हाल-फिलहाल कवि चमन सिंह जी की किताब 'कलम की रात' का विमोचन हुआ है । यह उनकी चौथी किताब है । आइये आज मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं लेखक व कवि श्रीमान चमन सिंह के बारे में कुछ अनोखी बातें, उन्हीं की जुबानी...
संवेदनाओं का समंदर अक्सर उफ़ान पर रहता है अगर आप खुद में एकांत रहना पसंद करते हैं । एकांत रहने का मतलब यह नहीं की देश दुनिया से या समाज़ से बाहर अपितु समाज़ में ही रहकर केवल सोच को महत्वाकांक्षी, शांत और धैर्यतापूर्वक रखना भी एकांत मन सा ही रहता है ।
इन्हीं संवेदनाओं का परिणाम है कि अल्फ़ाज़ों का कोई अंत नहीं है, बस वो आते हैं और उन्हें अक्षर का रूप दिया जाता है, जब अक्षर बूँद-बूँद करके एक किताब रुपी घड़े में परिवर्तित हो जातें है, तो वो काव्यसंकलन का रूप ले लेते हैं ।
लगभग दो वर्ष में तीन किताबें प्रकाशित हुई, जो है क्रमशः "ज़िन्दगी एक एहसास", "उड़ता परिंदा ", "इश्क़ और तुम " । इनके अलावा कुछ किताबों में सहयोग रुपी अल्फ़ाज़ दिए जो हैं "उजास ", "अनुवाद के विविध आयाम ", "अनकहे एहसास ","कवियों का मंथन"।
लोग अक्सर पूछते हैं कि आखिर अभी इस 22 वर्ष की उम्र में ऐसे विचारों का आगमन होना थोड़ा मुश्किल है और मैं ये सब सुनकर बस मुस्कुरा देता हूँ। आखिर मैं उन्हें कैसे बताऊँ क़ि ऐसे विचारों के लिए हर एहसास को महसूस करना पड़ता है ? ये ज़रूरी नहीं क़ि इश्क़, प्यार, मोहब्बत जैसे अल्फ़ाज़ों को पिरोने के लिए इश्क़, प्यार, मोहब्बत करना भी ज़रूरी हो। ये तो बस एहसास है, जो महसूस हुआ और किसी रात कलम के सहारे बस अक्षरों में परिवर्तित हो गया और वो संग्रह बन गया "कलम की रात " ।
मैं माँ शारदे, सभी गुरुजनों ,माता पिता ,परिवारजनों एवं सभी मित्रगणों को धन्यवाद देना चाहूंगा जिनकी वजह से आज मैं एक छोटा सा लेखक बन पाया ।
माँ शारदे ने सद्बुद्धि दी, गुरुजनों ने शिक्षा दी, परिवारजनों ने स्नेह दिया और मित्रगणों ने प्यार और सम्मान दिया बस जीवन सफ़ल हो चुका है ।माँ शारदे की ही कृपा से मुझे "अक्षर श्री " सम्मान से नवाज़ा गया !
