आज सोशल मीडिया का युग है, लेकिन लोग जहाँ इस मीडिया द्वारा 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' के नाम पर अपनी राय तो रखती ही हैं, परंतु कुछ लोग देश-विरोधी स्लोगन देते हैं, तो कुछ लोग सोशल मीडिया के द्वारा 'फतवा' भी जारी करते पाये गये हैं । जहाँ एक ओर माननीय प्रधानमंत्री जी 'डिजिटल-क्रांति' से देश को जोड़ रहे हैं, वहीं दूजी ओर इस तरह की घटनाओं से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से नुकसान तो देश का ही हो रहा है, लेकिन फ़ायदा 'दुश्मन-देश' उठा लेते हैं । आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं श्रीमान संगम वर्मा जी की उपमारहित कविता...
लोकतन्त्र और हम
जब अराजकता हर तरफ़ बढ़ रही हो
और विभिन्नता में एकता का सेतु टूट रहा हो
उपद्रवियों का बोलबाला हो,
और--
मानवाधिकारों का हनन होने लगे
संबंधों में अलगाव आने लागे
नैतिकता भ्रष्ट होकर मलीन होने लगे
सारे कर्त्तव्यविमुख हो जाएँ
ऐसे में...ऐसे में लोकतन्त्र ही
हमारे लिए रामबाण सिद्ध होता है
क्यूँकि एक सशक्त लोकतन्त्र ही
समूची मानवता की,
उसकी अस्मिता की पहचान बनता है
इसे बचाना,
इसे समझना और इसे
बरक़रार बनाए रखना हमारे लिए
ज़्यादा ज़रूरी है
यह उतना ही ज़रूरी है जितना कि शरीर के लिए श्वास
मानव-मानव के संग है
और यही जनादेश का अंग है
कोई तीसरी शक्ति हमारी सर्वोच्च नहीं बन सकती
क्यूँकि हमारा लोकतंत्र ही सर्वोच्च है
हम जागरूक भारत के जनादेश हैं
हमें पता है कि हमारा सही और ग़लत क्या है
हम अपनी सरकार स्वयं चुनते हैं
अपने बहुमत से
ताकि बेहतर सरकार के ज़रिए
बेहतर भारत को विश्व गुरु बना सकें
अरे...
हमारा लोकतंत्र इतना उदार है कि
जहाँ निष्पक्ष निर्वाचन होता है
जहाँ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है
अल्पसंख्यकों को सुरक्षा है
न्याय की समानता है
भाषा, धरम और सम्पत्ति की स्वतंत्रता है
ये सभी हैं, यदि अपना लोकतंत्र सही है
लोकतंत्र सही नहीं तो हम सही नहीं,
हमारी पहचान सही नहीं,
इसकी लचकता इतनी कारगर है कि
यदि जनहित कार्य न हों, तो अपने बहुमत के ज़रिए
बड़े-बड़े पद बदल सकते हैं, सरकार गिरा सकते हैं
कोई मनमानी नहीं कर सकता यहाँ
हमें चाहिए कि हम इसे जाने
समझे और इसके महत्त्व को माने
औरों को भी जागरूक करें,
यदि आप जागरूक नहीं हो सकते
तो फिर कोई गुहार करने की आवश्यकता नहीं
अरे...
हमें इसी भारतभूमि पर रहना है
कर्म भूमि पर कार्य करना है
सारा जीवन यही रहना है
साधना में लिप्त रहना है
ग़लत नीतियाँ जब बन जाती हैं
तो सब ग़लत होने लगता है
और आम जन प्रभावित होने लगता है
हमारा सभ्य समाज का ढाँचा चरमराने लगता है
इसका दोषी हम ग़लत नीति बनाने वाले को मानते हैं
जबकि चुना तो हमने था, बहुमत हमारा था
दरअसल
हम ख़ुद से ही ठगे जाते हैं
या कहें कि ठगे जाना आदत सी हो गई है
सही लोकतंत्र होता
तो अमेजन के जंगल न जलते
और फिर उसके बाद आस्ट्रेलिया...
फिर उसके बाद हम और हमारा भारत
व्यक्ति जब हिप्पोक्रेटिक हो जाए
तो निजता हावी हो जाती है
अपनी थाली बड़ी हो जाती है
और दुनिया को हम बौना देखने लगते हैं
जबकि हम ख़ुद बौने हो जाते हैं
हमारी सोच संकुचित हो जाती है
ये घपला, कालाबाज़ारी, मक्कारी, जालसाज़ी
सब हमारी हिमायती बन कर
हमें सबसे पहले गुमराह करती है
और फिर दूसरों को
सीमा का अतिक्रमण करोगे
तो ख़ुद को अग्नि में झोंकोगे
अतः बंधु !
अब नहीं जागोगे तो कब जागोगे
लोकतन्त्र का दायित्व कब पूरा करोगे
अगली आग हमारे घर भी लग सकती है
यदि हम भारत को शीर्ष पर देखना चाहते हैं
तो हमें चाहिए कि
लोकतांत्रिक बनें
प्रजातांत्रिक बनें
जनतांत्रिक बनें
क्यूँकि लोकतन्त्र सही है तो हमारा भूगोल सही है
अगर भूगोल सही है तो हम सब सही हैं
जब सब सही होगा
फ़िर कोई अलगाव नहीं होगा
विच्छेद नहीं होगा, दुराव नहीं होगा
न ठहराव होगा न विराम होगा
सिर्फ़ और सिर्फ़
सत्यम शिवम् सुंदरम होगा !
