कुछ किताबें मानव-मस्तिष्क को प्रभावित करती हैं, जिनमें लेखक निलेश शर्मा लिखित उपन्यास मिस्टर इरिटेटिंग भी है !
आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट की टटकी कड़ी में पढ़ते हैं उपन्यास Mr. इरिटेटिंग की लघु, परंतु प्रेरक समीक्षा, जिनकी यथासमृद्ध समीक्षा किए हैं समीक्षक सोमिल जैन 'सोमू' जी ने...
#लप्रेस #लघु_प्रेरक_समीक्षा
महीनों बाद एक कहानी ऐसी पढ़ी, जिसे बस पढ़ते जा रहा था। एक दम फिल्मों जैसी बातें कि बस सुनते जाओ। किताब जो कह रही है बस अपनी कल्पना में उन चीजों को लाकर पढ़ते रहो। कहानी तो इतनी बड़ी है कि इस पर शार्ट फ़िल्म तो न बन पाएगी इसे तो एक लंबी चौड़ी वेब सीरीज बनाना पड़ेगा। अनंत और काव्या मैंम। सीनियर और जूनियर। फिर अनिरुद्ध की दोस्त आँचल।अनंत और आशी की कहानी। काव्या मैंम की सलाह वाकई में बहुत गजब की थी।
भैया जो कहानी के बीच में कविताओं वाला ज्ञान दिए हो वो लाजबाब है और कहानी को चम्पू काव्य की तरह बहुत रोचक बनाता है। सच में लड़कों के लिए ये "पागल" शब्द सबसे अच्छा कॉम्प्लीमेंट है और तब जब "पागल" कोई लड़की कहे। नई पीढ़ी के लिए आपका लेखन सराहनीय है। रोचकता खत्म नहीं हुई ये पाठकों को कहानी के अंत तक बनाएं रखने का आप में अद्भुत गुण है। आशी को तक मिल गई जॉब मगर अनन्त बैठे रहा।मुम्बई का सियप्पा लाजबाब था।अनन्त का और मेरा जन्मदिन अगस्त में आता है ये समानता भी रही इस कहानी की और मेरी। बहुत दिन बाद किसी कहानी को खुद से रिलेट कर पाया हूँ। वैसे मुम्बई में जान पहचान मिलना बहुत सौभाग्य की बात होती है। आशी ने तो टाइटेनिक जैसा किया वोट पर जगह थी मगर नहीं बैठाया ऐसे ही आशी चाहती तो उसे अपने पास रोक सकती थी। हिमाचल प्रदेश भी चला गया मुझे तो हाफ-गर्लफ्रैंड वाला माधव लग रहा था अनंत, लेकिन ये तो कहीं का नहीं रहा। न आशी का और न काव्या का। कहानी में कुछ डायलॉग बेहद पसन्दीदा है अगर वो हाईलाइट होते तो और अच्छा होता। भोलापन सच में कभी-कभी हमें खुद इरिटेट कर देता है। मगर जो इंडिंग हुई कहानी की, वो एक दम फिल्मों जैसी है। कहानी पढ़ने में मजा आ गया ! एक दम 100lid कहानी, बहुत-बहुत बधाई ! आगे आपकी कहानियों का इंतज़ार रहेगा।
आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट की टटकी कड़ी में पढ़ते हैं उपन्यास Mr. इरिटेटिंग की लघु, परंतु प्रेरक समीक्षा, जिनकी यथासमृद्ध समीक्षा किए हैं समीक्षक सोमिल जैन 'सोमू' जी ने...
#लप्रेस #लघु_प्रेरक_समीक्षा
महीनों बाद एक कहानी ऐसी पढ़ी, जिसे बस पढ़ते जा रहा था। एक दम फिल्मों जैसी बातें कि बस सुनते जाओ। किताब जो कह रही है बस अपनी कल्पना में उन चीजों को लाकर पढ़ते रहो। कहानी तो इतनी बड़ी है कि इस पर शार्ट फ़िल्म तो न बन पाएगी इसे तो एक लंबी चौड़ी वेब सीरीज बनाना पड़ेगा। अनंत और काव्या मैंम। सीनियर और जूनियर। फिर अनिरुद्ध की दोस्त आँचल।अनंत और आशी की कहानी। काव्या मैंम की सलाह वाकई में बहुत गजब की थी।
भैया जो कहानी के बीच में कविताओं वाला ज्ञान दिए हो वो लाजबाब है और कहानी को चम्पू काव्य की तरह बहुत रोचक बनाता है। सच में लड़कों के लिए ये "पागल" शब्द सबसे अच्छा कॉम्प्लीमेंट है और तब जब "पागल" कोई लड़की कहे। नई पीढ़ी के लिए आपका लेखन सराहनीय है। रोचकता खत्म नहीं हुई ये पाठकों को कहानी के अंत तक बनाएं रखने का आप में अद्भुत गुण है। आशी को तक मिल गई जॉब मगर अनन्त बैठे रहा।मुम्बई का सियप्पा लाजबाब था।अनन्त का और मेरा जन्मदिन अगस्त में आता है ये समानता भी रही इस कहानी की और मेरी। बहुत दिन बाद किसी कहानी को खुद से रिलेट कर पाया हूँ। वैसे मुम्बई में जान पहचान मिलना बहुत सौभाग्य की बात होती है। आशी ने तो टाइटेनिक जैसा किया वोट पर जगह थी मगर नहीं बैठाया ऐसे ही आशी चाहती तो उसे अपने पास रोक सकती थी। हिमाचल प्रदेश भी चला गया मुझे तो हाफ-गर्लफ्रैंड वाला माधव लग रहा था अनंत, लेकिन ये तो कहीं का नहीं रहा। न आशी का और न काव्या का। कहानी में कुछ डायलॉग बेहद पसन्दीदा है अगर वो हाईलाइट होते तो और अच्छा होता। भोलापन सच में कभी-कभी हमें खुद इरिटेट कर देता है। मगर जो इंडिंग हुई कहानी की, वो एक दम फिल्मों जैसी है। कहानी पढ़ने में मजा आ गया ! एक दम 100lid कहानी, बहुत-बहुत बधाई ! आगे आपकी कहानियों का इंतज़ार रहेगा।
नमस्कार दोस्तों !
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