सितम्बर माह भारत के दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण है । शिक्षा, साहित्य, कला, विज्ञान, समाजसेवा इत्यादि से जुड़े तो हैं ही, साथ ही इस माह कई महापुरुषों की जन्मतिथि और पुण्यतिथि भी है ! सर्वाधिक 'भारतरत्न' से संबंधित यह माह डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जन्म-जयंती सहित संत मदर टेरेसा की पुण्यतिथि, तो इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया, राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर', डॉटर ऑफ नेशन व स्वरकोकिला 'लता मंगेशकर' इत्यादि विभूतियों से प्रसंगत हैं !
हिंदी के युवा कवि, लेखक, समीक्षक, यूट्यूबर, मोटिवेशनल स्पीकर, शिक्षक और सोशल एक्टिविस्ट श्रीमान अभिषेक भाष्कर सिंह, जो मुक्ति घर नामक यूट्यूब चैनल चलाते हैं, जिनमें हिंदी संबंधी तमाम बातें होती हैं, तो हिंदी पुस्तकों से परिचय भी, वो भी पुस्तकीय समीक्षा के साथ !
उत्तर प्रदेश के जौनपुर जनपद, जो महर्षि जमदग्नि की तपोभूमि रही है, तो समय-काल लिए शिराज-ए-हिंद भी और एक समय तो देश की बादशाही राजधानी भी रही तथा जो अपनी मूल्यों के लिए जगख्यात रहा ! यहाँ का लिंगानुपात, देश के लिंगानुपात से भी ज्यादा है, उसके एक गांव बलरामपुर में रहते हैं, श्री अभिषेक भाष्कर सिंह और यहीं से अपने कार्यों को अंज़ाम देते हैं । आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट के 14 गझिन सवालों के सुलझे जवाब उनसे इस माह के 'इनबॉक्स इंटरव्यू' में रूबरू होते हैं.....
श्रीमान अभिषेक भाष्कर सिंह |
1.)आपके कार्यों को सोशल मीडिया व यूट्यूब के माध्यम से जाना । इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र के आईडिया-संबंधी 'ड्राफ्ट' को सुस्पष्ट कीजिये ?
उ:-
मूलतः, मैं एक ज्ञानार्थी हूँ । लिखते रहता हूँ, समीक्षाएं करते रहता हूँ। कवि हूँ, इसलिए तो काव्य-पाठ के लिए यात्राएं करते रहता हूँ, साथ ही सामाजिक दायित्व का निर्वहन भी करता हूँ । हाल ही में मैंने हिंदी किताबों के लिए, हिंदी भाषा के लिए, हिंदी पाठकों के लिए 'यूट्यूब' पर एक चैनल "मुक्ति घर" बनाया है, जिनके सहारे मैं हिंदी किताबों की समीक्षा, किताबों पर बातचीत और उसे पाठकों को पढ़ने हेतु रूबरू भी कराता हूँ।
प्र.(2.)आप किसतरह के पृष्ठभूमि से आये हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
उ:-
मैं ग्रामीण पृष्ठभूमि से हूँ। ज्यादातर समय गांव में ही बितता है। काव्य-पाठ, मोटिवेशनल स्पीकिंग और सामाजिक कार्यों के लिए देश के दूसरे हिस्सों में भी आते-जाते रहता हूँ। मुझ पर गांव का प्रभाव है, शहर भी कमोबेश अपना प्रभाव छोड़े हुए हैं, लेकिन गांव का प्रभाव ज्यादा है, जो मेरी खुशकिस्मती है ।
प्र.(3.)आपका जो कार्यक्षेत्र है, इनसे आमलोग किसतरह से इंस्पायर अथवा लाभान्वित हो सकते हैं ?
