हर चीजों की किसी एक से तुलना नहीं की जा सकती है और तो और इनमें मानवीय 'अवस्थाएँ' भी शामिल हैं, जिनमें 'अहसास' (एहसास !) भी शामिल है। अहसास स्वयं में अप्रतिम अवस्था है । हम बिखरते परिवार में 'अहसास' लाकर ही उसे जोड़ सकते हैं, बिखरते रिश्ते को सहेजना किसी कागज के टुकड़े को समेटने जैसे नहीं है, अपितु निर्जीव और सजीव संज्ञा के प्रसंगश: यह दोनों स्थितियाँ भिन्नता लिए होती है । कुछ ऐसी ही मीमांसा को लेकर एक कविता प्रस्तुत है । आइये, आज मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं सुश्री मधुलता त्रिपाठी की कविता...
सुश्री मधुलता त्रिपाठी |
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