कवि की कल्पना को समझना आसान नहीं है, लेकिन पाठक बनने के बाद कवि की कल्पनाओं में डूबना हर किसी को अच्छा लगता है, आइये मैसेंजर ऑफ आर्ट में आज पढ़ते हैं श्रीमान कुणाल झा की अद्भुत कृति पंख लौटा दो की लघु प्रेरक समीक्षा...
#लप्रेस #लघु_प्रेरक_समीक्षा
हर किताब की अपनी कुछ अलग 'ज़िंदगी' होती है और यह 'ज़िंदगी' इस किताब में भी है । कविता संग्रह 'पंख लौटा दो' की हर कविता तो नहीं, लेकिन अधिकतर कविता 'दिल' को छू जाती है, परंतु कुछ 'शब्द' कुछ कविताओं के भटकाव में बह जाती है, जिससे सच्ची कवितायें भी बेकार लगने लगती है ।
-- प्रधान प्रशासी-सह-प्रधान संपादक ।
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हर किताब की अपनी कुछ अलग 'ज़िंदगी' होती है और यह 'ज़िंदगी' इस किताब में भी है । कविता संग्रह 'पंख लौटा दो' की हर कविता तो नहीं, लेकिन अधिकतर कविता 'दिल' को छू जाती है, परंतु कुछ 'शब्द' कुछ कविताओं के भटकाव में बह जाती है, जिससे सच्ची कवितायें भी बेकार लगने लगती है ।
-- प्रधान प्रशासी-सह-प्रधान संपादक ।
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