'माँ' शब्द स्वयं में अत्यंत लघु है, किंतु वृहद अर्थ रखते हैं । पूरी दुनिया इसी लघु शब्द के इर्द-गिर्द परिक्रमा कर रही है, परंतु माँ की वृहदत्तम रूप को चुनौती देती सुश्री श्रुति की कविता 'अधूरी माँ' को पढ़िये, मैसेंजर ऑफ आर्ट के बिल्कुल ताज़ा अंक में......
अधूरी मां
अधूरी मां की हर ख़्वाब
अलग है
अंदाज अलग है
उसकी हर बात अलग है
नस नस में बहता
रुआब अलग है...
अधूरी मां रोज़ ख़्वाब
सजाती है
अपने बच्चे के होने
की सुनहरी बात
गुनगुनाती है
रोज़ खुशियां भरे
आंसू बहाती है...
अधूरी मां पहले दिन से ही
उन के धागो में
बच्चे का चेहरा सोच
खिलखिलाती है
रोज़ कुछ नया-नया
बनाकर
उसके दुनिया में
आने का ख़्वाब
सजाती है...
अधूरी मां
फ़िर एक दिन वो
कुछ सकपका जाती है
जब गर्भपात की ख़बर
उसके कानों तक
आती है
कुछ उम्मीद तो वो
घरवालों से भी
लगाती हैं
फिर कुछ खटक सा
जाता है
शायद उसे याद
आ जाता है
की अब वो
अधूरी मां कहलाती हैं...!
सुश्री श्रुति |
अधूरी मां
अधूरी मां की हर ख़्वाब
अलग है
अंदाज अलग है
उसकी हर बात अलग है
नस नस में बहता
रुआब अलग है...
अधूरी मां रोज़ ख़्वाब
सजाती है
अपने बच्चे के होने
की सुनहरी बात
गुनगुनाती है
रोज़ खुशियां भरे
आंसू बहाती है...
अधूरी मां पहले दिन से ही
उन के धागो में
बच्चे का चेहरा सोच
खिलखिलाती है
रोज़ कुछ नया-नया
बनाकर
उसके दुनिया में
आने का ख़्वाब
सजाती है...
अधूरी मां
फ़िर एक दिन वो
कुछ सकपका जाती है
जब गर्भपात की ख़बर
उसके कानों तक
आती है
कुछ उम्मीद तो वो
घरवालों से भी
लगाती हैं
फिर कुछ खटक सा
जाता है
शायद उसे याद
आ जाता है
की अब वो
अधूरी मां कहलाती हैं...!
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