उ:-
देखिए, मैं किसी को प्रभावित करने के लिए काम नहीं करता ! मैं काम करता हूँ, इसलिए कि कार्य को और भी बेहतर कर सकूं । अपने राष्ट्र और समाज के लिए कुछ बेहतर कर सकूं ! हाँ, सिर्फ़ एक छोटी सी अभिलाषा यह है कि अपने देश के लिए काम आ सकूं । यही मेरा परम सौभाग्य होगा । लोग खुद-ब-खुद प्रभावित होते हैं, यदि आपका काम इमानदारीपूर्वक हो, तो लोगों को पसंद आते ही हैं ! लिखना-पढ़ना व्यक्ति को समृद्ध बनाता है, शक्तिशाली बनाता है और उनकी इस शक्ति से राष्ट्र और समाज भी समृद्ध बनता है ।
मेरे लिए यही मुक्ति है और भारत ही मेरा "मुक्ति घर" है ।
प्र.(4.)आपके कार्य में आये जिन रूकावटों,बाधाओं या परेशानियों से आप या संगठन रू-ब-रू हुए, उनमें से दो उद्धरण दें ?
उ:-
बाधाएं व रुकावटें तो आती ही रहेंगी, क्योंकि जीवन एक सपाट सीधी लकीर नहीं है । सबसे बड़ी समस्या जो अभी तक मैंने झेला है, वह है अर्थ का, पूंजी का ! पहली परेशानी तो तकनीक की थी, दूजे तो इनसे कोई बहुत बड़ी कमाई तो होती नहीं है, तो घर कैसे चलेगा ? पेट कैसे पलेगा ?फिर भी लगे हुए हैं, इन समस्याओं को समझते-बुझते और लक्ष्य के लिए इसे दरकिनार करते आगे की ओर बढ़ते हुए, जो आगे बढ़े ही चले जा रहे हैं !
प्र.(5.)अपने कार्य क्षेत्र के लिए क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होना पड़ा अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के तो शिकार न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाये ?
उ:-
आर्थिक दिक्कत का सामना तो करना ही पड़ा और अभी भी कर रहे हैं । हां, आर्थिक को लेकर दिग्भ्रमित तो नहीं हुआ, क्योंकि स्पष्ट सोच है कि हमें अपने काम से आगे जाना है, चापलूसी से आगे नहीं बढ़ना है। किसी की जी हुजूरी नहीं करना है, पैसे के दम पर आगे नहीं बढ़ना है । पैसा सहायक है, आधार नहीं !
प्र.(6.)आपने यही क्षेत्र क्यों चुना ? आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट थे या उनसबों ने राहें अलग पकड़ ली !
उ:-
मन इसी में रमा है, तो क्या करें ! मेरे परिवारिक सदस्य मेरे इस काम से बिल्कुल ही संतुष्ट नहीं हैं, वह नाखुश हैं और मुझे बार-बार सलाह देते कि मैं यह ना करूं, लेकिन फिर भी वह मुझे रोकते नहीं हैं ! मुझ पर कोई पाबंदियां नहीं लगाते हैं ! तभी तो मुझे यह विश्वास है कि वह मेरे साथ हैं और वह हैं भी !
प्र.(7.)आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ? यह सभी सम्बन्ध से हैं या इतर हैं !
उ:-
जीवन में बहुत सारे लोग मिलते रहते हैं, सहायता भी करते हैं, उन सभी का हृदय से आभार व्यक्त करते हैं, अभिनंदन करते हैं। संबंध प्रोफेशनल होते हैं, तो पर्सनल भी होते हैं और दोनों सहायक होते हैं और यही होना भी चाहिए !
प्र.(8.)आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ? इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं अथवा संस्कृति पर चोट पहुँचाने के कोई वजह ?
उ:-
मेरे काम से भारतीय संस्कृति प्रभावित होती है या नहीं, इसका आकलन तो नहीं किया, लेकिन जो मैं काम कर रहा हूँ, यक़ीनन वह काम भारतीय संस्कृति से ही तो प्रभावित है, यह कार्य इसी संस्कृति का हिस्सा है, क्योंकि यह काम इसी संस्कृति से ओतप्रोत है, जिस प्रकार एक बूंद जल, जलाशय से निकलता है, उससे निर्मित होता है और उसी बूंद से जलाशय निर्मित होता है । दोनों एक ही है, पूरक है, अद्वैत हैं !
