आज के पुत्र और पुत्रवधू बूढ़े माता-पिता को रोजाना सताते हैं। वे उन्हें घर पर नहीं रखते हैं, वृद्धाश्रम में रखते हैं । अगर घर में रखते हैं, तो घर के बाहरी हिस्से में । बुजुर्ग माता-पिता को समय पर खाने को नहीं मिलता है । अगर खाना मिल भी जाय, तो दवा समय पर नहीं मिलती । दवा की व्यवस्था हो भी जाय, परंतु तब उन्हें सेवा और प्रेम प्राप्त नहीं हो पाता है । इस हेतु सरकार के साथ-साथ समाज को केंद्र में आना चाहिए । मुख्यतः, यह एक सामाजिक पहल है । हम बूढ़े माता-पिता से अलग नहीं रहें ! हम जब बालक थे, उनके सान्निध्य में पले-बढ़े ! आज जब वे बूढ़े हैं, तो उसे हम कैसे छोड़ सकते हैं ? आज मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं अंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस पर बुजुर्गों को समर्पित काव्याणु...
छोड़ आते हैं,
जिन्हें उनके बच्चे 'वृद्धाश्रम' में,
ठोकर खाकर भी वे 'वृद्ध' कहते हैं --
मेरे 'बच्चे' सुखी रहें ।
-- प्रधान प्रशासी-सह-प्रधान संपादक ।
जिन्हें उनके बच्चे 'वृद्धाश्रम' में,
ठोकर खाकर भी वे 'वृद्ध' कहते हैं --
मेरे 'बच्चे' सुखी रहें ।
-- प्रधान प्रशासी-सह-प्रधान संपादक ।
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