16 दिसम्बर 2012, यह वही तारीख है जिसकी गूंज हमेशा हम सभी को सुनाई देती हैं, लेकिन 2012 की घटनाएं हम अभी भूले भी नहीं थे कि 2019 में हैदराबाद और बक्सर में जो हुआ, इंसानियत को शर्मसार कर दिया है । इस साल निर्भया की 8 वीं बरसी होगी, लेकिन इन 7 वर्षों में सिर्फ कानून बन पाई है और लागू हो पाई, परंतु पूर्णतः यह कानून बस कागजी पन्नों तक ही सीमित है, क्योंकि अभी भी रेप हो रही है, हत्यायें हो रही हैं । अकेली लड़की या महिलाओं को देखने पर भद्दे इशारें आम बात हो गई है, क्या इस तरह हम 'निर्भया' की आत्मा को श्रद्धाञ्जलि अर्पित करेंगे ? क्या 'मानसिक वासनामयी' पुरुष बदल नहीं सकते ? क्या जिस तरह अपनी बहनों-बेटियों के साथ बर्ताव करते हैं, वैसा बर्ताव सड़क पर चल रही महिलाओं के साथ नहीं कर सकते !
आइये मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं सुश्री सुप्रिया सिन्हा जी की अश्रुपूरित कविता अभी के हालात पर...
'माँ की ममता बेटियों के लिए'
आज एक माँ भगवान के
आगे नतमस्तक हो
याचना कर रही थी...
भगवान मुझे दर्द सहने
की इतनी हिम्मत दे...
कि मेरे गर्भ से मेरी बेटी
इस दुनिया में आनेवाली
हो ---
तो उसे इस वहशीपन
दरिंदों की दुनिया में आने से पहले
उसे अपनी छत्रछाया में
वापस ले लेना
मेरी बेटी मेरे गर्भ में सुकून से
अंतिम साँस तो ले पाएगी
मैं माँ हूँ ---
मुझे बहुत तकलीफ़ हो रही है
कि ---
मैं अपने बेटी को जनना नहीं चाहती
दुनिया मुझे बुरी माँ का दर्जा देगी
पर मेरा जी वो सब सह लेगा...
पर मेरा दिल ये सब नहीं सह पाएगा
एक जवान बेटी को भूखे भेड़ियों
के हत्थे चढ़ते हुए...
उसे बेमौत आग में तिल-तिल मरते हुए
उसे हर कदम पर डर के साए में जीते हुए
हर दिन हर पल बेटियों की बलि चढ़ते हुए
इसलिए मैं एक बेटी होकर
बेटी नहीं लाना चाहती...
हे भगवान !
मुझे माफ़ कर देना।
नमस्कार दोस्तों !
'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।
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'माँ की ममता बेटियों के लिए'
आज एक माँ भगवान के
आगे नतमस्तक हो
याचना कर रही थी...
भगवान मुझे दर्द सहने
की इतनी हिम्मत दे...
कि मेरे गर्भ से मेरी बेटी
इस दुनिया में आनेवाली
हो ---
तो उसे इस वहशीपन
दरिंदों की दुनिया में आने से पहले
उसे अपनी छत्रछाया में
वापस ले लेना
मेरी बेटी मेरे गर्भ में सुकून से
अंतिम साँस तो ले पाएगी
मैं माँ हूँ ---
मुझे बहुत तकलीफ़ हो रही है
कि ---
मैं अपने बेटी को जनना नहीं चाहती
दुनिया मुझे बुरी माँ का दर्जा देगी
पर मेरा जी वो सब सह लेगा...
पर मेरा दिल ये सब नहीं सह पाएगा
एक जवान बेटी को भूखे भेड़ियों
के हत्थे चढ़ते हुए...
उसे बेमौत आग में तिल-तिल मरते हुए
उसे हर कदम पर डर के साए में जीते हुए
हर दिन हर पल बेटियों की बलि चढ़ते हुए
इसलिए मैं एक बेटी होकर
बेटी नहीं लाना चाहती...
हे भगवान !
मुझे माफ़ कर देना।
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