डॉ. संगम वर्मा |
लोकतन्त्र और हम
जब अराजकता हर तरफ़ बढ़ रही हो
और विभिन्नता में एकता का सेतु टूट रहा हो
उपद्रवियों का बोलबाला हो,
और--
मानवाधिकारों का हनन होने लगे
संबंधों में अलगाव आने लागे
नैतिकता भ्रष्ट होकर मलीन होने लगे
सारे कर्त्तव्यविमुख हो जाएँ
ऐसे में...ऐसे में लोकतन्त्र ही
हमारे लिए रामबाण सिद्ध होता है
क्यूँकि एक सशक्त लोकतन्त्र ही
समूची मानवता की,
उसकी अस्मिता की पहचान बनता है
इसे बचाना,
इसे समझना और इसे
बरक़रार बनाए रखना हमारे लिए
ज़्यादा ज़रूरी है
यह उतना ही ज़रूरी है जितना कि शरीर के लिए श्वास
मानव-मानव के संग है
और यही जनादेश का अंग है
कोई तीसरी शक्ति हमारी सर्वोच्च नहीं बन सकती
क्यूँकि हमारा लोकतंत्र ही सर्वोच्च है
हम जागरूक भारत के जनादेश हैं
हमें पता है कि हमारा सही और ग़लत क्या है
हम अपनी सरकार स्वयं चुनते हैं
अपने बहुमत से
ताकि बेहतर सरकार के ज़रिए
बेहतर भारत को विश्व गुरु बना सकें
अरे...
हमारा लोकतंत्र इतना उदार है कि
जहाँ निष्पक्ष निर्वाचन होता है
जहाँ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है
अल्पसंख्यकों को सुरक्षा है
न्याय की समानता है
भाषा, धरम और सम्पत्ति की स्वतंत्रता है
ये सभी हैं, यदि अपना लोकतंत्र सही है
लोकतंत्र सही नहीं तो हम सही नहीं,
हमारी पहचान सही नहीं,
इसकी लचकता इतनी कारगर है कि
यदि जनहित कार्य न हों, तो अपने बहुमत के ज़रिए
बड़े-बड़े पद बदल सकते हैं, सरकार गिरा सकते हैं
कोई मनमानी नहीं कर सकता यहाँ
हमें चाहिए कि हम इसे जाने
समझे और इसके महत्त्व को माने
औरों को भी जागरूक करें,
यदि आप जागरूक नहीं हो सकते
तो फिर कोई गुहार करने की आवश्यकता नहीं
अरे...
हमें इसी भारतभूमि पर रहना है
कर्म भूमि पर कार्य करना है
सारा जीवन यही रहना है
साधना में लिप्त रहना है
ग़लत नीतियाँ जब बन जाती हैं
तो सब ग़लत होने लगता है
और आम जन प्रभावित होने लगता है
हमारा सभ्य समाज का ढाँचा चरमराने लगता है
इसका दोषी हम ग़लत नीति बनाने वाले को मानते हैं
जबकि चुना तो हमने था, बहुमत हमारा था
दरअसल
हम ख़ुद से ही ठगे जाते हैं
या कहें कि ठगे जाना आदत सी हो गई है
सही लोकतंत्र होता
तो अमेजन के जंगल न जलते
और फिर उसके बाद आस्ट्रेलिया...
फिर उसके बाद हम और हमारा भारत
व्यक्ति जब हिप्पोक्रेटिक हो जाए
तो निजता हावी हो जाती है
अपनी थाली बड़ी हो जाती है
और दुनिया को हम बौना देखने लगते हैं
जबकि हम ख़ुद बौने हो जाते हैं
हमारी सोच संकुचित हो जाती है
ये घपला, कालाबाज़ारी, मक्कारी, जालसाज़ी
सब हमारी हिमायती बन कर
हमें सबसे पहले गुमराह करती है
और फिर दूसरों को
सीमा का अतिक्रमण करोगे
तो ख़ुद को अग्नि में झोंकोगे
अतः बंधु !
अब नहीं जागोगे तो कब जागोगे
लोकतन्त्र का दायित्व कब पूरा करोगे
अगली आग हमारे घर भी लग सकती है
यदि हम भारत को शीर्ष पर देखना चाहते हैं
तो हमें चाहिए कि
लोकतांत्रिक बनें
प्रजातांत्रिक बनें
जनतांत्रिक बनें
क्यूँकि लोकतन्त्र सही है तो हमारा भूगोल सही है
अगर भूगोल सही है तो हम सब सही हैं
जब सब सही होगा
फ़िर कोई अलगाव नहीं होगा
विच्छेद नहीं होगा, दुराव नहीं होगा
न ठहराव होगा न विराम होगा
सिर्फ़ और सिर्फ़
सत्यम शिवम् सुंदरम होगा !
नमस्कार दोस्तों !
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