समय के साथ-साथ ज्यों-ज्यों तकनीक का विकास हो रहा है, त्यों-त्यों रिश्तों में दूरियाँ बढ़ती जा रही है ! आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट में आज पढ़ते हैं कवयित्री सुश्री ईशिका गोयल की कविता बदलते रिश्ते...
बदलते रिश्ते
अब रिश्तों में वह बात नहीं रही
साथ रहकर भी साथ रहे
ऐसी सौगात ना रही,
बस दिखावे का अपनापन जताते जा रहे हैं
किसी को अब किसी की फ़िक्र भी तो ना रही
अपने से मतलब रह गया बस
ज़ज्बातों की महफ़िल अब विरान हो गई
खेल नहीं खेलते लोग अब
दिलों से खेलना बात थोड़ी आम हो गई...
अब साथ बैठकर खाना खाने का वक्त गुजरा
मेरा इंतजार ना करना
यही बातें रोज़ हो रही
किसी के पास समय ही नहीं
कोई सलीके से दो घड़ी बोलता भी तो नहीं
क्या इतने दूर हो गये सब ?
क्यों सब पहले जैसा नहीं रहा ?
कक्यों नहीं लोगों को एक-दूसरे का ख्याल सता रहा ?
दिलों में बढ़ती जा रही दूरी
क्या रिश्तें निभाना भी है एक मजबूरी है ?
लोग प्यार से नहीं नफरत से पेश आ रहे हैं बार-बार
ऐसा भी क्या हो गया ?
जो रिश्तों में हो रही खड़ी नफ़रत की दीवार
अब नाम के रिश्ते बनते हैं
यहां तो लोग एक-दूसरे से ही जलते हैं
बाहर से अच्छे और अंदर से बूरे
सब लगे हैं अपने मकसद पूरे करने में
प्यार तो दूर की बात
हर जज़्बात का हो रहा उपहास
अब तो वफादारी भी बनकर रह गई मज़ाक
हर कोई दे रहा मुंह-तोड़ जवाब
खोखली हो गई रिश्तों की नींव
क्यों बड़े-बूढ़े के दिल को रहे तुम चीर ?
क्या इस सबसे बन सकता है हर कोई अमीर ?
क्या करोगे चंद पैसे की अमीरी का ?
ज़ज्बातों कि कदर करके
सच्चा अपनापन जताकर
स्वार्थ अपना भुला कर
एक-दूसरे के लिए वक्त निकालते
रिश्ते ईमानदारी से निभाते
दिखता ही नहीं कोई
इन सब चीजों से कोई अमीर बने तो सही
लालच त्याग प्यार से रहे तो सही
फिर नहीं रहेगी रिश्तों में कोई दूरी
अब सच में रिश्तों में वो बात ना रही
मेरा ऐसा सोचना गलत भी तो नहीं !
सुश्री ईशिका गोयल |
बदलते रिश्ते
अब रिश्तों में वह बात नहीं रही
साथ रहकर भी साथ रहे
ऐसी सौगात ना रही,
बस दिखावे का अपनापन जताते जा रहे हैं
किसी को अब किसी की फ़िक्र भी तो ना रही
अपने से मतलब रह गया बस
ज़ज्बातों की महफ़िल अब विरान हो गई
खेल नहीं खेलते लोग अब
दिलों से खेलना बात थोड़ी आम हो गई...
अब साथ बैठकर खाना खाने का वक्त गुजरा
मेरा इंतजार ना करना
यही बातें रोज़ हो रही
किसी के पास समय ही नहीं
कोई सलीके से दो घड़ी बोलता भी तो नहीं
क्या इतने दूर हो गये सब ?
क्यों सब पहले जैसा नहीं रहा ?
कक्यों नहीं लोगों को एक-दूसरे का ख्याल सता रहा ?
दिलों में बढ़ती जा रही दूरी
क्या रिश्तें निभाना भी है एक मजबूरी है ?
लोग प्यार से नहीं नफरत से पेश आ रहे हैं बार-बार
ऐसा भी क्या हो गया ?
जो रिश्तों में हो रही खड़ी नफ़रत की दीवार
अब नाम के रिश्ते बनते हैं
यहां तो लोग एक-दूसरे से ही जलते हैं
बाहर से अच्छे और अंदर से बूरे
सब लगे हैं अपने मकसद पूरे करने में
प्यार तो दूर की बात
हर जज़्बात का हो रहा उपहास
अब तो वफादारी भी बनकर रह गई मज़ाक
हर कोई दे रहा मुंह-तोड़ जवाब
खोखली हो गई रिश्तों की नींव
क्यों बड़े-बूढ़े के दिल को रहे तुम चीर ?
क्या इस सबसे बन सकता है हर कोई अमीर ?
क्या करोगे चंद पैसे की अमीरी का ?
ज़ज्बातों कि कदर करके
सच्चा अपनापन जताकर
स्वार्थ अपना भुला कर
एक-दूसरे के लिए वक्त निकालते
रिश्ते ईमानदारी से निभाते
दिखता ही नहीं कोई
इन सब चीजों से कोई अमीर बने तो सही
लालच त्याग प्यार से रहे तो सही
फिर नहीं रहेगी रिश्तों में कोई दूरी
अब सच में रिश्तों में वो बात ना रही
मेरा ऐसा सोचना गलत भी तो नहीं !
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Such a heart touching 💞...keep it up mam
ReplyDeleteThankyou so much 😊
DeleteHeart touching lines 👌👌👌
ReplyDeleteDoing great
Thnkeu so much 😊
DeleteVery nice Keep it up dear aapney aj kal k rishto ki schai bta di
ReplyDeleteKeep it up dear 😘
Thankyouu very much 😊
DeleteThankss
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