ऐसे कुछ ही लेखक हैं, जो 'सच' को अपनी कहानियों में पिरोते हैं, हालाँकि इस सच के साथ कल्पनाप्रसूत उपादान की भी महती भूमिका होती है । हिंदी उपन्यास वेंटिलेटर इश्क़ भी सच के करीब है और इस सच को व सच्चाई प्रणीत 'कल्पना' को इस ढंग से लेखनबद्ध की गई है कि पढ़ते ही अचंभित हो जाएंगे ! पढ़ने के क्रम में ज्यों-ज्यों आगे बढ़ेंगे, त्यों-त्यों पढ़ने में रुचि और भी प्रगाढ़ व गहनतम होती चली जायेगी। उपन्यासकार के बारे में पुस्तक-क्रय करने के बाद ही पता चल सकेगा ! इसलिए अमेज़न, फ्लिपकार्ट आदि के प्रसंगश: प्रस्तुत उपन्यास को खरीदा जा सकेगा ! आपके 'मैसेंजर ऑफ़ आर्ट' ने इस उपन्यास की हुई समीक्षा को, जो उपन्यास के पृष्ठ आवरण में प्रकाशित हुई है-- को यहाँ दी जा रही है । आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, नाम से और काम से दिल जीत लेनेवाली प्रस्तुत उपन्यास की कुछ बिंदास झलकियाँ......
ऐसी प्रेम कहानी, जो आज तक देखी, सुनी, पढ़ी और महसूस नहीं की गई ! एक ऐसी युवती, युवक, देश, राज्य व धर्म की कहानी, जिसे पढ़ते-पढ़ते पाठक आश्चर्य के समुद्र में गोते लगाने पर मजबूर हो जायेंगे ! नायक की नज़र में, अद्भुत लुकआउट लिए वो युवती 7 महादेशों, सभी समुद्रों, ब्रह्मांड से निःसृत सभी उपलब्ध सौंदर्य और अनंतिम कदर्य को समेटे तूफानी वक्ष लिए हैं, उनकी ओठ में ऐसी मंजन लगी है, जिसमें हज़ारों प्रेमी पेस्ट करने पर बेताब हैं, लेकिन वह ओठ किसके लिए बनी है, यह शायद और शायद एक पहेली ही है !
‘वेंटिलेटर इश्क़’ की प्रेम कहानी अंडर-ग्रेजुएट की एंट्रेंस परीक्षा से शुरू होकर ग्रेजुएट कक्षा में ही रह जाती है । नायक और नायिका यानी दोनों की ओर से प्रेम की चाह है, न भी है ! यह इसलिए कि दोनों ‘इश्क़’ का प्रकटीकरण प्रत्यक्षतः नहीं कर पाते हैं । नायक की मित्र-मंडली एतदर्थ चुहलबाजी जरूर करते हैं । नायिका भी कई दफ़े ‘इश्क़’ में रससिक्त हो नायक से वार्त्तालाप करती हुई रोमांचित हो जाती हैं । नायक को लगता है, यही तो रोमांटिज़्म है, इश्क़ है, किन्तु जब वो नायिका को करियर के प्रति संजीदा देखते हैं, हतप्रभ रह जाते हैं और नायक को संशय होने लगता है कि यह उनके तरफ से इकतरफा प्यार तो नहीं ! कटिहार छोड़ते समय नायिका हालाँकि फंतासी से परे होकर ज़िन्दगी के यथार्थ को अभिभावक की भाँति नायक को समझाती है और उन्हें भी करियर के प्रति सजग करती है ! …. परंतु नायक इश्क़ और करियर के द्वंद्व में स्वयं को विचलित पाता है !
नायक ‘कुमार शानु’ और नायिका ‘अंकिता नाथ’ !
दोनों ही मेधावी ! नायक अंडर-ग्रेजुएट टॉपर्स में एक है, तो नायिका की मार्क्स भी टॉपर्स जैसी है, किन्तु नायक से कम है । न केवल दोनों, अपितु दोनों के परिवार भी उन्हें इंजीनियर देखना चाहते हैं । …. और ‘इंजीनियर’ बनने की चाह के बीच ही नायक और नायिका की मुलाकात अंडर-ग्रेजुएट एंट्रेंस परीक्षा के प्रथम दिवस ही हो जाती है । दोनों के नीरस विषय mathematics, नायक के प्रेम से रिश्ते-नाते अरबों प्रकाशवर्ष दूर और नायिका भी इस संबंध में सख़्त जान, किसी को घास तक नहीं डालनेवाली ! …. किन्तु इश्क़यापे की खुमार ने घास तो डाली, चश्मिश नायक रूपी शाकाहारी प्राणी को ! कालांतर में दोनों इंजीनियरिंग के छात्र भी हुए !
…. परंतु ज़िन्दगी के झंझावातों ने क्या दोनों को जोड़ पाया ? पहलीबार ऐसा हुआ कि नायक और नायिका के अकथ प्रेम के बीच दोनों के परिवार आड़े नहीं आए, बावजूद इनदोनों का मिलन कब और किस परिस्थिति में हो पाई ? अगर हो पायी, तो यह ‘वेंटिलेटर’ शब्द क्यों ? फिर ‘वेंटिलेटर इश्क़’ कैसे ? यही तो इस उपन्यास और इसकी कथा की रहस्यता है ! क्योंकि यह आम प्रेमी-प्रेमिका के बीच की कहानी नहीं है ! वो इसलिए कि कथारम्भ में ही ‘सुपीरियर’ की दुनिया से आत्मसात होती है ! पौराणिक फंतासी की किला को वैज्ञानिक तर्क से डिलीट कर दिया जाता है, कैसे और किनके द्वारा ? फिर ये ‘सुपीरियर’ कौन है ? ये सब जानने के लिए निश्चित ही हमारे आदरणीय पाठकों और समीक्षकों को “वेंटिलेटर इश्क़ : A Graduate Love Story” को आद्योपांत पढ़ना होगा !
नमस्कार दोस्तों !
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Interesting book..
ReplyDeleteStory Achi h