प्र.(1.)आपके कार्यों को सोशल-प्रिंट मीडिया के माध्यम से जाना । इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र के आईडिया-संबंधी 'ड्राफ्ट' को सुस्पष्ट कीजिये ?
उ:-
हां, यह आज का सच है। चुनांचे जासूसी उपन्यासों की गिरती हुई बिक्री का सारा दोष सोशल मीडिया के सिर ही मढ़ा जाता है, क्योंकि रीडर के समक्ष सोशल मीडिया नामक आकर्षक विकल्प खुल चुका है इसलिए रीडर कम-से-कम उपन्यासों पर तो केंद्रित नहीं रह गया, लेकिन दूसरी तरफ सच्चाई यह भी है कि आज के दौर के नए लेखक इसी प्लेटफार्म पर अपनी पहचान बनाने के बाद अपनी हार्ड कॉपी, सॉफ्ट कॉपी बेच पा रहे हैं। बिलाशक आज के कई लेखक 'लेखक' ही नहीं होते, यदि सोशल मीडिया नेटवर्क नहीं होता ! कहा जा सकता है कि इस प्लेटफार्म में प्रकाशकों की हठधर्मिता को कहीं हद तक बांधा है। भले कम संख्या में सही, लेकिन लेखक अपने क़द्रदान ढूंढ पा रहे हैं । आज से 15-20 साल पहले तक तो लेखक एक कॉपी बेचने की बाज़औकात नहीं रखता था । प्रकाशक मेहरबान तो सारी दिशाएं माफिक और प्रकाशक की नजर टेढ़ी तो भगवान भी आपके साथ नहीं !
प्र.(2.)आप किसतरह के पृष्ठभूमि से आये हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
उ:-
मैं निम्न मध्यमवर्गीय परिवार से हूँ । पिताजी की शराफत और मां की मेहनत के जज़्बे के सिवाय मेरे हिस्से कुछ नहीं था। हां, कुछ सपने थे और सामने खुला मैदान था और शुक्र था कि भारत जैसा महानतम देश मेरे पास था, जहाँ अपने बलबूते कोई कितनी लंबी उछाल मार सकता है । न यहाँ गोरे काले का भेद है और ना ही धार्मिक वैमनस्यता ! मुझे आज तक इसका लाभ मिला है। मैं मानता हूं कि जो भी छोटी-मोटी सफलता मेरे हिस्से आई है, उसमें भारत के स्वच्छंद वातावरण का अहम रोल है। बेशक हम लोग धरती के जन्नत में रहते हैं । हमें दूसरी कौन-सी जन्नत चाहिए। विषम परिस्थितियां अक्सर कलाकार के लिए एक यूनिवर्सिटी का काम करती हैं। मैं खुशनसीब हूँ कि बचपन से मुंह बाये विषम परिस्थितियां मेरे समक्ष खड़ीं थीं । विषम परिस्थिति ही मेरी मार्गदर्शक रही हैं।
प्र.(3.)आपका जो कार्यक्षेत्र है, इनसे आमलोग किसतरह से इंस्पायर अथवा लाभान्वित हो सकते हैं ?
उ:-
मेरा रचनात्मक कार्य क्षेत्र तो क्राइम फिक्शन रचना है। मैं अपना सौ परसेंट देता हूं और वृतांत तथा घटना निष्ठापूर्वक लिखता हूँ, मैं समझता हूं लोग प्रभावित होंगे और होते हैं।
प्र.(4.)आपके कार्य में आये जिन रूकावटों, बाधाओं या परेशानियों से आप या संगठन रू-ब-रू हुए, उनमें से दो उद्धरण दें ?
उ:-
लेखन का क्षेत्र ही नहीं, बल्कि तमाम कला के क्षेत्र में खुद को साबित करना ही एक बड़ा दुष्कर कार्य है। पग-पग पर रुकावट और बाधा आती है । आप उपन्यास लिख कर कहीं छपने के लिए लेकर जाएं, तो प्रकाशक मिलना इतनी दूर की कौड़ी हो जाता है कि साक्षात भगवान को पाना आसान लगने लगता है। कला के क्षेत्र में जो लोग सफल होते हैं वह बड़े धैर्य और परस्पर प्रतिभा तथा खूबसूरत इत्तफाक़ों का कमाल है, वरना आपको मानता कौन है या कहो कि मानना कौन चाहता है ? आपने उदाहरण की बात की.... मेरी जिंदगी तो इन कटु अनुभवों से भरी पड़ी है । किशोरवय से दर-दर भटक रहा था। खुद आपका परिवार आपके साथ नहीं होता । कोई परिवार नहीं चाहता कि उसका बेटा कोई फनकार बने, क्योंकि यह एक बर्बादी का रास्ता नज़र आता है। इस राह पर आपको अडिग रहना है, तो सर्वप्रथम अपने परिवार की क्रुद्ध दृष्टि का सामना करना होता है और उसे परास्त करना होता है।
प्र.(5.)अपने कार्य क्षेत्र के लिए क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होना पड़ा अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के तो शिकार न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाये ?
उ:-
फन के हर क्षेत्र में आर्थिक दिक्कतों का सामना करना होता है। उपन्यास छपवाने जाओ, तो प्रकाशक रुपये माँगते हैं । अपनी कहानी पर फिल्म बनने की बात करो, तो जुड़े लोग पूछते हैं कि कितने रुपये लगा सकते हो फिल्म पर ? मैं कैसे पार पाया ?.... तो यूं समझो कि जब मैंने इतना कमा लिया कि उपन्यास छपवा सकूं, तभी मेरा उपन्यास मंज़रेआम पर आया। वरना उससे पहले तक तो कल्पना लोक ही था------ मैंने कहा ना कि सपने हासिल करना बड़ा दुष्कर है। खूबसूरत इत्तफाक़ ही सारथी होते हैं वरना इस दुनिया में आपके सपनों का कोई क़द्रदान नहीं है !
