जीवन क्या है ?
सुख क्या है ?
दुःख क्या है ?
यह ऐसे प्रश्न है, जिनका उत्तर हर समय बदलते रहता है, क्योंकि हम इनके बारे में जितना जानने की कोशिश करते हैं, उतना ही अधिक और जानने का मन करता है। आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं डॉ. संगम वर्मा जी की अद्भुत कविता और समझते हैं 'सुख के आयतन' को...
डॉ. संगम वर्मा |
सुख का आयतन
चिंदी-चिंदी सुख होता है
सहेजा जाता है तो और बढ़ जाता है
न नपा तुला होता है,
न परिमाण में न गणित होता है,
न परिसीमन में
बस क्षणिक होता है, क्षणभंगुर की तरह
जीया जाया जाना चाहिए
पिपासा नाम की जो चीज़ होती है
वो हमें जीवित रखती है...
इसलिए हमें चिंदी-चिंदी सुख सहेजना चाहिए
सुख का आयतन
दुःख के आयतन से कहीं क्षणिक होता है
यह क्षणिक ही दुःख के आयतन को भेद सकने में कारगर होता है।
सुख हैं, सब देय हैं,
हिमालय, देवालय,
और
शिवालय, कैलाशालय
एक ही हैं
इसी चिंदी-चिंदी सुख के उत्तराधिकारी हैं।
सहज नहीं पाया जा सकता इन्हें
ख़ूब खपना, तपना पड़ता है
पार्वती भी तपी थी, अपने शिव के लिए
सीता भी तपी थी, अपने स्व के लिए
विचारों के
ज़द्दोज़हद के बीच, कश्मकश के बीच
जो मंथन होता है,
तभी हलाहल का कलश निकलता है
फिर से मंथन होता है
तब कहीं जाकर अमृत कलश निकलता है
जो हलाहल को निगल लेता है
पर मथना ज़रूर होता है
सुख का आयतन मथना है
मन्तव्य-गन्तव्य का
सुंदर सोपान मंथन है
जब तलक़ मंथन होता रहेगा
सारे तीर्थांकन समीप हैं
अन्यथा कोसों दूर हैं।
नमस्कार दोस्तों !
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