एक अद्भुत गणितज्ञ द्वारा लिखी एक अद्भुत नाटक 'लव इन डार्विन' हाल-फिलहाल पढ़ा । नाटक के बारे में बताने से पहले इतना जरूर कहना चाहूँगा कि इस किताब पर फ़िल्म 'भूतनाथ रिटर्न्स' बन चुकी है !
'लव इन डार्विन' की कथा कोलकाता के सोनागाछी की रेड लाइट एरिया में 'मोना' नाम की सेक्सवर्कर से शुरू होती है, जो कि अपनी अद्भुत नृत्य से कभी बिहारी बंधु, तो कभी दक्षिण भारतीय बंधु, तो कभी यूपी के लल्ला को न केवल घायल करती है, अपितु उसे अपनी ऊष्मा से मदहोश कर जाती हैं, लेकिन यह क्या ? मोना तो अलग-अलग राज्यों के लोगों को ऐसे मदमस्त करती है कि पर्दा उठने की जगह, पर्दा गिर ही जाती है और हम नाटक के दूसरे अध्याय में प्रवेश कर जाते हैं ।
इस नाट्य पटकथा की कथा आगे बढ़ती है... यह नायिका, जो सेक्सवर्कर -सह- नर्तकी भी है, मध्य रात्रि में पुरुष के इंतज़ार में विक्टोरिया मेमोरियल पार्क पहुँच जाती है, लेकिन जिस गंभीर पुरुष का उसे दर्शन होता है, वह मोना की ज़िंदगी को बदल कर रख देता है, लेकिन मोना तबतक उस गंभीर पुरुष की महत्ता को समझ नहीं पाती है कि वह आम मानव है या गंभीर मूर्ख बेताल !
किताब 'लव इन डार्विन' के पन्ने बढ़ती चली जाती हैं और हम पाठक एक अजीबोगरीब लोक में प्रवेश करते हैं कि कैसे एक बेताल ने देश, समाज,धर्म और विज्ञान में गहरी रुचि दिखा कर अंतरिक्ष में ही नहीं, अपितु ब्लैक हॉल में भी फुटबॉल खेलने में मग्न हो जाते हैं !
नाट्य पटकथा की और भी आगामी अध्यायों में हमें यह भी आश्चर्य कर जाती है कि आखिर इतनी पढ़ी लिखी मोना आखिर क्यों वेश्यावृत्ति में आ गयी थी और फिर क्यों तब विज्ञान की इस अद्भुत छात्रा द्वारा भूतों पर विश्वास करने लग जाती है ?
ऐसी क्या बात हुई कि मोना 'मिसेस मोनालिसा' हो गयी ? ऐसी क्या हुई कि मोना ने अश्वत्थामा की खोज कर ली ? ऐसी क्या हुई कि ब्लैकहोल के अद्भुत रहस्य से मोना ने पर्दा उठा दी !
.....और भी बहुत सारी बातें हैं, जिन्हें जानने के लिए 'लव इन डार्विन' पढ़ना ही पड़ेगा !
लेखक डॉ0 सदानंद पॉल ने प्रस्तुत नाट्य पटकथा में डार्विन सिद्धांत के बहाने विज्ञान सहित भूत, भविष्य, अंतरिक्ष, ब्लैक हॉल और एक साहसी महिला की तार्किक सोच के प्रसंगश: एक अद्भुत ग्रंथ रच डाले हैं !
-- प्रधान प्रशासी-सह-प्रधान संपादक ।
इस नाट्य पटकथा की कथा आगे बढ़ती है... यह नायिका, जो सेक्सवर्कर -सह- नर्तकी भी है, मध्य रात्रि में पुरुष के इंतज़ार में विक्टोरिया मेमोरियल पार्क पहुँच जाती है, लेकिन जिस गंभीर पुरुष का उसे दर्शन होता है, वह मोना की ज़िंदगी को बदल कर रख देता है, लेकिन मोना तबतक उस गंभीर पुरुष की महत्ता को समझ नहीं पाती है कि वह आम मानव है या गंभीर मूर्ख बेताल !
किताब 'लव इन डार्विन' के पन्ने बढ़ती चली जाती हैं और हम पाठक एक अजीबोगरीब लोक में प्रवेश करते हैं कि कैसे एक बेताल ने देश, समाज,धर्म और विज्ञान में गहरी रुचि दिखा कर अंतरिक्ष में ही नहीं, अपितु ब्लैक हॉल में भी फुटबॉल खेलने में मग्न हो जाते हैं !
नाट्य पटकथा की और भी आगामी अध्यायों में हमें यह भी आश्चर्य कर जाती है कि आखिर इतनी पढ़ी लिखी मोना आखिर क्यों वेश्यावृत्ति में आ गयी थी और फिर क्यों तब विज्ञान की इस अद्भुत छात्रा द्वारा भूतों पर विश्वास करने लग जाती है ?
ऐसी क्या बात हुई कि मोना 'मिसेस मोनालिसा' हो गयी ? ऐसी क्या हुई कि मोना ने अश्वत्थामा की खोज कर ली ? ऐसी क्या हुई कि ब्लैकहोल के अद्भुत रहस्य से मोना ने पर्दा उठा दी !
.....और भी बहुत सारी बातें हैं, जिन्हें जानने के लिए 'लव इन डार्विन' पढ़ना ही पड़ेगा !
लेखक डॉ0 सदानंद पॉल ने प्रस्तुत नाट्य पटकथा में डार्विन सिद्धांत के बहाने विज्ञान सहित भूत, भविष्य, अंतरिक्ष, ब्लैक हॉल और एक साहसी महिला की तार्किक सोच के प्रसंगश: एक अद्भुत ग्रंथ रच डाले हैं !
-- प्रधान प्रशासी-सह-प्रधान संपादक ।
Outstanding
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