दुनिया काफी आगे बढ़ गयी है, लेकिन कुछ लोग अब भी 'बेटा-बेटी' में भेदभाव करते हैं, हमें उनलोगों की सोच बदलने की जरूरत हैं। आइये, आज मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं सुश्री मधुलता त्रिपाठी की कविता...यह कविता हमारे आदरणीय पाठकगण को भावुक तो करेंगे ही, परंतु सोचने पर मजबूर भी करेंगे...
'अजन्मी बेटी की पुकार'
इक कली हूँ मैं
खिलने दो मुझे
ना छीनो जिंदगी मेरी जीने दो मुझे
मैं भी पंख पसार लूं
चाहत है
जिंदगी सवार लूं
मुझसे मेरे सपने ना छीनो
कुछ नए रंग दो मुझे
ना छीनो जिंदगी मेरी जीने दो मुझे ।
मैं भी तुम्हारे जीवन का
अमूल्य एक अंश हूँ
अपना मानो मुझे
मैं भी तुम्हारी वंश हूँ
कुछ और नहीं मैं तुम्हारा प्यार चाहती हूं
आप के खून के बराबर
अधिकार चाहती हूँ
मुझसे मेरा अधिकार ना छीनो
मेरा अधिकार दो मुझे
ना छीनो जिंदगी मेरी
जीने दो मुझे ।
सुश्री मधुलता त्रिपाठी |
'अजन्मी बेटी की पुकार'
इक कली हूँ मैं
खिलने दो मुझे
ना छीनो जिंदगी मेरी जीने दो मुझे
मैं भी पंख पसार लूं
चाहत है
जिंदगी सवार लूं
मुझसे मेरे सपने ना छीनो
कुछ नए रंग दो मुझे
ना छीनो जिंदगी मेरी जीने दो मुझे ।
मैं भी तुम्हारे जीवन का
अमूल्य एक अंश हूँ
अपना मानो मुझे
मैं भी तुम्हारी वंश हूँ
कुछ और नहीं मैं तुम्हारा प्यार चाहती हूं
आप के खून के बराबर
अधिकार चाहती हूँ
मुझसे मेरा अधिकार ना छीनो
मेरा अधिकार दो मुझे
ना छीनो जिंदगी मेरी
जीने दो मुझे ।
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