मौन रहना भी एक कला है, लेकिन हम मौन कब रहे, इसपर शोधकर्त्ताओं द्वारा शोध अवश्य की जा सकती हैं, लेकिन शोधकर्त्ताओं को अभी यहीं पर छोड़ते हुए मैसेंजर ऑफ आर्ट में आज पढ़ते हैं सुश्री ईशिका गोयल की अद्भुत कविता खामोशियाँ और कविता के माध्यम से हम सीखते हैं खामोश रहने की कला...
खामोशियाँ
चुप रहना सीख गई हूँ
अब ना लोगों की परवाह करती हूँ
अच्छे के साथ अच्छी हूँ
बुरे के साथ रहना ही ना चाहती हूँ।
क्या करूं खुदा ने बनाया ही ऐसा है
किसी को तक़लीफ देकर
सपने ना सजाती हूँ
निभानें पर आऊं तो
हर रिश्ता दिल से निभाती हूँ
पर हर बार धोखे की ठोकर खाकर रूक सी जाती हूँ
क्योंकि कितनी तकलीफ दे कर खुद को टूटने से बचाती रहूँ
अब किसी से कुछ नहीं चाहती हूँ
ना प्यार रहा,
ना नफरत की दीवार है
बस अब तो तन्हाई ही भाती है
मेरे फ़ोन में मेरी पूरी दुनिया समाती है।
इसमें मेरे शब्दों को पनाह सी मिल जाती है
इसलिए बेखौफ लिखती जाती हूँ
लोगों को जानकर खुद को ही चोट पहुंचाई है
अब खुद को जानना चाहती हूँ
अब बारी खुद को पहचानने की आई है,
किसी कोई न रूसवाई है
सच में खामोशी से होने लगा प्यार है,
किसी पर भी ना रहा ऐतबार है
अब कोई भी ना वफादार है
बस चुप रहना सीख लिया है
लोगों को गिरता हुआ देख लिया है
बस और नहीं देखा जायेगा
इस हद तक गिर जायेंगे
ज़हन में यह ख्याल तक ना आया था
बस अब नहीं किसी से नाता है
हर कोई दिखावे का अपनापन जताता है
छोड़ दी सबसे उम्मीद की राह है
अब खुद के लिए जीना सीखा है
कोई किसी का नहीं होता
यह आज खुद को समझाया है
लोगों को नजरंदाज करना
खुद के लिए लड़ना,
ना चाहते हुए भी लड़ना सीख गई हूँ
सब लोगों कि मेहरबानी है
शुरू कर दी नई कहानी है
बोलकर सब चले जाते हैं
खामोशियों को समझ ही ना पाते हैं
मेरी खामोशी सबके लिए काफी है
बोलकर तकलीफ से ले ली मैंने माफी है
कभी-कभी खामोशियां भी बहुत कुछ सीखा देती हैं ।
सुश्री ईशिका गोयल |
खामोशियाँ
चुप रहना सीख गई हूँ
अब ना लोगों की परवाह करती हूँ
अच्छे के साथ अच्छी हूँ
बुरे के साथ रहना ही ना चाहती हूँ।
क्या करूं खुदा ने बनाया ही ऐसा है
किसी को तक़लीफ देकर
सपने ना सजाती हूँ
निभानें पर आऊं तो
हर रिश्ता दिल से निभाती हूँ
पर हर बार धोखे की ठोकर खाकर रूक सी जाती हूँ
क्योंकि कितनी तकलीफ दे कर खुद को टूटने से बचाती रहूँ
अब किसी से कुछ नहीं चाहती हूँ
ना प्यार रहा,
ना नफरत की दीवार है
बस अब तो तन्हाई ही भाती है
मेरे फ़ोन में मेरी पूरी दुनिया समाती है।
इसमें मेरे शब्दों को पनाह सी मिल जाती है
इसलिए बेखौफ लिखती जाती हूँ
लोगों को जानकर खुद को ही चोट पहुंचाई है
अब खुद को जानना चाहती हूँ
अब बारी खुद को पहचानने की आई है,
किसी कोई न रूसवाई है
सच में खामोशी से होने लगा प्यार है,
किसी पर भी ना रहा ऐतबार है
अब कोई भी ना वफादार है
बस चुप रहना सीख लिया है
लोगों को गिरता हुआ देख लिया है
बस और नहीं देखा जायेगा
इस हद तक गिर जायेंगे
ज़हन में यह ख्याल तक ना आया था
बस अब नहीं किसी से नाता है
हर कोई दिखावे का अपनापन जताता है
छोड़ दी सबसे उम्मीद की राह है
अब खुद के लिए जीना सीखा है
कोई किसी का नहीं होता
यह आज खुद को समझाया है
लोगों को नजरंदाज करना
खुद के लिए लड़ना,
ना चाहते हुए भी लड़ना सीख गई हूँ
सब लोगों कि मेहरबानी है
शुरू कर दी नई कहानी है
बोलकर सब चले जाते हैं
खामोशियों को समझ ही ना पाते हैं
मेरी खामोशी सबके लिए काफी है
बोलकर तकलीफ से ले ली मैंने माफी है
कभी-कभी खामोशियां भी बहुत कुछ सीखा देती हैं ।
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