प्र.(6.)आपने यही क्षेत्र क्यों चुना ? आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट थे या उनसबों ने राहें अलग पकड़ ली !
उ:-
जब 14 वर्ष की उम्र में पहला उपन्यास रच डाला था और एक पढ़ाकू किस्म के व्यक्ति ने मुझे हैरत की दृष्टि से देखा था, तभी अपनी राहे इस पथ की मुरीद हो गई थीं । परिवार कितना नाराज़ था, वह मैं आपको बता चुका हूँ।
प्र.(7.)आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ? यह सभी सम्बन्ध से हैं या इतर हैं !
उ:-
मशहूर शे'र है ---
मैं अकेला ही चला था जानिबे मंज़िल मगर,
लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया।
प्र.(8.)आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ? इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं अथवा संस्कृति पर चोट पहुँचाने के कोई वजह ?
उ:-
यह बड़ा और अर्थपूर्ण प्रश्न है। बिलाशक भारतीय संस्कृति इस रू-ए-ज़मीन की सबसे महानतम संस्कृति है। एक अकेली यह संस्कृति है, जहां तर्क की पूरी गुंजाइश है, वरना तो सर कलम करने का प्रावधान है। आप तर्क की जो भी बात रखेंगे, तो यूं समझें कि भारत की संस्कृति को आलोकित कर रहे हैं। इस पर चोट पहुंचाना मुमकिन नहीं है। हां, पाखंड के खिलाफ लेखन ही दरअसल अर्थपूर्ण लेखन होता है ओर पाखंड की चूले हिलाने में मैं विश्वास रखता हूँ। यह क्रियाकलाप आपको मेरे हर उपन्यास में मिल सकता है।
प्र.(9.)भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में आप और आपके कार्य कितने कारगर साबित हो सकते हैं !
उ:-
भ्रष्टाचार ---
मैं समझता हूँ कि भ्रष्टाचार जागृति का नहीं कानून का विषय है या कि शर्मिंदगी का विषय है। सपोज करो, आप बगैर हेलमेट के बाइक चला रहे हैं और पकड़ लिए जाते हैं तो क्या आप कहेंगे कि IPC की जितनी धाराएं बनती हैं, आप लगाइए ? नहीं, बल्कि आप कुछ मुद्रा आगे बढ़ाएंगे और आंख दबाकर मामले को रफा-दफा करना चाहेंगे। भ्रष्टाचार जागृति का विषय नहीं है, यह कानून का विषय है। भ्रष्टाचार हमेशा रहेगा और इस पर उतना ही लगाम लग सकती है, जितना कानून मजबूत होगा।
प्र.(10.)इस कार्य के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे से इतर किसी प्रकार के सहयोग मिले या नहीं ? अगर हाँ, तो संक्षिप्त में बताइये ।
उ:-
फन को पुष्पित-पल्लवित होने के लिए सिर्फ प्रशंसा और आलोचना का ही सहयोग मिलता है। दोनों का अनुपात आपके साथ होना चाहिए। प्रशंसा का भी और आलोचना का भी। प्रशंसा पाकर जब आप पथभ्रष्ट होंगे तो आलोचना आपको संभालेगी, लेकिन उससे भी पहले जरूरी है आपके अंदर निरंतर फन के ज़रासीम पैदा होते रहना। यह तब तक संभव नहीं है, जब तक कि आपकी शख्सियत खुदादाद ना हो।
प्र.(11.)आपके कार्य क्षेत्र के कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी धोखा, केस या मुकद्दमे की परेशानियां झेलने पड़े हों ?
उ:-
नहीं, फिलहाल ऐसा अब तक नहीं हुआ।
उ:-
जवाब अप्राप्त ।
[सम्पादकीय हस्तक्षेप -- लेखक साहब के काफी सारी पुस्तकें आ चुकी है, जिनमें ऊपरांकित कुछ की तस्वीर हैं।]
प्र.(13.)इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, बताएँगे ?
उ:-
फिलहाल तक तो रीडर वर्ग का स्नेह ही सबसे बड़ा पुरस्कार है। मेरे अगले उपन्यास की प्रतीक्षा रीडर्स द्वारा की जाती है यही सम्मान सबसे बड़ा सम्मान है।
प्र.(14.)आपके कार्य मूलतः कहाँ से संचालित हो रहे हैं तथा इसके विस्तार हेतु आप समाज और राष्ट्र को क्या सन्देश देना चाहेंगे ?
उ:-
जवाब अप्राप्त ।
"आप यूं ही हँसते रहें, मुस्कराते रहें, स्वस्थ रहें, सानन्द रहें "..... 'मैसेंजर ऑफ ऑर्ट' की ओर से सहस्रशः शुभ मंगलकामनाएँ !
नमस्कार दोस्तों !
मैसेंजर ऑफ़ आर्ट' में आपने 'इनबॉक्स इंटरव्यू' पढ़ा । आपसे समीक्षा की अपेक्षा है, तथापि आप स्वयं या आपके नज़र में इसतरह के कोई भी तंत्र के गण हो, तो हम इस इंटरव्यू के आगामी कड़ी में जरूर जगह देंगे, बशर्ते वे हमारे 14 गझिन सवालों के सत्य, तथ्य और तर्कपूर्ण जवाब दे सके !
हमारा email है:- messengerofart94@gmail.com
बढ़िया साक्षात्कार । बधाई ।
ReplyDeleteरोचक साक्षात्कार। बधाई।
ReplyDeleteGood interview
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