प्र.(9.)भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में आप और आपके कार्य कितने कारगर साबित हो सकते हैं !
उ:-
यदि आप का अंतःकरण, लोक कल्याण की भावना से भरा है, उसमें प्रेम है राष्ट्र के लिए, समाज के लिए, भविष्य के लिए तो आप अपने चरित्र को कतई भ्रष्ट नहीं होने देंगे ! जब आपका आचरण भ्रष्ट नहीं होगा, तो आपका कार्य आपके राष्ट्र व सम्माज व साहित्य के लिए यक़ीनन लोक-कल्याणकारी और समृद्धि करने की ओर अग्रसर होगा । मेरा प्रयत्न इसी हेतु है और यह प्रयोजन इसी के लिए प्रारंभ हुआ है, जो कि इसी के लिए होता रहेगा !
प्र.(10.)इस कार्य के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे से इतर किसी प्रकार के सहयोग मिले या नहीं ? अगर हाँ, तो संक्षिप्त में बताइये ।
उ:-
अभी तक तो किसी प्रकार की सहायता नहीं मिली है । उम्मीद है कि भविष्य में कोई सहायता मिले, क्योंकि हम सभी एक-दूसरे के सहायक होकर ही बेहतर काम कर सकते हैं !
प्र.(11.)आपके कार्य क्षेत्र के कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी धोखा, केस या मुकद्दमे की परेशानियां झेलने पड़े हों ?
उ:-नहीं ।
प्र.(12.)कोई किताब या पम्फलेट जो इस सम्बन्ध में प्रकाशित हों, तो बताएँगे ?
उ:-अभी तक तो नहीं ।
प्र.(13.)इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, बताएँगे ?
उ:-
लोगों का प्यार ही सबसे बड़ा पुरस्कार है । फिलहाल, इसके लिए कोई ताम्रपत्र या कोई पदक या कोई काग़जी पुरस्कार भी प्राप्त नहीं हुआ है।
प्र.(14.)आपके कार्य मूलतः कहाँ से संचालित हो रहे हैं तथा इसके विस्तार हेतु आप समाज और राष्ट्र को क्या सन्देश देना चाहेंगे ?
उ:-
मेरे कार्य मेरे घर से ही संचालित होते हैं, लेकिन इसके लिए कई बार घर से बाहर जाना पड़ता है, परंतु अधिकांश काम मेरे गांव यानी घर से ही हो जाता है । गांधीजी कहा करते थे--
'जो बदलाव आप दुनिया में देखना चाहते हैं, वह पहले स्वयं में लाइये।'
महर्षि अरविन्द ने कहा है--
'वह ज्ञान जिसे ऋषियों ने पाया था, फिर से आ रहा है, उसे सारे संसार को देना होगा।'
मेरे मित्र श्रीकृष्ण तो हजारों वर्ष पूर्व 'गीता' में ही कह चुके हैं--
"न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते" ।
..... और मेरा भी यही संदेश है !
"आप यूं ही हँसते रहें, मुस्कराते रहें, स्वस्थ रहें, सानन्द रहें "..... 'मैसेंजर ऑफ ऑर्ट' की ओर से सहस्रशः शुभ मंगलकामनाएँ !
नमस्कार दोस्तों !
मैसेंजर ऑफ़ आर्ट' में आपने 'इनबॉक्स इंटरव्यू' पढ़ा । आपसे समीक्षा की अपेक्षा है, तथापि आप स्वयं या आपके नज़र में इसतरह के कोई भी तंत्र के गण हो, तो हम इस इंटरव्यू के आगामी कड़ी में जरूर जगह देंगे, बशर्ते वे हमारे 14 गझिन सवालों के सत्य, तथ्य और तर्कपूर्ण जवाब दे सके !
हमारा email है:- messengerofart94@gmail.com
बेहतरीन साक्षात्कार !
ReplyDeleteशुक्रिया 'मैसेंजर ऑफ आर्ट'... अद्भुत व्यक्तित्व से रूबरू कराने के लिये ।
खूब ।
ReplyDeleteशानदार इंटरव्यू ।
ReplyDeleteवाह ।
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