किताबें ज्ञान के साथ-साथ सामाजिक समस्याओं को भी उजागर करती हैं। यह पुस्तक असाधारण शब्दों, शैलियों व गुणों से सम्पन्न हैं, जहां द्विवेदी जी के मन में उपजी बातों को हम आलोक पर्व के माध्यम जान पाते हैं। आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, पुस्तक आलोक पर्व की लघु प्रेरक समीक्षा...
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अद्भुत पुस्तक, आलोक पर्व के निबन्ध द्विवेदीजी के प्रगाढ़ अध्ययन और प्रखर चिन्तन से प्रसूत हैं । इन निबन्धों में उन्होंने एक ओर, जहां संस्कृत-काव्य की भाव-गरिमा की झलक पाठकों के सामने प्रस्तुत की है, तो दूसरी ओर अपभ्रंश तथा प्राकृत के साथ हिन्दी के सम्बन्ध का निरूपण करते हुए लोकभाषा में हमारे सांस्कृतिक इतिहास की भूली कड़ियाँ खोजने का प्रयास किया है । बेहद खूबसूरत साधारण भाषा व शैली में लिखी हुई शानदार किताब ।
-- प्रधान प्रशासी-सह-प्रधान संपादक ।
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