, तो दवा समय पर नहीं मिलती । दवा की व्यवस्था हो भी जाय, परंतु तब उन्हें सेवा और प्रेम प्राप्त नहीं हो पाता है । इस हेतु सरकार के साथ - साथ समाज को केंद्र में आना चाहिए । मुख्यतः, यह एक सामाजिक पहल है ।
-- प्रधान प्रशासी-सह-प्रधान संपादक ।
आज के पुत्र और पुत्रवधू बूढ़े माता - पिता को रोजाना सताते हैं । वे उन्हें घर पर नहीं रखते हैं, वृद्धाश्रम में रखते हैं । अगर घर में रखते हैं, तो घर के बाहरी हिस्से में । बुजुर्ग माता - पिता को समय पर खाने को नहीं मिलता है । अगर खाना मिल भी जाय, तो दवा समय पर नहीं मिलती । दवा की व्यवस्था हो भी जाय, परंतु तब उन्हें सेवा और प्रेम प्राप्त नहीं हो पाता है । इस हेतु सरकार के साथ - साथ समाज को केंद्र में आना चाहिए । मुख्यतः, यह एक सामाजिक पहल है ।
-- प्रधान प्रशासी-सह-प्रधान संपादक ।
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