मेरी लेखन की दुनिया में मेरी माँ का बहुत बड़ा सहयोग रहा है या यूँ कहूँ की मेरी इस दुनिया की शुरुआत ही 'माँ' के कहने पर हुई । एक बार की बात है -- "माँ को मेरी अलमारी से कागज़ का एक टुकड़ा मिला । माँ पढ़ना नहीं जानती मग़र दुनिया को जानती हैं, माँ ने वह कागजी टुकड़ा पिताजी को दिया और बोले कि यह बहुत दिनों से लिखता रहता है । पिता जी ने माँ को पढ़कर सुनाया और माँ खुश हुई, क्योंकि मैंने गरीबी के बारे में लिखा था, जो मैं अपने गाँव में आसपास देखता था । उस दिन माँ ने कहा अच्छा लिखते हो मग़र पहले पढाई पूरी कर लो उसके बाद लिखना ।" वहाँ से मेरा सफ़र शुरू हुआ । आज यह चौथी किताब "कलम की रात " के रूप में अवतरित हो रही है ।
संवेदनाओं का समंदर अक्सर उफ़ान पर रहता है अगर आप खुद में एकांत रहना पसंद करते हैं । एकांत रहने का मतलब यह नहीं की देश दुनिया से या समाज़ से बाहर अपितु समाज़ में ही रहकर केवल सोच को महत्वाकांक्षी, शांत और धैर्यतापूर्वक रखना भी एकांत मन सा ही रहता है ।
इन्हीं संवेदनाओं का परिणाम है कि अल्फ़ाज़ों का कोई अंत नहीं है, बस वो आते हैं और उन्हें अक्षर का रूप दिया जाता है, जब अक्षर बूँद-बूँद करके एक किताब रुपी घड़े में परिवर्तित हो जातें है, तो वो काव्यसंकलन का रूप ले लेते हैं ।
लगभग दो वर्ष में तीन किताबें प्रकाशित हुई, जो है क्रमशः "ज़िन्दगी एक एहसास", "उड़ता परिंदा ", "इश्क़ और तुम " । इनके अलावा कुछ किताबों में सहयोग रुपी अल्फ़ाज़ दिए जो हैं "उजास ", "अनुवाद के विविध आयाम ", "अनकहे एहसास ","कवियों का मंथन"।
लोग अक्सर पूछते हैं कि आखिर अभी इस 22 वर्ष की उम्र में ऐसे विचारों का आगमन होना थोड़ा मुश्किल है और मैं ये सब सुनकर बस मुस्कुरा देता हूँ। आखिर मैं उन्हें कैसे बताऊँ क़ि ऐसे विचारों के लिए हर एहसास को महसूस करना पड़ता है ? ये ज़रूरी नहीं क़ि इश्क़, प्यार, मोहब्बत जैसे अल्फ़ाज़ों को पिरोने के लिए इश्क़, प्यार, मोहब्बत करना भी ज़रूरी हो। ये तो बस एहसास है, जो महसूस हुआ और किसी रात कलम के सहारे बस अक्षरों में परिवर्तित हो गया और वो संग्रह बन गया "कलम की रात " ।
मैं माँ शारदे, सभी गुरुजनों ,माता पिता ,परिवारजनों एवं सभी मित्रगणों को धन्यवाद देना चाहूंगा जिनकी वजह से आज मैं एक छोटा सा लेखक बन पाया ।
माँ शारदे ने सद्बुद्धि दी, गुरुजनों ने शिक्षा दी, परिवारजनों ने स्नेह दिया और मित्रगणों ने प्यार और सम्मान दिया बस जीवन सफ़ल हो चुका है ।माँ शारदे की ही कृपा से मुझे "अक्षर श्री " सम्मान से नवाज़ा गया !
मेरी लेखन की दुनिया में मेरी माँ का बहुत बड़ा सहयोग रहा है या यूँ कहूँ की मेरी इस दुनिया की शुरुआत ही 'माँ' के कहने पर हुई । एक बार की बात है -- "माँ को मेरी अलमारी से कागज़ का एक टुकड़ा मिला । माँ पढ़ना नहीं जानती मग़र दुनिया को जानती हैं, माँ ने वह कागजी टुकड़ा पिताजी को दिया और बोले कि यह बहुत दिनों से लिखता रहता है । पिता जी ने माँ को पढ़कर सुनाया और माँ खुश हुई, क्योंकि मैंने गरीबी के बारे में लिखा था, जो मैं अपने गाँव में आसपास देखता था । उस दिन माँ ने कहा अच्छा लिखते हो मग़र पहले पढाई पूरी कर लो उसके बाद लिखना ।" वहाँ से मेरा सफ़र शुरू हुआ । आज यह चौथी किताब "कलम की रात " के रूप में अवतरित हो रही है ।
नमस्कार दोस्तों !
'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।
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